नवरात्रि विशेष: माता का दरबार, उपेक्षा का शिकार.. झरझरा धाम में पत्थर व आदिकाल से लिखा हुआ शिलालेख शोध का विषय..

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परमेश्वर कुमार साहू (छुरा)

गरियाबंद। जिला अनेक धार्मिक स्थलों को अपने आप में सहेजे हुए हैं। संपूर्ण गरियाबंद जिला घने वनों से आच्छादित है। देवी देवताओं के गोद में बसा हुआ गरियाबंद जिला हरियाली, खनिज संपदा एवं अनेक रहस्य को समेटा हुआ है। यहां के धार्मिक माहौल, अटूट आस्था से लोगों का जीवन शांति, खुशहाली एवं समृद्धि से भरा हुआ है। चंहूओर फैली हरियाली लोगों को शांति का संदेश दे रहा है। तो आइए जानते हैं इसी कड़ी में एक और देवी माता झरझरा के धाम के रहस्यो और कहानी को।

माता झरझरा का धाम राजिम से 25 किलोमीटर, गरियाबंद से 45 किलोमीटर, घटारानी धाम से 10 किलोमीटर, जतमई धाम से 11 किलोमीटर की दूरी पर छुरा विकासखंड के ग्राम मुरमुरा के घने जंगलों के बीच 2 किलोमीटर की दूरी पर पहाड़ी पर स्थित है। यह धार्मिक स्थल घटारानी धाम व जतमई धाम के बीचो-बीच प्रखंड में स्थित है। कल कल करते झरने यहां की हरी-भरी वादी मन को अपनी और आकर्षित करता है। जन श्रुति के अनुसार घटारानी, जतमई, निरई, गरजई आदि 21 बहनों में से एक बहन माता झरझरा को माना जाता है ।

सर्वप्रथम सन 1987 में ग्राम मुरमुरा निवासी गेंद राम साहू को माता ने इसे डोंगरी नामक गांव स्थल में अपनी मौजूदगी का आभास कराया और इसी वर्ष गेंद राम साहू ने ग्राम मुरमुरा के गोवर्धन यादव फुलझर के बरसन साहू आदि का सहयोग लेकर प्रथम बार इस घनघोर और वीरान जंगल में ज्योत प्रज्वलित किया गया। इसके बाद गोवर्धन यादव यहां के पुजारी बने जो वर्तमान में भी हैं।

नवरात्र सीजन के चलते माता झरझरा के दरबार में हजारों श्रद्धालु माता के दर्शन करने पहुंच रहे हैं। प्राचीन काल से अंचल के ग्राम मुरमुरा, धुरसा के लोग दीप प्रज्वलित करते आ रहे हैं। माता झरझरा भक्तों के दुखों को दूर कर सभी कष्टों का निवारण करने वाली है। जिसके कारण माता की चमत्कारों की गाथा राज्य के कोने कोने में विख्यात होती जा रही है।

यहां कुंवार नवरात्र में सैकड़ों की संख्या में भक्तों द्वारा मनोकामना ज्योत प्रज्वलित किए हैं। अनेक ऐसी चमत्कारिक घटनाएं जिससे माता झंरझरा लोगों के लिए आस्था का अटूट केंद्र बन गया है। माता झंरझरा को अशुद्धता बिल्कुल बर्दाश्त नहीं है। किदवंती है कि माता जतमई भी किसी स्थान पर निवास करती थी लेकिन लकड़ी के लिए गई महिलाओं ने इस स्थान को अशुद्ध कर दिया जिसके कारण माता जतमई इस स्थान को छोड़कर गायडबरी व कुसुम पानी के मध्य स्थित पहाड़ी पर जाकर विराजमान हो गई। माता जतमई का दक्षिण दिशा में जाने का पद चिह्न स्पष्ट रूप से दिखाई देता है।