इक इंकलाब आया है दोहरे हुए हैं लोग… गूंगों को है जबान तो बहरे हुए हैं लोग….

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वरिष्ठ पत्रकार शंकर पांडेय की कलम से

छत्तीसगढ़ की एक तथा म.प्र. की 28 विधानसभा क्षेत्रों में 3 नवंबर को उपचुनाव के लिए मतदान होना है। 10 नवंबर को इसके परिणाम आना हैं। छत्तीसगढ़ के मरवाही विधानसभा उपचुनाव निश्चित ही मुख्यमंत्री भूपेश बघेल तथा जोगी परिवार की प्रतिष्ठा का सवाल बना हुआ है। वैसे यह तय है कि यहां से कांग्रेस की जीत जोगी परिवार की हार के साथ जोगी कांग्रेस की भावी राजनीति तय करेगी तो कांग्रेस की यदि पराजय होती है तो जोगी परिवार की जीत कांग्रेस सरकार की 2 साल की नीतियों की हार सहित भाजपा के लिए प्राण वायु साबित होगा वैसे पिछले 2 उपचुनावों में कांग्रेस की जीत के बाद कांग्रेस अजीत जोगी की कर्मभूमि मरवाही में अपनी जीत तय मान रही है, मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का तीन दिनी मरवाही प्रवास ही यह तय करने काफी है कि मरवाही कांग्रेस सरकार की प्रतिष्ठा का सवाल बना हुआ है। मरवाही वैसे कांग्रेस का गढ़ रहा है 2001 के उपचुनाव में अजीत जोगी ने अपनी जीत दर्ज की थी उसके बाद से अजीत जोगी/अमित जोगी लगातार यहां से विजयी होते रहे। पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस से अलग होकर अजीत जोगी ने जोगी कांग्रेस से प्रत्याशी बनकर 46462 मतों से अपनी जीत तय की थी, उस चुनाव में भाजपा की अर्चना पोर्ते 27 हजार मत लेकर दूसरे स्थान पर रही थी तथा 20 हजार मत लेकर कांग्रेस तीसरे स्थान पर रही थी जबकि उस समय भाजपा विरोधी तथा कांग्रेस के समर्थन में लहर चल रही थी। सवाल यह उठ रहा है कि अजीत जोगी को मिले लगभग 76 हजार मत इस बार किसके खाते में जाते हैं कांग्रेस या भाजपा के…। क्योंकि इस बार अमित जोगी/ ऋचा जोगी का नामांकन जाति प्रमाण पत्र के आधार पर निरस्त कर दिया गया है और जोगी परिवार का कोई भी सदस्य 19 साल बाद चुनाव मैदान में नहीं है यही नहीं जोगी कांग्रेस से कोई भी प्रत्याशी चुनाव समर में नहीं है।

जोगी कांग्रेस में फूट…।

कांग्रेस के अध्यक्ष बनने के बाद भूपेश बघेल की पहल के बाद अमित जोगी/ अजीत जोगी को कांग्रेस छोडऩा पड़ा था बाद में जोगी कांग्रेस की स्थापना हुई थी और उसके 5 विधायक पिछले चुनाव में चुने गये थे। अजीत जोगी के निधन के बाद अब 4 विधायक सुश्री डॉ. रेणु जोगी,धर्मजीत सिंह, देवव्रत सिंह तथा प्रमोद शर्मा विधायक हैं। देवव्रत सिंह तथा प्रमोद शर्मा तो कांग्रेस प्रवेश के लिए सार्वजनिक बयान भी दे चुके हैं। हालांकि मुख्यमंत्री भूपेश बघेल कह चुके हैं कि वे दलबदल के पक्ष में नहीं है फिर आलाकमान इस पर निर्णय लेगा। वैसे दोनों विधायकों के जोगी कांग्रेस छोड़कर कांग्रेस में प्रवेश पर दबदल के कारण सदस्यता जाने का खतरा है। पहले कुल विधायकों की एक तिहाई संख्या में विधायक दल छोडऩे पर दलबदल कानून लागू नहीं होता था कांग्रेस की पहली सरकार में अजीत जोगी के समय भाजपा के 12 विधायक तरूण चटर्जी, गंगूराम बघेल, शक्राजीत नायक आदि ने दलबदल किया था पर अब दलबदल का कानून बदल गया है अब एक तिहाई नहीं दो तिहाई यदि दलबदल करते हैं तभी दलबदल कानून के दायरे में नहीं आएंगे। जोगी कांग्रेस के कुल 4 विधायक वर्तमान है ऐसे में कम से कम 3 विधायकों का कांग्रेस प्रवेश जरूरी है। अब धर्मजीत सिंह/ रेणु जोगी सहित सभी कांग्रेस में आते हैं तो भूपेश सरकार के लिए फालतू का सिरदर्द ही होगा क्योंकि रेणु जोगी के कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से संबंध किसी से छिपे नहीं है फिर अमित जोगी का क्या होगा? यह भी विचारणीय सवाल होगा। बहरहाल भूपेश बघेल ने स्पष्ट किया है कि उनके पास पर्याप्त विधायक हैं। वे दलबदल के पक्ष में नहीं है साथ ही उन्होंने हाईकमान पर भी निर्णय छोड़ दिया है। वैसे अजीत जोगी के जीवनकाल में जब कांग्रेस हाईकमान को इनके प्रवेश नहीं करने मना लेने वाले भूपेश बघेल जोगी परिवार को कांग्रेस प्रवेश करने देंगे ऐसा लगता तो नहीं है। ज्ञात रहे कि कल ही जोगी कांग्रेस विधायक दल के नेता धर्मजीत सिंह की भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष डॉ. रमन सिंह से एकांत में बातचीत की भी जमकर चर्चा है। वहीं जोगी कांग्रेस के गुण्डरदेही के पूर्व विधायक द्वारा भाजपा का मंच साझा करना भी चर्चा में है।

