चोरी हुए ट्रक का बीमा दावा नहीं दिया: अब बीमा कंपनी पर लगा 18 लाख का जुर्माना..

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दुर्ग 9 दिसंबर 2019। चोरी हुए ट्रक का बीमा दावा भुगतान नहीं करने को सेवा में निम्नता करार देते हुए जिला उपभोक्ता फोरम के सदस्य राजेन्द्र पाध्ये और लता चंद्राकर ने नेशनल इंश्योरेंस कंपनी पर 18.02 लाख रुपये हर्जाना लगाया।

क्या है मामला

हाउसिंग बोर्ड औद्योगिक क्षेत्र, भिलाई निवासी परिवादिनी गुरमीत कौर ने अपने वाहन ट्रक क्रमांक सी.जी. 07-सी.ए.-7253 का नेशनल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड की भिलाई शाखा से बीमा करवाया था। परिवादिनी का नियमित ड्राइवर छुट्टी पर होने से उसने एक अन्य ड्राइवर सुरेंद्र कुमार पाठक को अपने ट्रक में कोयला लेकर नवंबर 2016 में पहुर जिला जलगांव महाराष्ट्र भेजा लेकिन सामान की डिलीवरी के बाद ड्राइवर ट्रक सहित गायब हो गया, जिसके बाद परिवादिनी ने थाना पहुर में ड्राइवर सुरेंद्र कुमार पाठक के खिलाफ ट्रक चोरी की एफआईआर दर्ज कराई और बीमा कंपनी को सूचना दी। परिवादिनी ने एफआईआर एवं आवश्यक दस्तावेजों के साथ अनावेदक बीमा कंपनी के समक्ष दिनांक 28.11.2016 को बीमा दावा प्रपत्र प्रस्तुत किया गया लेकिन अनावेदक बीमा कंपनी ने अलग-अलग दस्तावेज मांगते हुए परिवादिनी को कई दिनों तक चक्कर लगवाने के बाद अंत में दावा राशि देने से इनकार कर दिया।

अनावेदक का जवाब

प्रकरण उपस्थित होकर बीमा कंपनी ने जवाब दिया कि दिनांक 15.11.2016 को ड्राइवर सुरेंद्र कुमार पाठक के पास वाहन चलाने के लिए वैध ड्राइविंग लाइसेंस नहीं था जो कि बीमा पॉलिसी की नियम व शर्तों का उल्लंघन है इस कारण बीमा कंपनी परिवादी को किसी प्रकार से वाहन की क्लेम राशि देने के लिए उत्तरदायी नहीं है।

फोरम का फैसला

प्रकरण में पेश दस्तावेजों और दोनों पक्षों के तर्कों के पश्चात जिला उपभोक्ता फोरम के सदस्य राजेन्द्र पाध्ये और लता चंद्राकर ने यह पाया कि परिवादिनी का वाहन चोरी होना एक प्रमाणित तथ्य है और बीमा कंपनी ने वाहन के ड्राइवर के वैध ड्राइविंग लाइसेंस के अभाव में दावा खारिज किया है तो यह उचित नहीं है क्योंकि वैध ड्राइविंग लाइसेंस संबंधी शर्त वाहन परिचालन के समय हुई दुर्घटना की स्थिति में ही लागू होती है, चोरी से हुई क्षति की स्थिति में वाहन चालक के वैध ड्राइविंग लाइसेंस का कोई औचित्य ही नहीं है, वाहन चोरी हुआ है ना कि दुर्घटनाग्रस्त हुआ है, ऐसे में बीमा दावा खारिज करने का आधार उचित नहीं है। प्रकरण में परिवादी द्वारा पेश बीमा कंपनी के अधिकारियों के बीच हुए पत्राचार से भी यह साबित हुआ कि बीमा कंपनी के विधि सलाहकार ने परिवादी को बीमा दावा राशि भुगतान किए जाने का अभिमत दिया था इसके लिए कंपनी के अधिकारियों के बीच पत्राचार भी हुआ लेकिन इसके बाद भी परिवादी को दावा राशि का भुगतान नहीं किया गया इससे यह दर्शित होता है कि बीमा कंपनी की मंशा येन केन प्रकारेण दावा खारिज करने की ही थी और वह दावा राशि भुगतान करने से बचना चाहती थी। बीमा कंपनी को सेवा में निम्नता का जिम्मेदार पाते हुए जिला उपभोक्ता फोरम के सदस्य राजेन्द्र पाध्ये और लता चंद्राकर ने 18 लाख 2 हजार रुपये हर्जाना लगाया जिसमें वाहन का बीमित मूल्य 17 लाख 50 हजार रुपये, मानसिक व आर्थिक क्षतिपूर्ति स्वरूप 50 हजार रुपये तथा वाद व्यय 2 हजार रुपये अदा करने का आदेश दिया गया