राम मिले ममता की माँ कौशल्या को… राम मिले है पत्थर बनी अहिल्या को… राम नहीं मिलते मंदिर के फेरों में… राम मिले शबरी के जूठे बेरों में…

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अयोध्या में श्रीराम मंदिर का निर्माण होगा तो छत्तीसगढ़ जिसे श्रीराम की माता कौशल्या का गृह राज्य माना जाता है वहां माता कौशल्या का भव्य मंदिर बनाया जाना प्रस्तावित है तो वनवास काल में श्रीराम सीता तथा लक्ष्मण के वन पथ गमन मार्ग में कुछ स्थानों को चिन्हित कर उन्हें पर्यटन क्षेत्र की तरह विकसित करने की घोषणा मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने की है। अयोध्या मंदिर निर्माण की रणनीति में कांग्रेस चूक गई और भाजपा ने लीड ले लिया तो छग में 15 साल तक सत्तासीन रही भाजपा चूक गई और कांग्रेस लीड लेने प्रयासरत है। रामपथ गमन के शोध में भाजपा के श्याम बैस(रमेश बैस के भाई)राधाकृष्ण गुप्ता, ललित सिंघानिया, मन्नूलाल यदु ने काफी मेहनत की तो मां कौशल्या का छग में मंदिर बनाने तथा “कौशल्या का छत्तीसगढ़” के रूप में पहचान दिलाने स्व. संत कवि पवन दीवान ने बड़ी मेहनत की थी। इसलिए भूपेश बघेल के इस निर्णय के पीछे कोई जल्दबाजी नहीं कही जा सकती है…।


छत्तीसगढ़ महतारी की पीड़ा को स्वर देकर छत्तीसगढ़ निर्माण के लिए कविता, जनांदोलनों के माध्यम से जन चेतना की अलख जगाने वालों में प्रमुख भूमिका निभाने वाले पवन दीवान की एक इच्छा जरूर अधूरी रह गई थी, वे छत्तीसगढ़ की मां कौशल्या के नाम से पहचाने जाने के लिए अंतिम समय तक प्रयासरत रहे.


पवन दीवान की पीड़ा यही रही थी जब बिहार राज्य की पहचान मां जानकी, उत्तरप्रदेश की पहचान अयोध्या, मथुरा, बनारस, वृंदावन के श्रीराम, कृष्ण, शंकर हरिद्वार की पहचान भगवान शंकर की ससुराल, ओडि़सा की पहचान भगवान जगन्नाथ, सुभद्रा और बलराम के रूप में होती है तो छत्तीसगढ़ की पहचान मां कौशल्या के नाम पर क्यों नहीं…।
माता कौशल्या के मंदिर निर्माण को लेकर चिंतित पवन दीवान से एक बार मां कौशल्या के विषय में मेरी लंबी चर्चा भी हुई थी। दीवानजी ने बताया था कि मां कौशल्या के विषय में वाल्मिकी रामायण में अधिक जानकारी तो नहीं है पर जितनी जानकारी है उसके अनुसार वे अत्यंत विदुषी और मंत्रिविद थी, वेदों का भी उन्हें अच्छा ज्ञान था। श्रंगी ऋषि को राजा भानुमंत (कौशल्या के पिता) का राजाश्रय प्राप्त था। श्रंगी ऋषि का आश्रम छग की महानदी के उद्गम स्थल सिहावा नगरी की पहाड़ी पर स्थित है। संभवत: श्रृंगी ऋषि की देख रेख में ही मां कौशल्या की शिक्षा-दीक्षा हुई थी। श्रीराम 14 साल के वनवास जाने के लिए निकलने के पूर्व अपनी मां कौशल्या से मिलने पहुंचे तब एक मां की मनोदशा में छत्तीसगढ़ की महानदी का भी उल्लेख आया है।


