वर्ल्ड रेडियो डे पर उद्घोषकों ने साझा किए अपने अनुभव… सर्किट हाउस में ‘देश के वर्तमान परिवेश में रेडियो की भूमिका’ विषय पर हुआ कार्यक्रम..

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रायपुर। नियोटेक कम्यूनिटी एफएम रेडियो अंबिकापुर सरगुजा द्वारा राजधानी के सर्किट हाउस में वर्ल्ड रेडियो डे पर शनिवार को ‘देश के वर्तमान परिवेश में रेडियो की भूमिका’ विषय पर कार्यक्रम आयोजित किया गया। कार्यक्रम में मौजूद मुख्य अतिथि महापौर एजाज ढेबर ने प्रदेश के पहले इंटरनेट रेडियो सेवा का मोबाइल में बटन दबाकर शुभारंभ किया। इंटरनेट रेडियो आईएसबीएम विश्वविद्यालय से संचालित किया जाएगा। अध्यक्षता कर रहे आकाशवाणी के सहायक निदेशक लखनलाल भौर्य की मांग पर उन्होंने राजधानी में रेडियो पार्क जल्द बनाने की बात कही।

नियोटेक कम्यूनिटी रेडियो के केंद्र निदेशक सुनील पलसकर ने स्वागत भाषण देकर कार्यक्रम का संक्षिप्त परिचय कराया। कार्यक्रम में मुख्य अतिथि एजाज ढेबर ने कहा कि जब देश में सीडी का जमाना आया, टेप चलने लगे तो ऐसा लगा कि अब रेडियो का जमाना गया लेकिन रेडियो की बुनियाद नहीं हिली। मैं कहना हूं कि आज भी रेडियो मंनोरंजन का सबसे बड़ा साधन है। रेडियो को कोई समाप्त नहीं कर सकता। उन्होंने कहा कि रेडियो के महत्व को कोई खत्म नहीं कर सकता। यही कारण है कि प्रधानमंत्री ने मन की बात और मुख्यमंत्री ने लोकवाणी के लिए रेडियो को चुना है। महापौर ने अंत में रेडियो पर आधारित एक गाना भी सुनाया। कार्यक्रम का संचालन श्वेता शर्मा तथा आभार प्रदर्शन सुनील पलसकर ने किया। इस अवसर पर आईएसबीएम विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. आनंद महलवार, अरपा रेडियो की संज्ञा टंडन, रेडियो संवाद से नरेंद्र त्रिपाठी आदि उपस्थित थे।

रेडियो में 45 साल देने वाले अरविंद माथूर का सम्मान

रेडियो के क्षेत्र में करीब 45 साल देने वाले सेवानिवृत्ति उद्घोषक 70 वर्षीय अरविंद माथूर ने कहा कि अंबिकापुर आकाशवाणी के शुभारंभ होने पर वे ही पहले उद्घोषक थे। उन्होंने रेडियो के महत्व को एक किस्सा बताते हुए समझाया कि 1982 में अंबिकापुर क्षेत्र में सैटेलाइट गिरने का अफवाह उड़ा था। इसके बाद कुछ लोगों ने इसे अवसर में बदलते हुए गांव-गांव में जाकर ग्रामीणों को डरा कर उनकी जमीन, मवेशी खरीदने लगे थे। इस पर आकाशवाणी ने दस मिनट का प्रोग्राम शुरू कर लोगों को अफवाह से दूर रहने की बात कही. साथ ही जिला प्रशासन के सहयोग से गांव-गांव में मुनादी कराकर लोगों को जागरुक किया गया। सहायक निदेशक लखनलाल भौर्य, रेडियो संवाद के नरेंद्र त्रिपाठी एवं अरपा रेडियो की संज्ञा टंडन ने भी अपने अनुभव साझा किए।