बिग ब्रेकिंग: बिलासपुर हाई कोर्ट का बड़ा फैसला.. केंद्रीय राज्य मंत्री रेणुका सिंह, 6 आईएएस समेत 13 अफसरों पर CBI को एफआईआर के निर्देश.. क्या है मामला.. और किस-किस पर होगी FIR.. पढ़िये पूरा डिटेल..

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बिलासपुर 30 जनवरी, 2020। छत्तीसगढ़ के बिलासपुर हाईकोर्ट ने भ्रष्टाचार के एक मामले में गुरुवार को बड़ा आदेश दिया है। फर्जी एनजीओ (NGO) बनाकर करीब 1 हजार करोड़ रुपये का घोटाला करने के मामले में कोर्ट ने प्रदेश के 13 अफसरों के खिलाफ एफआईआर (FIR) दर्ज करने के आदेश सीबीआई (CBI) को दिए हैं। बेंच ने सीबीआई को केंद्रीय राज्य मंत्री रेणुका सिंह, पूर्व सीएस विवेक ढांढ, पूर्व एसीएस एमके राउत, बीएल अग्रवाल, आलोक शुक्ला, पूर्व सीएस सुनील कुजूर, एमके श्रोति सहित 13 अधिकारियों के खिलाफ एफआइआर दर्ज करने का आदेश दिया है। एफआईआर सात दिनों के भीतर दर्ज करने के साथ संस्था के सभी दस्तावेज को भी जब्त करने का आदेश दिया है। इन अफसरों में 6 आईएएस (IAS) भी शामिल हैं। इनमें से कुछ अफसर अब रिटायर्ड भी हो चुके हैं।

छत्तीसगढ़ के रिटायर्ड और वर्तमान अधिकारियों द्वारा फर्जी एनजीओ (NGO) बनाकर कर्मचारियों के नाम से करोड़ों रुपयों का फर्जीवाड़ा करने को लेकर जनहित याचिका दायर की गई थी। इसी याचिका पर आज हाई कोर्ट (High Court) जस्टिस प्रशांत मिश्रा के डिवीजन बेंच से एक बड़ा फैसला दिया है। हाई कोर्ट ने इसमें 1 हजार करोड़ का घोटाला होना पाया। कोर्ट ने सीबीआई को एक बड़ा आदेश देते कहा है कि एक सप्ताह के अंदर सारे दोषी अफसरों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करें। उसके बाद 15 दिनों के भीतर मामले से संबंधित ओरिजनल दस्तावेजों को सीज करें।

इनके खिलाफ होगी एफआईआर

रायपुर के रहने वाले कुंदन सिंह ठाकुर की ओर से अधिवक्ता देवर्षि ठाकुर ने हाई कोर्ट में जनहित याचिका दायर की थी। इसमें बताया गया था कि राज्य के 6 आईएएस अफसर आलोक शुक्ला, विवेक ढांड, एनके राउत, सुनील कुजूर, बीएल अग्रवाल और पीपी सोती समेत सतीश पांडेय, राजेश तिवारी, अशोक तिवारी, हरमन खलखो, एमएल पांडेय और पंकज वर्मा ने फर्जी संस्थान स्टेट रिसोर्स सेंटर (एसआरसी) (राज्य स्रोत निशक्त जन संस्थान) के नाम पर 630 करोड़ रुपए का घोटाला किया है। बाद में जांच के दौरान घोटाले की रकम और अधिक होनी पाई गई। इन अफसरों के खिलाफ ही हाई कोर्ट ने सीबीआई को एफआईआर दर्ज करने के ​आदेश दिए हैं।

क्या है मामला ?

याचिका के अनुसार, इस पूरे भ्रष्टाचार की नींव 2004 में रखी गई थी। राजधानी से लगे माना 4000 दिव्यांगों के उपचार के नाम पर करोड़ों रूपए खर्च किए गए, लेकिन सारा हिसाब किताब केवल कागजों में मिला। इस मामले में तात्कालीन पंचायत एवं समाज कल्याण विभाग मंत्री रेणुका सिंह के अलावा कई अफसरों के नाम सामने आए हैं। खास बात यह है कि चीफ सिकरेट्री स्तर पर काम कर चुके कुछ सीनियर अफसरों के नाम भी हाईकोर्ट के आदेश पत्र में उल्लेखित हैं।

