विश्वास संबंध और समर्पण से ही ईश्वर को प्राप्त किया जा सकता है: इंद्रेश महाराज

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भिलाई। अग्रसेन भवन न्यू खुर्सीपार में चल रहे श्रीमद् भागवत कथा के तीसरे दिन कथावाचक इंद्रेश महाराज ने बताया कि ईश्वर को प्राप्त करने के लिए विश्वास संबंध और समर्पण जरूरी है।ज्ञान धन को तो फिर से प्राप्त किया जा सकता है लेकिन अगर एक बार विश्वास चला गया तो फिर वह कभी लौटकर नहीं आता जीवन में कभी विश्वास की कमी नहीं होने देना चाहिए पांडवों को भगवान श्री कृष्ण पर पूर्ण विश्वास था और जिन्हें भगवान पर विश्वास नहीं होता है वे सदैव दुखी रहते हैं, जगह-जगह अपनी कुंडली दिखाते रहते हैं इसलिए ईश्वर पर विश्वास अत्यधिक जरूरी है।

अभिमन्यु के शिशु की बचाई जान

कथावाचक इंद्रेश महाराज ने महाभारत की समाप्ति के पश्चात भगवान श्री कृष्ण के द्वारका जाते समय के प्रसंग को बड़े ही मधुर तरीके से सुनाया और कहा कि जब अश्वत्थामा बदला लेने के लिए अभिमन्यु के शिशु जो उनकी पत्नी उत्तरा के गर्भ में पल रहा था उसे नष्ट करने के लिए अश्वत्थामा ने ब्रह्मास्त्र छोड़ा तब उत्तरा ने भगवान श्री कृष्ण को अपनी इस व्यथा से अवगत कराते हुए शिशु की रक्षा करने की प्रार्थना की, तब भगवान श्रीकृष्ण सूक्ष्म रूप में उत्तरा के गर्भ में पहुंच गए और उन्होंने अश्वत्थामा के ब्रह्मास्त्र को विफल करके अभिमन्यु के शिशु की रक्षा की। उत्तरा के इसी विश्वास का ही परिणाम था कि भगवान श्री कृष्ण ने उनके शिशु की रक्षा की।

तुम संग रहो इसलिए सारी विपत्ति मुझे दे दो

इंद्रेश महाराज ने भक्ति की पराकाष्ठा को महारानी कुंती के कृष्ण भक्ति की व्याख्या करते हुए बताया की कुंती ने भगवान श्री कृष्ण से एक वचन मांगा और अपने इस वचन में श्री कृष्ण से कहा कि वे संसार की सारी विपत्तियां मुझे दे दें तब श्रीकृष्ण ने कहा कि विपत्तियां क्यों मांग रही हो, तब कुंती ने कहा कि विपत्ति के अवसर पर ही सदैव भगवान का नाम मुख पर आता है सुख के समय नहीं आता है इसलिए वह विपत्ति मांग रही है। इंद्रेश महाराज ने भावार्थ बताया कि  व्यक्ति सुख के समय ईश्वर की आराधना भूल जाता है लेकिन दुख के समय उसके मुख मन पर सदैव ईश्वर का नाम आने लगता है। इंद्रेश महाराज ने युधिष्ठिर के रुदन का भावार्थ समझाते हुए कहां की युधिष्ठिर के रुदन को देखकर भगवान श्री कृष्ण आश्चर्यचकित होते हैं और पूछते हैं युद्ध जीतने के बाद रुदन किस बात का तब युधिष्ठिर कहते हैं कि उन्होंने इतनी हत्या की है जिसकी वजह से उसे नर्क में स्थान मिलेगा इसी बात को लेकर वह दुखी और चिंतित है इसका भावार्थ समझाते हुए इंद्रेश महाराज ने कहा युधिष्ठिर को भगवान श्रीकृष्ण पर विश्वास नहीं था भगवान श्री कृष्ण के पास साक्षात होने के बाद भी वे इस बात से चिंतित और भयभीत थे कि उन्हें नरक भोगना पड़ेगा इसीलिए ईश्वर के प्रति विश्वास जरूरी है। इंद्रेश महाराज ने इसी संदर्भ में श्रीमद्भागवत कथा में उल्लेखित 5 धर्मों की व्याख्या की उन्होंने बताया कि दान धर्म, राजधर्म ,मोक्ष धर्म , स्त्री धर्म और भागवत धर्म होते हैं। इन धर्मों में दान धर्म सर्वश्रेष्ठ धर्म माना जाता है। राज धर्म की व्याख्या करते हुए इंद्रेश महाराज ने बताया कि महाभारत युद्ध राजधर्म का ही प्रतीक है और इसीलिए युधिष्ठिर ने अपने राजधर्म का पालन करते हुए युद्ध जीता। इंद्रेश महाराज ने राज धर्म को राजनीति से जोड़ते हुए इसकी सरल व्याख्या की बताया कि वर्तमान राजनीति में भी सभी अपने-अपने राजधर्म का पालन करते हुए एक दूसरे को सदैव पराजित करने में लगे रहते हैं। उन्होंने मोक्ष और स्त्री धर्म के साथ-साथ भागवत धर्म को भक्तों का धर्म बताते हुए इसकी सरल व्याख्या की।

भगवान को स्तब्ध कर सकता है भक्त

बाणों की शैया में लेटे भीष्म पितामह और श्री कृष्ण के मध्य हुए संवाद की सरल व्याख्या करते हुए इंद्रेश महाराज ने बताया कि  भीष्म  पितामह की इच्छा मृत्यु के वरदान के पश्चात भी वे श्री कृष्ण से कहते हैं कि वे अपने प्राण उनके सम्मुख ही त्यागेंगे। भीष्म पितामह और श्री कृष्ण के मध्य हुए संवाद की व्याख्या करते हुए इंद्रेश महाराज ने बताया कि भीष्म पितामह अपनी भक्ति से भगवान श्री कृष्ण को स्तब्ध कर दिए थे। उन्होंने इसका भावार्थ बताया की भक्त भगवान को अपनी भक्ति से स्तब्ध कर सकते हैं।

भजन के बीच मंत्रमुग्ध हुए श्रोता

कथा कथा के मध्य हुए भजन को सुनकर उपस्थित श्रोता गण मंत्रमुग्ध होते रहे महिलाएं भजन पर नृत्य करती रही कथा में लगातार श्रवण कर्ताओं की भीड़ बढ़ती जा रही है।

भागवत कथा की शुरुआत आयोजक शंकर लाल बंसल और अशोक बंसल ने अपने परिवार के सदस्यों के साथ श्रीमद् भागवत की आरती से की।