अतीत के कंधों पर चढ़कर, वर्तमान यहां तक पहुंचा है… अतीत के ताने-बाने में ही, वर्तमान कहीं छुपा है…

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वरिष्ठ पत्रकार शंकर पांडेय की कलम से
भारत के प्रतीक चिन्ह चार शेरों वाली प्रतिमा, जो अशोक स्तंभ के शिखर पर लगी थी इसे इस्वी सन शुरू होने के 250 साल पहले सम्राट अशोक ने बनवाया था, इसके नीचे लिखा है ‘सत्यमेव जयते’। यह मुण्डक उपनिषद से लिया गया है। सत्यमेव जयते का अर्थ होता है सत्य की हमेशा विजय होती है। वैसे यह गर्व का विषय है कि छत्तीसगढ़ का सत्यमेव जयते से गहरा नाता रहा है। छग के एक राज परिवार के ध्वज में “सत्यमेव जयते ” का उल्लेख है तो मुण्डक उपनिषद के रचयिता मण्डूक ऋषि की तपोभूमि ‘मदकूद्वीप’ माना जाता है। वैसे यह शोध का विषय है पर यह छत्तीसगढ़ के प्राचीन इतिहास पर नई रोशनी डाल सकता है। सत्यमेव जयते और अशोक चक्र को सारनाथ में अभी भी स्थापित अशोक स्तंभ से लिया गया है। यह प्रतिमा सारनाथ के संग्रहालय में रखी गई है। इसमें चार शेरों के नीचे एक घेरे में एक हाथी, एक घोड़ा और एक नंदी है। जिनके बीच में धर्मचक्र है और इसी के नीचे लिखा है सत्यमेव जयते। सत्यमेव जयते मूलत: मुण्डक उपनिषेद से लिया गया है। भारत के राष्ट्रीय प्रतीक के नीचे यह देवनगरी लिपी में अंकित है। सत्य मेव जयते मूण्डक उपनिषद का सर्वज्ञात मंत्र 3.1.6 है। वैसे इसे राष्ट्रीय पटल में लाने 1918 में कांग्रेस के सभापति मदन मोहन मालवीय की महत्वपूर्ण भूमिका रही है।


छत्तीसगढ़ से नाता…
रायपुर-बिलासपुर सड़क मार्ग में बैतलपुर के पास शिवनाथ नदी के बीचो-बीच एक प्राकृतिक टापू है जिसका नाम है ‘मदकू द्वीप’l शिवनाथ नदी की धाराएं यहां ईशान कोण में बहने लगती है। वास्तुशास्त्र के मुताबिक यह दिशा सबसे पवित्र मानी जाती है। शिवनाथ नदी के बहाव के इस स्थान मदकूद्वीप को दो हिस्सो में प्राकृतिक रूप से बांट दिया है। एक हिस्सा 35 एकड़ का है तो दूसरा करीब 50 एकड़ का भूभाग है। 2011 में उत्खनन से यहां 10-11 वीं सदी के कल्चुरीकालीन मंदिरों के समूह मिले हैं। यहां तीसरी सदी दो अभिलेख भी मिले हैं जिसमें एक ब्राम्ही लिपी में है उसके किसी अक्षय निधि का उल्लेख है तो शंख लिपी के अभिषेक भी मिले हैँ जो अस्पष्ट है। यहां द्वादश शिवलिंगों की प्रकृति के 2 शिव मंदिर और एक चतुर्भुजी गमेश की प्रतिमा भी प्राप्त हुई है। यहां एक चर्च भी पाया गया है। सूत्रों की मानें तो 110 सालों से मसीही मेला भी लगता है।


वैसे मदकू द्वीप को मण्डूक ऋषि की तपोस्थली के रूप में प्रतिष्ठा है उन्हीं के नाम पर द्वीप का नामकरण भी किया गया है। इतिहासवेत्ता प्रो. विष्णु सिंह ठाकुर ने कुछ प्रमाणों के आधार पर इसे मण्डुक ऋषि की तपोभूमि होना चिन्हित किया है। यहां गहन उत्खनन का शोध भी हो रहे हैं। यदि यह माण्डुक ऋषि की तपोभूमि है तो हो सकता है कि माण्डुक उपनिषद की रचना भी ऋषि ने यही की होगी… तब जाहिर है कि उसी माण्डुक उपनिषद के ही मंत्र से सत्यमेव जयते लिया गया है, सम्राट अशोक के स्तंभ से यह लिया गया है। सम्राट अशोक का सिरपुर के प्राचीन बौद्ध कालीन शिक्षा केंद्र से संबंध रहा है… तो क्या सत्यमेव जयते, सम्राट अशोक तथा छत्तीसगढ़ के मदकू द्वीप तथा सिरपुर में कोई संबंध रहा है…यह गहन शोध का विषय है। यदि माण्डुक ऋषि की तपोभूमि मदकूद्वीप, मण्डुक उपनिषद तथा सत्यमेव जयते की उत्पत्ति का केंद्र छत्तीसगढ़ रहा है? तो यह छग के लिए गर्व की बात होगी।