रायपुर के कुंदन ठाकुर की याचिका पर हुई सुनवाई

इस मामले के याचिकाकर्ता रायपुर निवासी कुंदन ठाकुर हैं। बताया जाता है दिव्यांगों के उपचार के नाम पर सरकारी तंत्र ने जब करोड़ों रूपए की घोटालेबाजी की, तो उसमें कुंदन ठाकुर का भी नाम था। कुंदन ठाकुर को रिकॉर्ड में कर्मचारी बताकर वेतन के रूप में कुंदन के नाम पर रूपए आहरित किए जा रहे थे। जब इसकी भनक कुंदन को लगी, तो उन्होंने अपने स्तर पर जानकारी जुटाकर हाईकोर्ट में एक अर्जी दाखिल की।

हाईकोर्ट के एकलपीठ न्यायमूर्ति मनीन्द्र श्रीवास्तव ने इस प्रकरण की प्रारंभिक सुनवाई के बाद माना कि यह साधारण मामला न होकर जनहित याचिका के रूप में स्वीकार करने योग्य है। इसलिए आगे की सुनवाई युगलपीठ ने की। याचिकाकर्ता के वकील देवर्षि ठाकुर ने बताया कि हाईकोर्ट के जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्रा और जस्टिस पार्थ प्रतिम साहू के युगलपीठ ने यह महत्वपूर्ण फैसला दिया है।

आपको बता दें, हाईकोर्ट में यह मामला सन 2017 से चल रहा है। इस बीच अदालत ने कई बार शासन से इस संबंध में जवाब भी मांगा। न्यायालयीन सूत्रों के अनुसार, एक शपथपूर्वक जवाब में शासन ने यह स्वीकार भी किया है कि ऐसी गड़बड़ी दोबारा ना हो, इसके लिए समुचित व्यवस्था और सावधानी सुनिश्चित की जाएगी।

जैसे ही इस मामले में हाईकोर्ट का फैसला आया, इसकी खबर बार-बेंच से निकलकर विपक्ष, प्रशासन और सत्ता के गलियारों तक जंगल में लगी आग की तरह फैल गई। आला पदों पर रहे मंत्री, अफसरों पर एकमुश्त सप्ताह भर के भीतर एफआईआर दर्ज करने के हाईकोर्ट के निर्देश ने हर जगह हड़कंप मचा दिया। दरअसल, इसमें प्रशासनिक अधिकारियों के अलावा समाज कल्याण विभाग के अंतर्गत दिव्यांगों के नाम पर बजट लेने वाले कई एनजीओ और उनके कर्ताधर्ताओं के नाम भी सामने आने की संभावना है।

इसीलिए हाईकोर्ट के इस निर्देश के कारण छत्तीसगढ़ के कई एनजीओ और कई स्वयंसेवी संस्थाओं में भी खलबली मची हुई है। इस मामले में याचिकाकर्ता की ओर से पैरवी कर रहे अधिवक्ता देवर्षि ठाकुर का अनुमान है कि पूरे देश में आईएएस के खिलाफ चल रहे भ्रष्टाचार के पांच बड़े मामलों में से छत्तीसगढ़ का एक मामला यह भी है।

फैसले को रखा था सुरक्षित

बता दें कि इसी साल 30 अप्रैल की सुनवाई के दौरान दोनों पक्षों की ओर से बहस पूरी होने के बाद हाई कोर्ट एक्टिंग चीफ जस्टिस के डिवीजन बैंच ने आदेश के फैसले को सुरक्षित रख लिया था. याचिकाकर्ता के अधिवक्ता देवर्षी ठाकुर ने बताया था कि मामले की सुनवाई में चीफ जस्टिस ने कहा था कि करप्शन का रास्ता सिर्फ एक जगह जाना चाहिए वो है दंड या जेल।

2004 में बनी थी संस्था

बता दें कि रायपुर के कुशालपुर में रहने वाले कुंदन सिंह ठाकुर ने हाई कोर्ट में जनहित याचिका दायर की थी। याचिका में कहा गया है कि प्रदेश में रिटायर्ड और वर्तमान अफसरों ने 2004 में एक संस्था बनाई थी। राज्य श्रोत निशक्त जन संस्थान के नाम से बनी संस्था का माना में संचालित होना बताया गया था। कुंदन का आरोप है कि वर्तमान एवं रिटायर्ड अधिकारियों ने उसके अलावा ऐसे कई कर्मचारियों के नाम पर हर महीने लाखो की सैलरी निकाल ली है, जो उन्हें पता भी नहीं है। इसके अलावा उपकरणों के मरम्मत के नाम पर भी पैसे निकाले गए हैं। संस्था मौके पर नहीं है। इसे सिर्फ कागजों पर ही संचालित किया जाता रहा है। सीबीआई को संबंधित अफसरों पर एफआईआर दर्ज करने के आदेश हैं।