स्मिरं नु हृदयं मछेम मेजरन्न दीयर्ते
पावृती पना महानद्या, स्पृष्टं मूल नवांभसा।।

माता कौशल्या ने उक्त अवसर पर श्रीराम से कहा था कि मेरा हृदय कितना कठोर है? तुम्हारे विछोह की बात सुनकर वर्षाकाल के प्रखर जल प्रवाह से टकराते हुए महानदी के कगार की भांति यह हृदय चूर-चूर क्यों नहीं हो जाता। पुत्र विछोह के तारूण दुख से विदीर्ण हृदय की तुलना महानदी के भयंकर बाढ़ से क्षतिग्रस्त कगारों (किनारों) से करना माता कौशल्या के लिए स्वाभाविक भी था। उनका बाल्यकाल और युवावस्था महानदी के तटों पर ही गुजरी थी। महानदी से माता कौशल्या का भावनात्मक एवं रागात्मक संबंध था। स्व. पवनदीवन का विचार था कि जब मां के हृदय में पुत्र विछोह (14 साल का वनवास) का दारूण दुख हुआ तो स्वाभाविक तौर पर उन्हें अपने मायके (छत्तीसगढ़) की महानदी की याद आई। महर्षि बाल्मिकी की काव्य की यह विशेषता है उन्होंने एक मां कौशल्या की मनोदशा प्रकट करने के लिए बाढ़ग्रस्त महानदी के ढहते कगारों की उपमा को चुना…। बहरहाल पवन दीवान ने अपने जीवन के अंतिम समय तक मां कौशल्या का मंदिर जनसहयोग से बनाने प्रयासरत रहे उन्होंने तो मूति का भी आदेश दे दिया था। अब छत्तीसगढ़ के गांधी (पवन नहीं वह आंधी है, छत्तीसगढ़ का गांधी है) कहे जाने वाले फक्कड़, धर्म संस्कृति के अध्येता, संत कवि, कथावाचक पवनदीवान की अंतिम इच्छा मां कौशल्या का चंद्रखुरी में भव्य मंदिर बनाने सहित वनवास काल में श्रीराम, सीता, लक्ष्मण के वनपथ गमन मार्ग के कुछ स्थलों को चिरस्थायी बनाने की घोषणा मुख्यमंत्री भूपेश ने की है तो उसमें कुछ गलत नहीं है।

श्रीराम द्वारा पूजा और रावण का आचार्यत्व…

रामेश्वरम देव स्थान में ज्योतिलिंग की स्थापना, रामसेतु बनाने के लिए भगवान श्रीराम ने महेशवर लिंग-विग्रह के लिए आचार्य के रूप में ब्राम्हण रावण को आमंत्रित किया था वे स्वयं आये ही नहीं मां सीता को भी लेकर आये lपूजा उपरांत सीता को लेकर भी चले गये यही नहीं श्रीलंका विजय का आर्शीवाद भी श्रीराम को दिया था। वर्तमान संदर्भ में जब अयोध्या में श्रीराम मंदिर निर्माण का भूमि पूजन भी हो चुका है तब एक प्रसंग का उल्लेख जरूरी है। बाल्मीकी और तुलसीकृत रामायण में तो इस प्रसंग का उल्लेख नहीं है पर तमिल भाषा में लिखी, महर्षि कम्बन की ‘इरामावतारम’ में यह कथा है…।