छग के राजपरिवार का ध्वज और सत्यमेव जयते….
प्राचीन से ब्रिटिशकाल की स्थापना तक छत्तीसगढ़ एक पृथक एवं स्वतंत्र राजनीतिक इकाई के रूप में रहा। मौर्य सम्राज्य की के विघटन के बाद यहां स्वतंत्र राजवंशों का शासन रहा। खैरागढ़ के राजा लक्ष्मीनिधि राय के दरबारी कवि दलराम ने छत्तीसगढ़ का पहली बार अपनी रचना में उपयोग किया। रतनपुर राज्य के कवि गोपालकृष्ण ने 1869 तथा इतिहासकार बाबू रेवाराम ने हैहयवंशी राजाओं के कार्यकाल में 1893 में छत्तीसगढ़ शब्द का प्रयोग किया।


खैरागढ़ राज्य के प्रथम
शासक या संस्थापक लक्ष्मी निधि कर्ण को माना जा सकता है। 1759 से 1833 तक यहां राजा टिकैतराम के शासनकाल में यहां की प्रशासनिक व्यवस्था सुदृढ़ होने लगी। यहां पहले सिंह तथा 1887 में राजा की पदवी ब्रिटिश सरकार ने दी। खैरागढ़ राज्य रियासत का एक ध्वज बड़ी मुश्किल से मिला है। तब इस ध्वज तथा लोगों (प्रतीक चिन्ह) में मंदिर, महल, सांप आदि को स्थान दिया गया और सबसे नीचे अंग्रेजी में ‘सत्य मेव जयते लिखा था। यह ध्वज और मोनो आजादी के पहले का है। खैर छत्तीसगढ़ के पिछड़ा (लोग कहते थे) जैसे क्षेत्र में एक राजपरिवार के ध्वज और मोनो में ‘सत्य मेव जयते ‘ का लिखा होना कहीं न कहीं से छत्तीसगढ़ के इस वाक्य से प्राचीन संबंध होने की गवाही तो देता ही है…।


छत्तीसगढ़, छायावाद के जनक….
छत्तीसगढ़ में बिलासपुर के एक छोटे से गांव बालपुर में जन्म लेने वाले मुकुटधर पांडे का महानदी का प्राकृतिक चित्रण तथा छायावाद के जनक के रूप में नाम अमिट हो गया है।


महानदी पर उनका कवितामय चित्रण….
कितना सुंदर और मनोहर
महानदी ये तेरा रूप…
कल-कल मय निर्मल जलधारा
लहरों की है छटा अनूप….
तुझे देखकर शैशव की है स्मृतियां
उसमें उठती जाग….
लेता है किशोरकाल का अंगड़ाई
अल्हड़ अनुराग…


अब छायावाद के जनक होने की बात करें… 1904 में मात्र 14 साल की उम्र में उनकी कविता आगरा से प्रकाशित एक पत्रिका में छपी थी।एक बार आधी रात को मुकुटधर पांडे की किसी पक्षी के करूण, विलाप से नींद खुल गई, करूणा से हृदय तार तार हो गये… उन्होंने करूण विलाप कर रही


“कुररी” पर कविता लिख डाली तब उन्हें ही नहीं पता था कि उन्होंने छायावाद की कविता की नींव डाल दी है। उनकी इसी कविता के बाद छायावाद का नाम प्रचलन में आया…
अंतरिक्ष में करता है तू क्यों
अनवरत विलाप.. ।
ऐसी दारूण व्यथा, तुझे क्या है
किसका परिताप.. ।
किस गुप्त दुस्कृति की स्मृति
क्या उठी हृदय में आग…
जला रही तुझको अथवा
प्रिय वियोग की आग…
शून्य गगन में कौन सुनेगा
तेरा विपुल विलाप…
बता कौन सी व्यथा तुझे है
है किसका परिताप..l
पं. मुकुटधर पांडे उन यशस्वी साहित्यकारों में है जो अपनी कम रचनाओं के बावजूद साहित्य में अमर हो गये।


और अब बस…
• सीपी एण्ड बरार राज्य में मुख्यमंत्री पं. रविशंकर शुक्ल, नेता प्रतिपक्ष ठाकुर प्यारेलाल सिंह तथा विधानसभा अध्यक्ष घनश्याम दास गुप्ता थे और तीनों छत्तीसगढ़ से थे।
• मुगलों के कारावास से निकले शिवाजी महाराज छग होकर ही महाराष्ट्र गये थे।
• पं. माखनलाल चतुर्वेदी ने बिलासपुर जेल के बैरक नं.9 में 28 फरवरी 1922 को प्रसिद्ध कविता
• “पुष्प की अभिलाषा” लिखी थी।
• अंग्रेजों के दांत खट्टे करने वाले वीर नारायण सिंह को अभी भी ‘शहीद’ का विधिवत दर्जा नहीं मिला है।