दुर्ग @ सीए सुरेश कोठारी (94252 46039) के निजी विचार है..
नमस्कार साथियों
माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 19 जून 2019 को सारे दलों के अध्यक्षों की मीटिंग बुलाई है जिसमें वह “वन नेशन वन इलेक्शन “के मुद्दे पर चर्चा करने वाले हैं अपने पिछले कार्यकाल में भी उन्होंने इस मुद्दे को रखा था लेकिन अधिकतर राजनीतिक दलों ने उनके इस विचार को खारिज कर दिया था।
यहां पर एक देश एक चुनाव का आशय यह है की लोकसभा के चुनाव के साथ साथ विधानसभा, नगरीय निकाय एवं पंचायत चुनाव एक साथ हो जाए, इस तरह एक साथ चुनाव होने से बार बार चुनाव में होने वाले खर्चे से बचा जा सकता है तथा चुनाव के नाम से जो बार-बार आचार संहिता लगती है जिन की आड़ लेकर हमारे सरकारी अधिकारी.. हो सकने वाले कामों को भी नहीं करने की कोशिश करते है.. सारा सरकारी अमला चुनाव की तैयारी में व्यस्त हो जाता है तथा हमारे वह नेता भी जो कि पद में है, जैसे प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री तथा अन्य मंत्री वह भी अपने सरकारी कार्य छोड़कर,चुनाव प्रचार में व्यस्त हो जाते हैं, जिससे उनके द्वारा लिए जाने वाले जनहितकारी निर्णयों की गति भी काफी धीमी हो जाती है, तथा हमारे पैरामिलिट्री फोर्स, सीआरपीएफ, स्थानीय पुलिस के जवान जिनका मूल काम जनता तथा देश की सुरक्षा करना है उन्हें भी बार-बार इस चुनावी ड्यूटी में लगा दिया जाता है इसके अलावा शिक्षकों की ड्यूटी , बसों का अधिग्रहण, अंततः इन सब का नुकसान आम जनता को ही उठाना पड़ता है।
एक देश एक चुनाव कोई नया विचार नहीं है समय समय पर इस पर चर्चा होती रही है हमारे देश के प्रथम चुनाव 1952 में हुए थे तब से लेकर 1957, 1962 , 1967 तक सारे चुनाव एक साथ हुए लेकिन 1968 में हरियाणा, जो कि उस समय अपनी आया राम गया राम संस्कृति के कारण पूरे देश में बदनाम हुआ था, में हुए मध्यावधि चुनाव के कारण यह सिलसिला टूटा उसके बाद 1969 में बिहार और पश्चिम बंगाल की विधानसभा भंग करने के कारण, नवंबर 1969 में इंडिकेट और सिंडिकेट के झगड़े के कारण जब इंदिरा गांधी को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से निकाला गया तब 1970 में लोकसभा को भंग किया गया इसी कालखंड यानी 1967 से लेकर 1970, जब देश की प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी थी, देश में एक साथ सारे चुनाव होने की परंपरा टूटी तथा राजनीति में गिरावट का दौर भी इसी कालखंड में शुरू हुआ, इस कालखंड के बाद देश में फिर कभी एक साथ सारे चुनाव होना संभव नहीं हुआ तथा हमारे राजनेताओं की महत्वाकांक्षाओं की कीमत हमारे देश की जनता को चुकानी पड़ी।
कई राजनीतिक दल जो इस विचार के विरोध में है उनका यह तर्क है कि लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एक साथ होने पर मतदाता दोनों सदन के लिए एक ही व्यक्ति को वोट करेंगे उनका आशय वर्तमान में प्रधानमंत्री मोदी की लोकप्रियता से हैं उन्हें यह डर है कि लोकसभा में तो मोदी जी को जिताएंगे ही लेकिन विधानसभा में भी उनका वोट शायद मोदी की तरफ चला जाएगा लेकिन यह एक भ्रम है, उड़ीसा विधानसभा उसका एक शानदार उदाहरण है जहां भारतीय जनता पार्टी लोकसभा में 8 सीट जीतने के बाद भी विधानसभा में केवल 23 सीट ही जीत पाई है यानी वहां की जनता का विश्वास राज्य में नेतृत्व करने के लिए भारतीय जनता पार्टी के पक्ष में नहीं था, लेकिन लोकसभा में उसने काफी हद तक भारतीय जनता पार्टी का साथ दिया था , यहां पर कांग्रेस पार्टी का यह डर स्वाभाविक हो सकता है क्योंकि जब जब देश में एक साथ चुनाव हुए हैं, कांग्रेस पार्टी ही केंद्र और राज्य में चुनाव जीतती आई है, लेकिन उस समय की परिस्थितियां अलग थी, आजादी प्राप्ति के खुमार के कारण कांग्रेस की लोकप्रियता चरम पर थी , सशक्त तथा विश्वसनीय विपक्ष के विकल्प का भी अभाव था।
साथियों “एक राष्ट्र एक चुनाव” इस विचार का विरोध करना, मतदाता के विवेक पर प्रश्न चिन्ह लगाना है, आज का मतदाता बहुत जागरूक हो चुका हैं, पहले साक्षरता की दर बहुत कम थी, समाचार केवल अखबार, जिसको एक साक्षर ही पढ़ और समझ पाता था एवं रेडियो जिसमें सीमित समय और सीमित मात्रा में समाचार प्रसारित होता था, इन सीमाओं के कारण मतदाता की राजनीतिक समझ भी सीमित होती थी, लेकिन जब से 24 घंटा के खबरिया चैनल आने लगे हैं तबसे एक अनपढ़ गांव में रहने वाला व्यक्ति भी किसी भी राजनीतिक दल या नेतृत्व बारे में अपने एक सफल राय बना पाता है और इसी जागरूकता ने देश की राजनीति को काफी हद तक बदल दिया है तथा धीरे-धीरे अब राजनीति का स्वरूप बदलने लगा है तथा इसमें भी जवाबदेही आने लगी है, अतः अब मतदाता के विवेक को चुनौती देना काफी खतरनाक होगा तथा हास्यास्पद होगा आज का मतदाता अच्छी तरह से जानता है कि कौन व्यक्ति या दल कहां के लिए उचित है।
एक राष्ट्र एक चुनाव का सबसे ज्यादा फायदा आम जनता को ही होने वाला है , क्योंकि सरकारी अमला व हमारे नेता अपने समय और उपलब्ध साधन का पूरा पूरा उपयोग जनता के हित के लिए ही करेंगे। साथियों यह मेरा लेख आपको कैसा लगा, जरूर बताइए और अगर आप इससे सहमत हैं तो इसे ज्यादा से ज्यादा शेयर कीजिए ताकि एक राष्ट्र एक चुनाव के पक्ष में एक जनमत तैयार हो सके ,आपकी प्रतिक्रिया के इंतजार में।
एक अलग समाचार- यशोवर्धन बिरला को यूको बैंक ने विलफुल डिफॉल्टर घोषित कर दिया, यूको बैंक वही बैंक है जिसे यशोवर्धन के पूर्वजों ने स्थापित किया था! सचमुच देश बदल रहा है।