रायपुर 20 जून, 2019। छत्तीसगढ़ के सरकारी अस्पतालों में सरकार चीफ एग्जीक्यूटिव ऑफिसर (सीईओ) की नियुक्ति करने जा रही है। इस पर बीते दिनों बैठक में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने स्वास्थ्य सचिव निहारिका बारिक को निर्देशित किया था। इस पर विभागीय स्तर पर कार्यवाही तेज हो गई है। सीईओ की नियुक्ति होने से अधीक्षक का पद रहेगा या फिर नहीं यह अभी तक स्पष्ट नहीं है, मगर वर्तमान में अधीक्षक का प्रशासनिक दायित्व संभाल रहे स्पेशलिस्ट, सुपरस्पेशलिस्ट डॉक्टर्स को मुक्ति मिल जाएगी।
अब यह पद कैसे सृजित होगा, इसे लेकर सचिव ने संचालक स्वास्थ्य सेवाएं शिखा राजपूत तिवारी को 13 जून को पत्र लिखा है।
कहा है- ‘किस पद को समर्पित करके क्या सीईओ का पद लिया जा सकता है? एवं चिकित्सालयों में सीईओ के क्या-क्या कार्य होंगे, बताएं’।
सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक अस्पतालों में नए सिरे से पद संरचना होगी। सीईओ पूरी तरह से प्रशासनिक कार्य देखेंगे। सीईओ बनने के लिए डॉक्टर होना आवश्यक नहीं होगा। सीईओ की योग्यता क्या होगी, यह भी तय होना शेष है।
बता दें कि यह मुद्दा बीते दिनों स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव द्वारा ली गई विभागीय समीक्षा बैठक में उठा था। आंकड़े बताते हैं कि प्रदेश में विशेषज्ञ डॉक्टर्स के 50 फीसद से अधिक पद खाली हैं। ‘नईदुनिया’ ने इस पर स्वास्थ्य संचालक से संपर्क किया, लेकिन उन्होंने इस बारे में कुछ भी जवाब नहीं दिया।
पूर्व से है ऐसी ही संरचना
पूर्व से अस्पताल अधीक्षक के साथ-साथ सीएमएचओ, संयुक्त संभागीय आयुक्त, केंद्र और राज्य की योजनाओं के संचालन के लिए जिला और राज्य में नोडल अफसर स्पेशलिस्ट को ही बनाया जाता है। वे हैं भी। अब इस संरचना में बदलाव होगा, तो नाराजगी तय है। क्योंकि यह पद सीनियारिटी वाले होते हैं, पदोन्नति पद भी हैं।
अधीक्षक ओपीडी में नहीं बैठते, ऑपरेशन नहीं करते
सीइओ की नियुक्ति को लेकर इसलिए सरकार जोर दे रही है, क्योंकि शिकायतें हैं प्रशासनिक कार्यों में होते हुए अधीक्षक जो स्पेशलिस्ट डॉक्टर भी हैं, अपनी मूल जिम्मेदारी यानी डॉक्टरी नहीं करते। ओपीडी नहीं जाते, न ही ऑपरेशन करते हैं। इससे उनकी योग्यता का लाभ अस्पताल को, मरीजों को नहीं मिल पाता है।
पिछली सरकार में भी बनी थी योजना
पिछली सरकार के कार्यकाल में तत्कालीन चिकित्सा शिक्षा संचालक प्रताप सिंह (आइएफएस) ने मेडिकल कॉलेज में प्रशासनिक अफसर की नियुक्ति (डीन के ही समकक्ष) की रूपरेखा तैयार की थी। मगर बाद में इस पर कोई खास काम नहीं हुआ। तब डॉक्टर्स द्वारा इसका आंतरिक रूप से विरोध किया गया था।