ड्रोन कितना बड़ा खतरा:भारत में दो दिन में दो ड्रोन अटैक की साजिश, इससे निपटने के लिए मॉनिटरिंग कारगर; जानिए क्या कहते हैं एक्सपर्ट …

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नई दिल्ली 29 जून 2021| देश में दो दिन के भीतर दो ड्रोन अटैक की साजिश की गई। जम्मू में शनिवार की रात एयरबेस पर ड्रोन से दो ब्लास्ट किए गए। इसके बाद रविवार की रात जम्मू के ही कालूचक मिलिट्री बेस पर ड्रोन नजर आया। एक्सपर्ट का कहना है कि ड्रोन अटैक से बचने के लिए तकनीक और वेपंस के अलावा ड्रोन की मॉनिटरिंग और इसकी बिक्री का रेगुलराइजेशन कारगर तरीका है।

भारत में ड्रोन अटैक्स की साजिश रची जा रही है, ये अटैक किस तरह होते हैं?
ड्रोन से हमले की तकनीक दुनिया में काफी साल से जगह-जगह इस्तेमाल हो रही है। भारत के लिए ये हमले नए हो सकते हैं, लेकिन साजिश में ड्रोन का इस्तेमाल नया नहीं है। पंजाब में हथियार सप्लाई का मामला इसका उदाहरण है। इसके अलावा जम्मू-कश्मीर जैसे सेंसटिव इलाके में पहले भी इनके जरिए हथियारों की सप्लाई की कोशिश की जा चुकी है।

दरअसल, ड्रोन दो तरीकों से हमला करता है। पहला- ऐसे ड्रोन पर बम या विस्फोटक लगे होते हैं। इनका टारगेट पहले से सेट रहता है। ये काम GPS जैसी तकनीक से किया जा सकता है। ड्रोन लोकेशन या टारगेट पर बम ड्रॉप करता है। ये बम भी ऐसे होते हैं, जो गिरने के साथ ही ब्लास्ट होते हैं। इसके अलावा ऐसे भी जिनकी टाइमिंग सेट की जा सकती है। दूसरा- ड्रोन टारगेट पर खुद बम के साथ ड्रॉप हो जाते हैं।

भारत में ऐसे हमलों से बचने के लिए क्या व्यवस्था है?
इंडियन इंटेलिजेंस के पास ड्रोन की खरीद-बिक्री को लेकर निश्चित तौर पर इन्फॉर्मेशन होती हैं। इसके जरिए मॉनिटरिंग की जाती है। इसके अलावा बड़े एयरबेस, मिलिट्री बेस और इंटरनेशनल एयरपोर्ट्स पर AVIAN रडार जैसी अत्याधुनिक तकनीकें भी हैं। इनकी रेंज 10-15 किलोमीटर होती है। इनके जरिए चिड़िया को भी मॉनिटर कर लिया जाता है। इसके अलावा मॉनिटर होने पर एंटी एयरक्राफ्ट गन, मिसाइल्स, स्नाइपर्स की मदद से भी ड्रोन जैसे टारगेट को गिराया जा सकता है।

आमतौर पर फायरिंग के जरिए ही इन्हें न्यूट्रिलाइज्ड किया जाता है। जैसा कि हमने जम्मू के केस में देखा है। इसके अलावा नेट फायर करने वाली गन भी सिक्योरिटी एजेंसीज के पास हैं, जो ऐसे ड्रोन को नेट में फंसा देती हैं और वो जमीन पर आ जाते हैं। सभी बेस, एयरपोर्ट्स, महत्वपूर्ण व्यक्तियों के घरों और उनके काफिलों की सुरक्षा के लिए AVIAN रडार जैसी महंगी तकनीक का इस्तेमाल किया जाना अभी भी सवाल है?

