अब कहां दुआओं में वो बरकतें, वो नसीहतें, वो हिदायतें…. अब तो बस जरूरतों के जुलूस हैं, मतलबों के सलाम हैं….

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नई दिल्ली, 02 अक्टूबर 2021। देश में किसान आंदोलन के एक साल में कई बार बंद. आयोजित किया गया . हाल ही मे किसान विरोधी कानून वापस लेने भारत बंद का आयोजन किया गया क्योंकि उसी दिन राष्ट्रपति ने इस कानून पर हस्ताक्षर किया था। जनवरी के बाद से केंद्र सरकार ने कोई बातचीत नहीं किया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश के सभी वर्गों से बातचीत करते हैं छात्रों, कोरोना वेरियर्स, डॉक्टर, रसोई गैस सिलेंडर मिलने वाली महिलाओं से आदि आदि से बातचीत की पर किसानों से कोई बातचीत नहीं की….? उनके पास अमेरिका से लौटने के बाद नई लोकसभा, राज्य सभा भवन निर्माण कार्य देखने समय है पर किसानो से बातचीत करने समय नही हैं…..?
लोकसभा के बाद ध्वनिमत से किसी तरह राज्यसभा में मोदी सरकार ने 3 कृषि विधेयकों को पारित करा लिया.. क्या यह किसानों के लिए हितकारी है? यदि ऐसा होता तो पंजाब से कर्नाटक तक, कृषि प्रधान छतीसगढ़, मप्र, हरियाणा, उत्तर प्रदेश बिहार आदि में किसान आंदोलन नहीं शुरू होते…? देश का पेट भरने वाला किसान एक साल से सड़कों पर उतरने को आखिर मजबूर क्यों हैं…? वैसे यह पहली बार नहीं हो रहा है……?किसी भी पार्टी की सरकार देश-प्रदेशों में हो… अन्नदाता कभी धान, कभी गेहूं, कभी गन्ने के बकाया भुगतान,समर्थन मूल्य, कभी प्याज की घटती कीमतों, कभी कारपोरेट के इशारे पर जमीन के बलात अधिग्रहण को लेकर तो कभी खाद, बीज, बिजली, डीजल की रियायती दर की मांग को लेकर सड़क पर उतरते रहते है। कभी उपज की वाजिब कीमत के लिए संघर्षरत आसानी से दिखाई देते हैँ? कृषि उपज की कीमतों को तय करने के लिए एक कमेटी एम.एस. स्वामीनाथन की अध्यक्षता में गठित की गई थी, उसने अपनी लंबी-चौड़ी रिपोर्ट दी है। दिलचस्प यह है कि जो भी विपक्ष में रहता है उसकी रिपोर्ट लागू करने की मांग करता है, सत्तारूढ़ होते ही इसे भूल सा जाता है। मोदी ने भी 2022में किसानों की आय दोगुनी करने का आश्वासन दिया था उसका क्या होगा क्या वह भी जुमला साबित होगा…..,?
बहरहाल मोदी सरकार के तीन नये बिल पर चर्चा करना जरूरी है। पहले बिल पर…. सबसे अधिक चर्चा हो रही है अब किसानों की उपज सिर्फ सरकारी मंडियों में ही नहीं बिकेंगी, बड़े व्यापारी भी उसे खरीद सकेंगे। बिहार में अभी भी सरकारी मंडियों में 9 से 10 फीसदी फसल बिकती है बाकी व्यापारी खरीदते हैं पर वहां मक्का का न्यूनतम समर्थन मूल्य 1850 है और किसान 900 से 1100 प्रति क्विंटल बेचते हैं। किसान यही तो मांग कर रहे हैं कि हर कोई किसान की फसल खरीद सकता है, राज्य के बाहर ले जा सकता है पर इस बिल में यह भी जोड़ दें कि समर्थन मूल्य से कम कीमत पर नहीं खरीदने का प्रावधान हो, दूसरा बिल है… कांट्रेक्ट फार्मिंग को लेकर.. lइसमें कोई भी कारपोरेट किसानों से कांट्रेक्ट करके खेती कर सकेगा। मतलब कोई कारपोरेट आकर किसान की जमीन लीज पर लेकर खेती करने लगेगा पर इसमें गांव के उन गरीब किसानों को सीधा नुकसान होगा जो छोटी पूंजी लगाकर नान रेसिडेंसियल किसानों की जमीन सालभर के लिए लेकर खेती करते हैं। छग में इसे अधिया, टूटिया आदि भी कहते हैं। इसमें किसान या तो फसल का हिस्सा तय कर देते हैं या जितनी फसल होती है उसका आधा -आधा बांट लेते हैं। इस बिल से निश्चित ही गांव के भूमिहीन, सीमांत किसान बदहाल हो जाएंगे और काम की तलाश में पलायन बढ़ेगा, तीसरा बिल है…. एसेंशियल कमोडिटी बिल। जिसके तहत कारोबारी अपने हिसाब से खाद्यान्न और दूसरे उत्पादों का भंडारण कर सकेंगे और दाम अधिक होने पर उसे बेच सकेंगे मतलब अब जमाखोरी गैर कानूनी नहीं रहेगी। बहरहाल तीनों बिल कारोबारी के हित तथा उन्हें खेती के वर्जित क्षेत्र में उतरने के लिए मदद गार साबित होंगे वहीं किसानों को खेती के क्षेत्र से खदेडऩे का एक प्रयास है, किसानी के पेशे में छोटे-मंझोले खेतिहर मजदूरों की बिदाई इन बिलों से लगभग तय मानी जा है…।लॉक डाउन के बाद मजदूरों,छोटे -मंझोले कामगारों को बेरोजगारी का सामना करना पड रहा है वहीं महामारी के हालात में किसानों के इन गैर जरूरी बिल लाने की जरुरत और जल्दी को लेकर भी अब केंद्र सरकार पर सवाल उठ रहे हैँ.. आखिर इन बिलों की मांग किसने की थी किसानों ने या कारपोरेट जगत ने…..?