कथा के अनुसार रावण के पास जामवंत को आचार्यत्व का निमंत्रण देने श्रीराम ने लंका भेजा था। जामवंत ने लंका पति रावण से अनुरोध किया कि वनवासी राम ने सागर-सेतु निर्माण उपरांत महेश्वरलिंग- विग्रह की स्थापना हेतु अनुष्ठान के लिए आपसे आचार्य पद पर वरण करने की इच्छा प्रकट की है।रावण ने आचार्यत्व स्वीकार किया। ब्राम्हण रावण ने अनुष्ठान की सभी सामग्री जुटाने का आदेश सेवकों को दिया साथ ही अशोक वाटिका पहुंचकर सीता से कहा कि श्रीराम, लंका विजय की कामना से समुद्र तट पर महेशवर लिंग -विग्रह की स्थापना करने जा रहे हैं और मुझे आचार्यवरण किया है। यजमान का अनुष्ठान पूर्ण हो यह दायित्व आचार्य का भी होता है। तुम्हें विदित है कि अद्र्धांगिनी के बिना गृहस्थ के सभी अनुष्ठान अपूर्ण रहते हैं। विमान आ रहा है, उस पर बैठ जाना ध्यान रहे कि तुम वहां भी रावण के अधीन रहोगी, अनुष्ठान समापन के उपरांत यहां वापसी के लिए विमान पर पुन: बैठ जाना। जब जानकी ने दोनों हाथ जोड़कर मस्तक झुका दिया तो ‘सौभाग्यवती भव:’ कहकर रावण ने आशीर्वाद भी दिया।


पूजा स्थल पहुंचकर भूमि शोधन के उपरांत ब्राम्हण रावण ने कहा ‘यजमान, अद्धांगिनी कहाँ हैं? उन्हें यथास्थान आसान दे, श्रीराम ने मस्तक झुकाते हुए विनम्र स्वर से प्रार्थना की कि यदि यजमान असमर्थ है तो योग्याचार्य सर्वोत्कृष्ठ विकल्प के अभाव में अन्य समकक्ष विकल्प से भी अनुष्ठान सम्पादन कर सकते हैं। रावण ने कहा यदि तुम अविवाहित, विधुर, अथवा परित्यक्त होते तब तो विकल्प संभव था, इसके अतिरिक्त तुम संन्यासी भी नहीं हो और पत्नीहीन वानप्रस्थ का भी तुमने व्रत नहीं लिया है। इन परिस्थिति में पत्नी रहित अनुष्ठान तुम कैसे कर सकते हो…। जाओ सागर निकट पुष्पक विमान में यजमान पत्नी विराजमान है किसी को भेज दो। वहां से सीता आई और अनुष्ठान में शामिल भी हुई। अनुष्ठान के बाद श्रीराम ने पूछा कि आपकी दक्षिणा…? रावण ने कहा कि जब आचार्य (रावण) मृत्यु शैया ग्रहण करे तब यजमान (श्रीराम) सम्मुख उपस्थित रहे…। बहरहाल रावण जैसे भविष्य वक्ता ने जो दक्षिणा मांगी, उससे बड़ी दक्षिणा क्या हो सकती थी? जो रावण यज्ञ कार्य पूरा कराने हेतु श्रीराम की बंदी पत्नी को भी समक्ष प्रस्तुत कर सकता है वह श्रीराम के लौट जाने की दक्षिणा कैसे मांग सकता था। (रामेश्वरम देव स्थान में लिखा हुआ है कि इस ज्योतिलिंग की स्थापना श्रीराम ने रावण द्वारा कराई थी)।

और अब बस….

0 छत्तीसगढ़ में वाल्मिकी, श्रृंगी ऋषि सहित सप्त ऋषि का आश्रम भी स्थापित है।
0 लवकुश ने कालांतर में छग का राजपाठ भी सम्हाला था।
0 आरंग आदि का संबंध श्रीकृष्ण से जोड़ा जाता है।
0 महाभारत के पांडव पुत्र सहदेव ने भी छग के कुछ भागों पर विजय पायी थी तो कर्ण ने यहां विजय पताका फहराई थी।
0 पंडवाणी के रूप में महाभारत की गौरव गाथा अनवरत जारी है।
0 शिवरीनारायण को शबरी से भी जोड़ा जाता है।
0 दूधाधारी मठ रायपुर श्रीराम का बड़ा मठ है वैसे छग के गांव गांव में श्रीराम मंदिर तो कम है पर रावण की प्रतिमा (दशहरा के नाम पर ) स्थापित है।