उपभोक्ता फोरम ने रेलवे पर लगाया हर्जाना.. आरक्षण करने के बाद ट्रेन में नहीं लगाया स्लीपर कोच..

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भिलाई। आरक्षण करने के बाद यात्रा के दिन ट्रेन में परिवादी और उसकी पत्नी द्वारा आरक्षित कराई गई स्लीपर बर्थ वाले कोच को ट्रेन में नहीं लगाया गया और इसके संबंध में किसी प्रकार की जानकारी या सूचना भी परिवादी को नहीं दी गई, जिसके लिए रेलवे को सेवा में निम्नता का जिम्मेदार मानते हुए जिला उपभोक्ता फोरम के सदस्य राजेन्द्र पाध्ये और लता चंद्राकर ने रु. 13247 हर्जाना लगाया।

परिवादीगण की शिकायत

परिवादी रामलखन पांडे एवं उसकी पत्नी श्रीमती प्रभा पांडे ने ट्रेन नंबर 15232 गोंदिया बीजेयू एक्सप्रेस में दिनांक 03.11.2017 की यात्रा के लिए आरक्षण करवाया। परिवादीगण को ट्रेन के कोच नंबर एस 4 में दो अलग-अलग बर्थ आबंटित की गई। यात्रा दिनांक को जब ट्रेन दुर्ग रेलवे स्टेशन पहुंची तब तब उसमें कोच एस 4 नहीं लगा था। ट्रेन में भारी भीड़ थी, परिवादीगण ने ट्रेन में सुविधाजनक एवं सुखपूर्वक यात्रा करने हेतु निर्धारित आरक्षण शुल्क देकर टिकट प्राप्त किया परंतु उन्हें यात्रा के दौरान आरक्षण वाली कोई सुविधा नहीं मिल सकी।

रेलवे का जवाब

रेलवे ने प्रकरण में उपस्थित होकर या दलील दी कि एस 4 बोगी की मरम्मत होना अत्यंत आवश्यक हो गया था इस कारण उसे ट्रेन के साथ संलग्न नहीं किया जा सका था, उसे रिपेयर किया जा रहा था उसके स्थान पर सामान्य श्रेणी की बोगी को लगाया गया था तथा प्रत्येक स्टेशनों पर संचार के माध्यम से यात्रियों को सूचना दी जा रही थी की एस 4 के स्थान पर सामान्य श्रेणी के कोच में यात्री यात्रा कर सकते हैं।

फोरम का फैसला

दोनों पक्षों के कथनों और प्रकरण में पेश प्रमाणों के आधार पर जिला उपभोक्ता फोरम ने यह पाया कि यदि मरम्मत के चलते कोच संख्या एस 4 को ट्रेन में संलग्न नहीं किया जा रहा था तो इसकी सूचना परिवादीगण को उचित माध्यम से दी जानी चाहिए थी, रेल्वे द्वारा आरक्षण टिकट बुक करते समय प्रत्येक यात्री का मोबाइल नंबर लिया जाता है, जिसमें कॉल द्वारा या एसएमएस से सूचित किया जा सकता था परंतु रेलवे ने ऐसी कोई कार्यवाही नहीं की। जब परिवादीगण ने यात्रा हेतु आरक्षित श्रेणी की टिकट बुकिंग की थी तो रेल्वे की यह जिम्मेदारी बनती थी कि वह उसी स्तर की वैकल्पिक सुविधा प्रदान करने की व्यवस्था करता परंतु रेल्वे ने आरक्षण शुल्क लेने के बाद भी ट्रेन के सामान्य कोच में यात्रा कराई, जिससे परिवादीगण को आरक्षण स्तर की सुविधा प्राप्त ही नहीं हो सकती थी।

फोरम ने रेलवे के इस बचाव को भी खारिज कर दिया कि उसके द्वारा संचार माध्यम से यात्रियों को सूचना दी जा रही थी क्योंकि ऐसी सूचना प्रसारित करने संबंधी कार्यवाही के दस्तावेज एवं प्रमाण प्रकरण में रेलवे द्वारा पेश नहीं किए गए। जिला फोरम के सदस्य राजेन्द्र पाध्ये और लता चंद्राकर ने यह माना कि आरक्षित श्रेणी की सुविधाजनक और सुखपूर्वक यात्रा के लिए जो एक व्यक्ति आरक्षित टिकट लेगा वह भला सामान्य श्रेणी में कष्ट पदयात्रा के लिए क्यों तत्पर रहेगा।

परिवादीगण ने सुविधाजनक और सुखपूर्वक यात्रा हेतु यात्रा दिनांक से पहले ही अपनी बर्थ बुक कराई थी परंतु उन्हें वह सुविधा प्राप्त नहीं हो सकी जिसके वे हकदार थे। जिला उपभोक्ता फोरम के सदस्य राजेन्द्र पाध्ये और लता चंद्राकर ने रेलवे को सेवा में निम्नता का जिम्मेदार मानते हुए रु. 13347 हर्जाना लगाया जिसके तहत मानसिक कष्ट की क्षति स्वरूप रु. 6000, शारीरिक पीड़ा की क्षति स्वरूप रु. 6000, यात्रा टिकट की आधी राशि रु. 247 तथा वाद व्यय रु. 1000 परिवादियों को अदा करने का आदेश दिया गया।