कका और बाबा…?

छत्तीसगढ में पहले श्याम भैया, विद्या भैया, जोगी साहब (अजीत जोगी)बड़े दाऊ ( चरणदास महंत) राजा साहब ( रामचंद्र सिंहदेव) बस्तर टाइगर (महेंद्र कर्मा)सत्यनारायण भैया, बृज मोहन भैया, साहब (डॉक्टर रमन) आदि की जमकर चर्चा होती थीं फिर छोटे जोगी (अमित) छोटे दाऊ (भूपेश बघेल) बाबा साहब ( टी एस सिंहदेव) आदि की चर्चा तेज हुई अब छग में नेतृत्व परिवर्तन की चर्चा के बीच बयानबाजी, संबोधन की जमकर चर्चा हो रही है, एक कार्यक्रम में मुख्य मंत्री के प्रबल दावेदार टी एस बाबा की मौजूदगी में छग के सीएम भूपेश बघेल ने कहा कि….
“कका अभी जिंदा है” ऐसे में फिर सवाल उठा कि बाबा( बबा )का क्या होगा….! छग के पहले सीएम अजीत जोगी कभी भांटो , कमिहा, लाइका कहलाना पसंद करते थे। रमन सिंह चाऊंर वाले बाबा, फिर दारू वाले बाबा कहलाने लगे। मप्र में शिवराज सिंह मामा, कहलाना पसन्द करते हैं। उन्होंने जब कमलनाथ की सरकार थी तो कहा था “टाइगर अभी जिंदा है…” और वे कमलनाथ की सरकार गिराकर भाजपा की सरकार बनाने में सफल रहे। दरअसल भूपेश बघेल की जगह सिंहदेव कहते कि “बाबा अभी जिंदा है … ” तो बात कुछ और होती तथा चर्चा भी तेज होती.. पर वह तो कह ही चुके हैं कि हाई कमान ने कम बात करने कहा है….? बहरहाल नई चर्चा तेज हो गईं है कि कका या बबा….? वैसे भूपेश बघेल समर्थक 16 विधायक सहित एक संसदीय सचिव पहले तथा बाद में एक सतनामी समाज के मंत्री, एक संसदीय सचिव,एक वर्तमान और एक पूर्व महापौर के भी दिल्ली जाने की खबर तेज है….!

कलेक्टर को असीमित अधिकार….

भारत को नियंत्रित करने , भारत से हजारों किलोमीटर दूर से राज करने अंग्रेजो ने तब के कलेक्टरों को असीमित अधिकार दिए थे, भारत आजाद हो गया पर आज भी कलेक्टर को जिले का राजा कहा जाता है। वैसे आज़ादी के बाद कलेक्टर प्रणाली में बदलाव की बात उठी थीं पर जवाहर लाल नेहरू ने बाद में विचार करने की सलाह दी थीं पर अभी तक व्यवस्था वही की वही है। आज भी कलेक्टर जिले के भीतर कुछ भी कर सकता हैं। यह बात और है कि कुछ वर्षो के भीतर पदस्थापना में राजनेताओं का दखल बढ़ा है उससे कुछ कलेक्टरों की छवि खराब भी हुईं है…! क्योंकि राजनेताओं के दबाव में जिले के कार्यों को चलानें का आरोप भी लगता रहता है।आजादी के पहले से देश में आईसीएस (इंडियन सिविल सर्विस) हावी रही है पहले नौकरशाही के इस शीर्ष पर अंग्रेज अफसर होते थे। आजादी के बाद भारत की लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था के तहत तमाम बदलाव हुए लेकिन एक बात नहीं बदली, वह थी नौकरशाही की विरासत और चरित्र…!आजादी के बाद भले ही आईसीएस को बदलकर आईएएस (भारतीय प्रशासनिक सेवा) कर दिया गया, प्रशासनिक अधिकारियों को लोकसेवक कहा जाने लगा पर बदलाव उतना नहीं आया जितनी उम्मीद की जा रही थी प्रशासनिक अधिकारियों का यह तंत्र आज भी ‘स्टील फ्रेम ऑफ इंडिया” कहलाता है नौकरशाह मतलब ‘तना हुआ एक पुतला’ यह बात और है कि कुछ नये युवा, प्रमोटी आईएएस जरूर स्टील फ्रेम को कुछ लचीला बनाते कभी कभी दिखाई देते हैं।

और अब बस…

0निलंबितएडीजी जीपी सिंह केआय से अधिक संपत्ति के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने गिरफ्तारी से रोक हटा दी है।
0छग के एक आईपीएस तथा एसपी उदय किरण समेट 3 के खिलाफ एफ आई आर होगी। सुप्रीम कोर्ट ने स्थगन हटा दिया है।
0 एक कलेक्टर इंद्रजीत चंद्रावल की 113 दिन में ही राजधानी वापसी हो गई है।
05 अक्टूबर को आईजी, एसपी कॉन्फ्रेंस मुख्यमंत्री ले रहे हैं क्या उसके बाद कुछ अफसर निपटेंगे….?
0 छग में एक प्रशासनिक फेरबदल के शीघ्र होने की भी संभावना है?
03/4 मंत्रियों की कार्यप्रणाली से कांग्रेस आलाकमान खुश नहीं है…,,?