मोदी सरकार का मकसद सांप्रदायिक ध्रुवीकरण करना है, सताए हुओं को शरण देना नहीं: CPI लीडर संजय पराते

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रायगढ़। भाजपा-आरएसएस का मकसद इस देश में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण करना है, सताए हुए लोगों को शरण देना नहीं है। यदि ऐसा होता, तो श्रीलंका के तमिलों, पाकिस्तान के अहमदियों, म्यांमार के रोहिंग्यों को भी और किसी भी देश के किसी भी प्रकार की प्रताड़ना के शिकार लोगों को शरण को देने की बात की जाती। इस देश में म्यांमार और बंगलादेश के प्रताड़ित रोहिंग्यों को शरण देने और श्रीलंका से प्रताड़ित होकर यहां आए लाखों हिन्दू तमिलों को नागरिकता देने से यह सरकार इंकार कर रही है। दशकों पहले जो बंगलादेशी शरणार्थी भारत के नागरिक बने हैं, उनमें अधिकांश दलित और नमः शूद्र संप्रदाय के हैं, लेकिन उन्हें चुनावी वादे के बाद भी आज तक भाजपा सरकार ने अनुसूचित जाति का दर्जा नहीं दिया है। वे विकास नहीं चाहते, लोगों में फूट डालकर, संविधान के धर्मनिरपेक्ष मूल्यों को कुचलकर हिन्दू राष्ट्र की नींव रखना चाहते हैं।

मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के राज्य सचिव संजय पराते ने कल रायगढ़ में उक्त विचार व्यक्त किये। वे शाहीन बाग में ‘संविधान बचाओ, देश बचाओ’ के नारे पर ‘हम भारत के लोग’ मंच पर सीएए-एनपीआर-एनआरसी के विरोध में जुटे सैकड़ों लोगों को संबोधित कर रहे थे। गणेश कछवाहा के संचालन में हुई इस सभा की शुरूआत संविधान की प्रस्तावना के सामूहिक वाचन और अंत राष्ट्र गीत के गायन से हुई।

माकपा नेता ने कहा कि हमारे देश में धर्मनिरपेक्षता की बुनियाद आज़ादी के आंदोलन के दौरान रखी गई थी। लेकिन तब भी संघी गिरोह की विचारधारा इसके खिलाफ थी। वे तब अंग्रेजों की चापलूसी कर रहे थे, आज अमेरिकी ट्रम्प के आगे लहालोट हैं। वे इस देश में मनुस्मृति और वर्णव्यवस्था लागू करना चाहते थे। तब यह विचारों का संघर्ष था, जिसमें इस देश की धर्मनिरपेक्ष-प्रगतिशील ताकतों की जीत हुई थी। लेकिन आज यह कटु शारीरिक संघर्षों में तब्दील हो गया है, क्योंकि वे गोडसे की राजनीति पर चलते हुए हर प्रकार के धतकर्म करने पर उतारू हैं। वे अपने विरोधियों पर गोलियां चला रहे हैं, उन पर कातिलाना हमला कर रहे हैं, वे 6-7 साल की छोटी बच्ची को भी जेल में डाल रहे हैं और अपने विरोधियों पर राष्ट्रद्रोह का केस लगा रहे हैं। वे संविधान से ऊपर उठकर अपने बहुमत के बल पर बनाये गए संविधानविरोधी कानूनों को लोगों पर लादना चाहते हैं।

उन्होंने कहा कि देश और संविधान के ऊपर कोई कानून नहीं हो सकता। जिस कानून में संविधान का बल न हो, उस कानून को मानने के लिए इस देश की जनता बाध्य नहीं है और तमाम राज्य सरकारें आम जनता की इसी भावना को स्वर दे रही है। केरल सहित 10-12 राज्यों की सरकारों ने नागरिकता संशोधन कानून को वापस लेने की मांग की है और अपने राज्यों में एनपीआर लागू न करने की घोषणा की है। पराते ने छत्तीसगढ़ सरकार से भी आग्रह किया है कि अपने व्यक्त इरादों के अनुरूप एनपीआर न करने के लिए अधिसूचना जारी करें।

माकपा नेता ने कहा कि ऐसे समय में, जब देश आर्थिक मंदी के दौर से गुजर रहा है और पैसे न होने का बहाना बनाकर सरकारी खर्चों में भारी कटौती की जा रही है, एनपीआर-एनआरसी जैसी व्यर्थ प्रक्रिया में सरकार लाखों करोड़ रुपये पानी की तरह बहा रही है। इस खर्चे का उत्पादकता बढ़ाने और जीडीपी वृद्धि में भी कोई योगदान नहीं होना है। उन्होंने कहा कि जो सरकार देश के घुसपैठियों को विकास के रास्ते का रोड़ा बता रही है, उसे यह भी नहीं मालूम कि देश में उनकी वास्तविक संख्या कितनी है। असल मे संघ-भाजपा नोटबंदी की तरह ही देश के 130 करोड़ लोगों को अपनी नागरिकता साबित करने की लाइन में लगाना चाहती है, ताकि परेशानी में पड़े लोग उसकी आर्थिक नीतियों के खिलाफ आवाज़ न उठाएं और ताबड़तोड़ तरीके से देश की सार्वजनिक संपत्ति बेचने का उसका खेल जारी रहे। उन्होंने जोर देकर कहा कि यह विकास की नहीं, सर्वनाश की राजनीति है। इसी राजनीति के खिलाफ माकपा का यह देशव्यापी अभियान जारी है।

पराते ने आम जनता से अपील की कि नागरिकता संशोधन कानून को दृढ़तापूर्वक ठुकरा दें और जनगणना में एनपीआर से संबंधित किसी भी प्रश्न का कोई जवाब न दें। एनआरसी के जरिये अपनी नागरिकता खोने के डर से बचने का एकमात्र यही रास्ता है। उन्होंने कहा कि मोदी सरकार का सबसे बड़ा डर यही है कि लोग उससे डरना छोड़ देंगे। पूरे देश में फैल रहे शाहीन बाग इस बात का सबूत है कि लोगों ने अब संघी गिरोह से डरना छोड़ दिया है और इस जनविरोधी सरकार की आंखों में आंखें डालकर कह रही है — हम देखेंगे।