2 सौ रुपए इनकम के लिए हर रोज 2 हजार खर्च कर रहा भिलाई नगर निगम, 24 लाख की लागत से बॉयोगैस बनाने वाली योजना फेल…

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भिलाई। एक तरफ निगम प्रशासन आम जनता के खून पसीने की कमाई को टैक्स के रुप में धड़ल्ले से वूसलती हैं। वहीं दूसरी तरफ अपने मनमानी ढंग से लाखों की योजना शुरु कर पैसे को पानी की तरह बहाने का काम करती है। दरअसल शहर की सड़ी-गली सब्जियों और छिलकों से बॉयोगैस बनाने की निगम की महत्वाकांक्षी योजना फेल हो गई है। 24 लाख रुपए की लागत से भिलाई निगम परिसर में बना प्लांट पिछले 15 दिन से ठप पड़ा है। प्लांट ऑपरेट करने वाली एजेंसी का तर्क है कि कर्मचारी वोट डालने गांव गए हैं। सड़ी-गली सब्जियों और छिलकों की आवक भी कम हो गई है। जबकि हैरानी की बात तो ये है कि शहर के सभी मार्केट में सड़ी-गली सब्जियों की मात्रा भरमार है। सब्जियां मार्केट में ही सड़ रही है। इससे बदबू भी आ रहा है। वहां रहने वाले लोग परेशान है।

निगम के अफसरों का कारनामा यहीं खत्म नहीं होता। इससे उत्पादन होने वाली गैस और खाद को शहर में बेचने की योजना थी। निगम सिर्फ 4 छोटे दुकान में इसकी गैस सप्लाई कर रहा है। वहीं खाद कितना बनाया? इसका पता नहीं। आकाशगंगा सुपेला मार्केट के चार होटल और पान ठेले वालों में से एक ने तो अपना कनेक्शन भी कटवा दिया है। सिर्फ इसलिए कि उसे प्रॉपर गैस नहीं मिल रही थी। सालभर में निगम को प्रति दुकान 50 रुपए के हिसाब से 200 रुपए दिन की इनकम हो रही है।

इस प्लांट को लगाने के पीछे निगम की योजना थी सड़ी-गली सब्जियों से खाद व गैस बनाया जाए। इससे कचरे का परिवहन खर्चा बचेगा। निगम के एक अफसर बताते हैं कि इस प्लांट के लगने से एक दिन में 3000 रुपए ट्रांसपोर्टिंग चार्ज बच रहा है, लेकिन यह योजना फेल होने से लोगों को प्लांट में लगे लाखों रुपए डूबता नजर आ रहा है।

शहर में 6 रेगुलर और 22 साप्ताहिक सब्जी मार्केट हैं। जहां से रोजाना पांच क्विंटल वेस्ट आयटम निकलता है जिसे प्लांट में इस्तेमाल करने की योजना थी। रूआबांधा, रिसाली सब्जी, आकाशगंगा, लक्ष्मी मार्केट सुपेला, नेहरू नगर मार्केट समेत अन्य जगहों से वेस्ट लाने की योजना थी, लेकिन वेस्ट प्लांट तक पहुंचने की बजाय यहीं सड़ रहा है लोगों के लिए परेशानी का सबब बन रहा है।

महीनेभर पहले ही निगम के नए आयुक्त एसके सुंदरानी ने प्लांट विजिट किया था। तब उन्होंने इसकी तारीफ की थी। कहा था कि इसका संचालन प्रॉपर होना चाहिए। जबकि इसे ऑपरेट करने वाली एजेंसी ने नए निगम आयुक्त को दिखाने के लिए प्लांट को चालू तो कर दिया फिर उनके जाते ही प्लांट बंद हो गया।