म.प्र. राजमाता से ज्योतिरादित्य तक ….

पड़ोसी राज्य म.प्र. में 28 विधानसभा क्षेत्रों में 3 नवंबर को ही उपचुनावों के लिए मतदान हो रहा है। 10 नवंबर को परिणाम आने के बाद पता चल सकेगा कि भाजपा की शिवराज सिंह सरकार स्थायी हो सकेगी या कमलनाथ की कांग्रेस सरकार की वापसी होगी या फिर जोड़-तोड़ की राजनीति का दौर शुरू हो जाएगा। वैसे निर्वाचित कमलनाथ की सरकार को गिराने में ज्योतिरादित्य सिंधिया की महत्वपूर्ण भूमिका रही है उनका राजनीतिक भविष्य भी इन चुनाव परिणामों पर निर्भर करेगा राज्यसभा सदस्य तो वे भाजपा कोटे से बन गये हैं पर मोदी मंत्रिमंडल का अंग बनते है या नहीं यह म.प्र. के उपचुनावों के परिणाम ही तय करेंगे।
वैसे कमलनाथ की सरकार गिरा कर कांग्रेसी मंत्री/विधायकों को भाजपा की सदस्यता दिलाकर उन्होंने अपनी दादी राजमाता विजयाराजे सिंधिया के संविद शासन की स्थापना की पुनरावृत्ति ही की है।

अविभाजित म.प्र. में जनसंघ/भाजपा के प्रमुख संस्थापक सदस्यों में एक राजमाता विजयाराजे सिंधिया ने 1967 में कुल 36 कांग्रेसी/ प्रजा सोशलिस्ट पार्टी,निर्दलीय विधायकों का दलबदल कराकर संविद सरकार (संयुक्त विधायक दल) की स्थापना कर पंडित द्वारिका प्रसाद मिश्र की सरकार का तख्ता पलट करके गोविंदनारायण सिंह को मुख्यमंत्री बनाया फिर छग सारंगढ़ के राजा नरेशचंद्र को मुख्यमंत्री बनाया था यह बात और है कि राजा नरेशचंद्र ने 10-12 दिन में ही मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था। दरअसल पंचमढ़ी कांग्रेस सम्मेलन में तत्कालीन मुख्यमंत्री डीपी मिश्र ने राजशाही पर तीखी टिप्पणी कर इसे लोकतंत्र का दुश्मन बता दिया था यही बात राजमाता को नागवार गुजरी और उन्होंने कांग्रेस छोड़ दी थी। यह ठीक है कि 15 फीसदी विधायकोंं का दलबदल कराकर राजमाता ने संविद सरकार की स्थापना करवा दी पर यह सरकार अपने अंतर विरोधों के चलते 19 माह ही चली और संविद सरकार की समाप्ति के बाद 26 मार्च 1969 को पं. श्माचरण शुक्ल ने मुख्यमंत्री का पदभार सम्हाला था। वैसे संविद सरकार के गठन के पीछे छग के कुछ विधायकों की भी महत्वपूर्ण भूमिका रही थी। इसमें बृजलाल वर्मा, शारदाचरण तिवारी प्रमुख थे। वैसे गोविंद नारायण सिंह की संविद सरकार के मंत्रिमंडल में छग के रामचरण राय (बिलासपुर), बृजलाल वर्मा (बलौदाबाजार), रामेश्वर प्रसाद शर्मा (जांजगीर), वीरेन्द्र बहादुर सिंह (खैरागढ़), धर्मपाल गुप्ता (भिलाई), गणेशराम अनंत (मुंगेली), (सभी कांग्रेसी) जनसंघ के भानूप्रताप सिंह (लैलूूंगा), मनहरणलाल पांडे (तखतपुर), लारंग साय (सामरी), तथा निर्दलीय शारदाचरण तिवारी (रायपुर), बद्रीनाथ बघेल (नारायणपुर), दृगपाल शाह (बीजापुर) शामिल थे। वैसे संविद सरकार के गठन के पीछे राजमाता विजयाराजे सिंधिया द्वारा विधायकों को दिल्ली के मेडल्स होटल में ठहराने तथा कुछ प्रलोभन देना आज भी चर्चा में है। वहीं हाल ही में कांग्रेस छोड़कर भाजपा का दामन थामने वाले कांग्रेसी विधायकों के पीछे ज्योतिरादित्य सिंधिया की महत्वपूर्ण भूमिका से इंकार नहीं किया जा सकता है। हालांकि कांग्रेस के बड़े नेता इसके पीछे प्रलोभन को प्रमुख आधार बता रहे हैं।

