NRC लिस्ट में नाम नहीं होने से सेना के कई जवान नाराज, गृह मंत्रालय प्रवक्ता ने किया ट्वीट, कहा – ‘एनआरसी की आखिरी लिस्ट में शामिल नहीं हुए जरूरत मंद लोगों को राज्य सरकार कानूनी सहायता प्रदान करेगी..

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03 सितंबर 2019, नई दिल्‍ली। असम के बारापेटा जिले में एक गांव है जिसे फौजी गांव के नाम से जाना जाता है। यहां रहने वाले करीब 200 परिवार के 20 लोग भारतीय सेना में सेवाएं दे रहे हैं। कुछ आर्मी में हैं तो कुछ पैरामिलिट्री फोर्स में। इस गांव के कई जवानों के नाम एनआरसी लिस्ट में नहीं हैं। गौरतलब है कि एनआरसी लिस्ट को 31 अगस्त को पब्लिश किया गया था। गांव के लोगों ने सोमवार को बताया कि ज्यादातर जवानों के नाम एनआरसी लिस्ट में नहीं आया। अब यह सभी भारतीय नागरिकता पाने के लिए लड़ाई लड़ रहे हैं। वहीं, गृह मंत्रालय ने कहा है कि जिन लोगों के नाम सूची में नहीं आए हैं, उन्हें राज्य सरकार कानूनी मदद देगी।

गृह मंत्रालय के प्रवक्ता ने ट्वीट कर कहा, ”एनआरसी की आखिरी लिस्ट में शामिल नहीं हुए जरूरत मंद लोगों को राज्य सरकार कानूनी सहायता प्रदान करेगी। सरकार ने जिला विधिक सेवा प्राधिकरण (डीएलएसए) के जरिए सभी प्रकार की सहायता प्रदान करने के लिए आवश्यक प्रबंध किए हैं।” गांव के ही दिलबर हुसैन के परिवार के कुछ सदस्यों का नाम एनआरसी में नहीं मिला। दिलबर हुसैन सेना में सेवाएं दे रहे हैं। हुसैन के छोटे भाई मिजनूर अली सीआईएसएफ में हैं। एनआरसी लिस्ट में दोनों का ही नाम नहीं है वहीं उनके बड़े भाई सईदुल इस्लाम का नाम लिस्ट में है जोकि सेना में सूबेदार हैं और उन्होंने कारगिल की लड़ाई भी लड़ी।

3 करोड़ 11 लाख 21 हजार 4 लोग वैध करार

एनआरसी के स्टेट कोऑर्डिनेटर प्रतीक हजेला के मुताबिक, अंतिम सूची से 19 लाख 6 हजार 657 लोग बाहर हैं। इसमें वे लोग भी शामिल हैं, जिन्होंने कोई दावा पेश नहीं किया था। 3 करोड़ 11 लाख 21 हजार 4 लोगों को वैध करार दिया गया। अगर कोई लिस्ट से सहमत नहीं है तो वह फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल में अपील कर सकता है। असम में 33 जिले हैं, इनमें से 9 जिलों में मुस्लिम आबादी आधी से ज्यादा है। बताया जाता है कि इन्हीं जिलों में बीते दशकों से बांग्लादेशियों की घुसपैठ काफी हुई है।

असम अकेला राज्य जहां एनआरसी लागू

असम देश का अकेला राज्य है, जहां सिटिजन रजिस्टर है। इस तरह का पहला रजिस्ट्रेशन साल 1951 में किया गया था। 2018 तक 3 साल में राज्य के 3.29 करोड़ लोगों ने नागरिकता साबित करने के लिए 6.5 करोड़ दस्तावेज सरकार को भेजे। ये दस्तावेज करीब 500 ट्रकों के वजन के बराबर थे। इसमें 14 तरह के प्रमाणपत्र थे। इस पूरी प्रक्रिया में करीब 900 करोड़ रु खर्च हुए।