ऐसे हमलों से बचने के और क्या तरीके हो सकते हैं ?
सबसे पहले मॉनिटरिंग और ड्रोन का रेगुलराइजेशन सबसे जरूरी कदम है। बॉर्डर इलाकों और संवेदनशील इलाकों में ड्रोन की खरीद-बिक्री पर पुलिस लोकल लेवल पर ही अलर्ट रहे। दूसरा जिस तरह से आर्म्स की खरीद के लिए लाइसेंस और बेहद मजबूत दस्तावेजों की जरूरत होती है, उसी तरह की व्यवस्था ड्रोन की खरीद बिक्री के लिए भी हो। ताकि, हमारे पास ये रिकॉर्ड्स में हो कि किसने किसको और कैसा ड्रोन बेचा या खरीदा है।

दूसरी चीज है तकनीक। ड्रोन उड़ाने वाले और ड्रोन के बीच के लिंक को जाम करना। ज्यादातर ड्रोन जो पब्लिक इस्तेमाल करती है, उसकी एक कॉमन फ्रीक्वेंसी होती है, इसे जाम किया जा सकता है।

ये ड्रोन हमले कितना बड़ा खतरा बन सकते हैं, कितना नुकसान कर सकते हैं?
जम्मू एयरबेस पर जो हमला हुआ, उसमें छत का हिस्सा टूट गया। दो जवान भी घायल हुए। अब इसे ऐसे देखें कि अगर ब्लास्ट ठीक किसी एयरक्राफ्ट या फिर ऑफिशियल पर हुआ होता तो क्या होता? मानिए लैंड होते वक्त या टेकऑफ के वक्त किसी प्लेन को जमीन पर 10-15 किलोमीटर दूर बैठा शख्स ड्रोन से टारगेट करे तो उसमें बैठे पैसेंजर्स की जान खतरे में पड़ना तय है। इसी तरह से VIP मूवमेंट और डिफेंस मूवमेंट पर भी हमले किए जा सकते हैं।

जम्मू में जो अटैक हुआ, उसके बारे में क्या कहेंगे?
इस अटैक को कोई ऑनग्राउंड वर्कर या आतंकवादी, जो जम्मू में बैठा हो, वह भी अंजाम दे सकता है। इसके अलावा क्रॉस बॉर्डर यानी पाकिस्तान स्थित कोई आतंकवादी संगठन भी इसे अंजाम दे सकता है, क्योंकि बॉर्डर से ये जगह ड्रोन की रेंज में है। ये देश पर हमला है। पाकिस्तान का इसमें हाथ होने की जहां तक बात है, उसे भी पूरी तरह नकारा नहीं जा सकता है।

सबसे पहले ड्रोन हथियार में कब तब्दील हुए?
ड्रोन का इस्तेमाल हथियार के तौर पर अमेरिका में 9/11 अटैक के बाद हुआ था। अक्टूबर 2001 में अमेरिकी सिक्योरिटी एजेंसी ने तालिबानी लीडर मुल्ला उमर को ड्रोन से टारगेट किया था। हालांकि, वह इस हमले में बच गया था। 9/11 के मास्टर माइंड ओसामा बिन लादेन को भी अमेरिकी एजेंसियों ने प्रीडेटर ड्रोन के जरिए ही ढूंढा था।

इसके बाद से अमेरिका ने प्रीडेटर और रीपर ड्रोन अफगानिस्तान में तैनात कर दिए थे। हालांकि, अमेरिका अपने ड्रोन ऑपरेशंस का ऑफिशियल डेटा जारी नहीं करता है। ब्रिटेन की बात करें तो उसने 2014 से 2018 के बीच ईराक और सीरिया में ISIS के खिलाफ 2400 मिशन किए यानी हर रोज करीब दो। इस दौरान 398 बार टारगेट पर स्ट्राइक की।

दुनिया में कॉम्बैट ड्रोन की क्या पोजिशन है?
हाल में सामने आई रिपोर्ट्स के मुताबिक, सर्विलांस के लिए दुनियाभर की फोर्सेस डिफेंस का इस्तेमाल कर रही हैं। कॉम्बैट ड्रोन की बात करें तो अगले 10 साल में दुनियाभर में करीब 80 हजार सर्विलांस और 2 हजार अटैक ड्रोन खरीदे जाएंगे। अमेरिका की योजना अगले 10 साल में एक हजार कॉम्बैट ड्रोन खरीदने की है। इस लिस्ट में चीन का नंबर दूसरा (68), रूस का तीसरा (48) और भारत (38) का चौथा है।