मंडल के बाद अमिताभ…।

छत्तीसगढ़ के प्रशासनिक प्रमुख मुख्य सचिव आर.पी. मंडल 30 नवंबर को विधिवत सेवानिवृत्त हो जाएंगे वैसे उनका कार्यकाल 6 माह बढ़ाने के लिए राज्य सरकार ने केंद्र सरकार से अनुरोध किया है पर केंद्र राज्य के संबंधों? को देखकर कार्यकाल बढ़ेगा ऐसा लगता नहीं है। वैसे हाल ही में कांग्रेस शासित राजस्थान के मुख्य सचिव राजेश स्वरूप को 3 महीने की सेवावृद्धि केंद्र द्वारा देने से मंडल को लेकर कुछ उम्मीद बढ़ी है पर राजेश स्वरूप की सेवावृद्धि के पीछे कहीं उनकी केंद्र में पकड़ तो नहीं है…। यदि मंडल का कार्यकाल नहीं बढ़ा तो एक दिसंबर को नये मुख्यसचिव के रूप में अमिताभ जैन अपना कार्यकाल सम्हाल सकते हैं। वैसे अभी तक नये मुख्य सचिव को लेकर राज्य शासन ने कोई आदेश जारी नहीं किया है। वैसे एक बात है कि मंडल ने रायपुर के इंजीनियरिंग कालेज में शिक्षा ग्रहण की है तो उनकी स्कूली शिक्षा बिलासपुर में हुई और बिलासपुर/ रायपुर में उन्होंने कलेक्टरी की तथा मुख्य सचिव बनने का सफर तय किया तो भावी मुख्य सचिव अमिताभ जैन ने अपनी स्कूली शिक्षा दल्ली राजहरा में पूरी की उसके बाद उन्होंने मेकेनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई भोपाल में पूरी की तो दिल्ली से एमटेक किया है। ग्यारहवीं की परीक्षा में अमिभाजित म.प्र. में प्रथम स्थान पर आये थे। अमिताभ जैन ने भी रायपुर में कलेक्टरी की तो वे जनसंपर्क में संचालक भी रह चुके हैं। जाहिर है कि एक दिसंबर को वे मुख्य सचिव का कार्यभार सम्हालते हैं तो एक प्रशासनिक फेरबदल भी होगा यह लगभग तय है।

और अब बस….

  • 0 कुछ पुलिस अधीक्षकों को इधर-उधर करने की एक सूची मरवाही उपचुनाव मतदान के बाद जारी होने की संभावना है।
  • 0 राजधानी में अपराध बढऩे के पीछे कहीं शहर एसपी से लेकर थाना निरीक्षक स्तर तक के नये अधिकारियों की तैनाती तो बड़ा कारण नहीं है।
  • 0 कोरोना महामारी के छग में खासकर राजधानी रायपुर में मरीजों का कम होना अच्छा संकेत है।
  • 0 मरवाही विधानसभा उपचुनाव में जीत-हार आसान नहीं है कांग्रेस-भाजपा दोनों के लिए…।