ANALYSIS: कांग्रेस की रणनीति से बनी सत्ता की चॉबी, नेताओं की अपनी जिम्मेदारी से बनी 15 साल बाद सरकार

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सीजी मेट्रो डॉट कॉम/रायपुर/मनोज कुमार साहू

रायपुर। छत्तीसगढ़ में 65 प्लस का दावा करने वाली भाजपा के लिए विधानसभा चुनाव 2018 का रिजल्ट एकदम उलटा पड़ गया है। छत्तीसगढ़ में कांग्रेस को स्पष्ट बहुमत मिल गई है। खबर लिखे जाने तक कांग्रेस के पक्ष में 67 सीटों का रुझान था। जो कि स्पष्ट हैं 65 प्लस तो पार कर ही लेगी। लेकिन खबसे खास बात ये है कि किसी ने भी नहीं सोचा था कि कांग्रेस इनती बड़ी बहुत से सरकार बनाएगी। इसके पीछे कांग्रेस की रणनीति एक बहुत बड़ा कारण है। कांग्रेस पिछले तीन साल से 15 साल के वनवास खत्म करने का प्रयास कर रही थी। आज इसका परिणाम स्पष्ट दिखाई दिया है।

कांग्रेस अपने नेताओं को जोड़ती गई

छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार बनने का एक बड़ा कारण संगठन की रणनीति है। छत्तीसगढ़ में कांग्रेस अपने नेताओं को जोड़ते गई और कांग्रेस की मजबूती का ढांचा तैयार होता गया। पार्टी जुलाई 2017 में पीएल पुनिया को छत्तीसगढ़ कांग्रेस के प्रदेश प्रभारी के रुप में जिम्मेदारी दी। तब से ये सिलसिला जारी रहा। पुनिया ने भी प्रदेश के शीर्ष नेताओं के बैठक कर बार बार संगठन को मजबूत करने की बात करते रहे। इसके बाद पार्टी ने एक-एक कर जोड़ना शुरु किया। पिछली दफा 2013 का विधानसभा चुनाव हारने के बाद भूपेश बघेल को जब प्रदेश की कमान सौंपी तो उनके खेमे में काफी उत्साह देखने को मिला था लेकिन उनके काम करने के तरीके से उनके ही समर्थक खफा होने लगे थे। इसी बीच के साथ संगठन मजबूत करने की चिंता तो बने रहती थी। लेकिन जब चुनावी समर आया और पार्टी ने चुनावी मैराथन शुरु किया। जिसके बाद लगातार अपने नेताओं को नए-नए दायित्व सौंपकर पार्टी को संगठित करने का काम करने लगी।

एक ओर जब भाजपा बूथ के स्तर पर पन्ना प्रभारी की बात कर रही थी तब कांग्रेस के पास संगठन के नाम पर ब्लॉक के नीचे कोई ढांचा ही नहीं था। इस कमज़ोरी को पुलिया और भूपेश ने पहचाना और बूथ स्तर पर काम करना शुरू किया।

सभी बड़े नेताओं को दी गई जिम्मेदारी

पूर्व केंद्रीय मंत्री रहे डॉ. चरणदास मंहत को चुनाव अभियान समिति का अध्यक्ष बनाया गया। जिसके बाद मंहत का खेमा पूरी तरह से रिचार्ज हो गया। और प्रदेश भर में अपने अपने स्तर पर काम करने लगा। इसी तरह नेता प्रतिपक्ष को भी कई जगह शीर्ष पदों पर रखा गया। साथ ही वे विधानसभा का नेता प्रतिपक्ष बनाकर नेतृत्व करने का मौका दिया गया। जिसे उन्होंने बखूबी निभाया। यहीं नहीं ताम्रध्वज साहू को भी ओबीसी सेल का राष्ट्रीय अध्यक्ष होने के बावजूद प्रदेश चुनाव अभियान समिति, केंद्रीय कमेटी जैसे कई महत्वपूर्ण पदों का दायित्व सौंपा। जिनका खाकर प्रभाव दुर्ग संभाग की 20 सीटों पर देखने को मिला और उसका परिणाम भी अच्छा हुआ।

पूर्व केंद्रीय मंत्री चरणदास महंत को जब चुनाव अभियान समिति का प्रमुख बनाया है। तब महंत के अलावा पीसीसी चीफ में भूपेश बघेल, नेता प्रतिपक्ष टीएस सिंहदेव, ओबीसी सेल के राष्ट्रीय अध्यक्ष ताम्रध्वज साहू, कांग्रेस आदिवासी कमेटी के प्रदेश अध्यक्ष रामदयाल उईके (हालांकि चुनाव से पार्टी छोड़ दी थी), आदिवासी कांग्रेस के उपाध्यक्ष मनोज मंडावी, विधायक देवती कर्मा, विधायक धनेंद्र साहू, पूर्व नेता प्रतिपक्ष रविंद्र चौबे, मोहम्मद अकबर, पूर्व मंत्री सत्यनारायण शर्मा, रूद्र गुरू, चिंतामणि महाराज, पूर्व मंत्री अमितेश शुक्ला को समिति में शामिल कर बड़ा होने का एहसास दिलाया हैं।

बड़े नेताओं के मैदान पर होने से पड़ा बड़ा प्रभाव

इस चुनाव में कांग्रेस के सभी दिग्गज नेता चुनाव मैदान पर थे। जिनकी वजह से कांग्रेस को बड़ा फायदा हुआ। सरगुजा की बात करे तो संभाग की सभी 14 सीटों पर नेता प्रतिपक्ष टीएस सिंहदेव का वर्चस्व रहा। यहीं वजह हैं कि नेता प्रतिपक्ष 33 हजार वोटों से जीते भी और अपने क्षेत्र में 11 सीटों पर जीत दर्ज कराई। इसी तरह पूर्व केंद्रीय मंत्री डॉ. चरणदास मंहत को चुनाव मैदान पर उतारा जिसका परिणाम ये हुआ कि बिलासपुर संभाग की 24 सीटों पर सीधा असर पड़ा और पिछली बार की तुलना में ज्यादा सीटे आयीं। वहीं दुर्ग ग्रामीण से प्रतिमा चंद्राकर को टिकट देने के बाद भी पार्टी ने उनका टिकट वापस लेकर कांग्रेस ओबीसी सेल के राष्ट्रीय अध्यक्ष ताम्रध्वज साहू को इस सीट से उतार कर बड़ा दाव खेला। और अपनी सीट जीतने के साथ ही बेमेतरा जिले की सभी 3 सीट और दुर्ग जिले की 5 सीटों पर प्रभाव डाला। पूर्व नेता प्रतिपक्ष रविंद्र चौबे का भी उनके गृहजिले में काफी प्रभाव पड़ा। पार्टी ने दिवंगत रविशंकर शुल्क के पोते अमितेश शुल्क को चुनाव मैदान पर उताकर शुक्ल परिवार को भी जोड़ने की कोशिश की।

कांग्रेस की इस रणनीति से सत्ता हासिल करने में पार्टी के सभी नेताओं ने ऐड़ी चोटी लगा दी थी। इस चुनाव से सबसे खास बात ये देखने को मिली कि इसबार पार्टी के कोई भी नेता बगावती तेवर नहीं दिखाए। अगर किसी को टिकट नहीं मिली तो उसने घर बैठ गए या फिर कोई काम नहीं किया। या फिर दूसरे विधानसभा क्षेत्र में कांग्रेस के पक्ष में प्रचार किये। इन्ही एकजुटता से आज ये परिणाम सामने है।

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