पहले भी ये योजनाएं हो चुकी हैं फेल

6 एसएलआरएम सेंटर बनाने थे : कचरे से खाद बनाने के लिए दो साल पहले राज्यभर में एसएलआरएम सेंटर बनाने की योजना थी। निगम के सभी जोन में 18-18 लाख रुपए खर्च करके बनाया गया। जो अब बंद पड़ा है। इसके लिए भी पुख्ता प्लानिंग नहीं हुई।

आवारा कुत्ता पकड़ने अभियान: शहर में अब भी आवारा कुत्तों को आतंक है। लेकिन जिस एजेंसी को काम दिया है, वह पहले कागजों में कुत्ते पकड़ चुकी है। लोगों को यह नहीं पता कि इसे कैसे बुलाना है?

वाहनों में जीपीएस सिस्टम: कचरा परिवहन में लगने वाले वाहनों में जीपीएस सिस्टम लगाने की योजना हुई। तकरीबन 85 लाख रुपए खर्च करके सिस्टम लगाया गया, लेकिन अब सब कबाड़ में है। ऑडिट में भुगतान को लेकर ऑब्जेक्शन भी आ गया है।

महिलाओं को सफाई ठेका: शहर की सफाई का ठेका महिला समूहों को देने की योजना थी। इसमें भी राजनीतिक दलों के नेता व उनके रिश्तेदारों ने हिस्सा लिया। अब यह मामला शासनस्तर में पेंडिंग है।

बॉयोबेस्टलाइजेशन कचरे का : जामुल स्थित ट्रेंचिंग ग्राउंड का बॉयोबेस्टलाइजेशन करना था यानि कि वैज्ञानिक पद्घत्ति से उसका निपटारा। 70 लाख रुपए खर्च हुए, लेकिन अब तक काम नहीं हुआ। मामला एनजीटी तक में चले गया है।

डस्टबिन वितरण में देरी : यह शासन का ड्रीम प्रोजेक्ट था। दो-दो डस्टबिन देना था, लेकिन अब शहर के अधिकांश कॉलोनी व मोहल्लों में इसका वितरण नहीं हुआ है। इसमें भी धांधली की खबर आई।

बड़ा सवाल? क्या कमीशनखोरी के लिए बनाया था यह प्लान

इस प्लांट के इंस्टालेशन के बाद से कमीशनखोरी को लेकर सवाल उठ रहे हैं। क्योंकि प्लांट लगने के बाद से इसके गैस और खाद का प्रॉपर उपयोग नहीं हुआ। इसलिए सवाल उठ रहा है कि कहीं कमीशनखोरी के लिए स्वास्थ्य विभाग के अफसरों ने इस योजना को शुरू किया और कागजों में काम किया जैसा कि बाकी कई कार्य किए।

जिम्मेदार बोले-सबकुछ ठीक चल रहा है

  • भिलाई नगर निगम आयुक्त एसके सुंदरानी से सीधा सवाल…
  • 24 लाख रुपए खर्च कर निगम ने बॉयोगैस प्लांट लगाया है, इसका क्या इनपुट मिल रहा है?
  • प्लांट बढ़िया चल रहा है। मैंने विजिट किया है। इस प्लांट की वजह से काफी फायदे हो रहे हैं।
  • प्लांट पिछले 15 दिनों से बंद है, आपने इसका विजिट कब किया था?
  • प्लांट बंद होने की सूचना मुझे नहीं है। मैं इसकी सरप्राइज चेकिंग करके पता करता हूं।
  • लाखों रुपए खर्च करने के बाद भी इससे इनकम नहीं हो रही है, आखिर प्लानिंग बढ़िया है लेकिन एक्जीक्यूशन प्रॉपर क्यों नहीं होता?
  • इससे इनकम और खर्च का सवाल नहीं है। अब सड़ी-गली सब्जियों का परिवहन करना नहीं पड़ता। इसका खर्चा बच रहा है। इसे बेहतर संचालन करवाएंगे।

(दैनिक भास्कर के इनपुट से खबर ली गई है।)

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