BJP के साथ रहे हैं सिंधिया परिवार के गहरे संबंध… जानिए कैसे?

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भोपाल। ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया है, मंगलवार सुबह दिल्ली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह से बैठक के बाद उन्होंने अपना इस्तीफा सार्वजनिक कर दिया। ज्योतिरादित्य सिंधिया के इस्‍तीफे के तुरंत बाद उनके समर्थक विधायकों ने ताबड़तोड़ इस्तीफा देना शुरू कर दिया, अब तक 22 विधायकों ने इस्तीफा दे दिया है, ऐसे में माना जा रहा है कि अब प्रदेश की कमलनाथ सरकार किसी भी समय गिर सकती है।

वैसे आपको बता दें कि ज्योतिरादित्य सिंधिया को गुना का राजा कहा जाता है, पिता माधवराज सिंधिया के बाद वहां के लोग उन्हें अपने राजा की तरह ही पूजते हैं, आइए एक नजर डालते हैं ज्योतिरादित्य सिंधिया के शाही परिवार पर…

राणोजी सिंधिया पेशवा के रूप में मालवा की कमान संभाली थी

राणोजी सिंधिया

राणोजी सिंधिया पेशवा के रूप में मालवा की कमान संभाली थी, सरदार से वो सिंधिया राजवंश के महाराज बने थे, इसके बाद राजशाही के लोकशाही में बदलने के बाद राजपरिवार ने लोकतंत्र को अपनाया और अपने सियासी सफर को आगे बढ़ाया।

राजमाता विजयाराजे सिंधिया ने 1957 में कांग्रेस से अपने सियासी सफर की शुरुआत की थी

राजमाता विजयाराजे सिंधिया

राजमाता विजयाराजे सिंधिया ने 1957 में कांग्रेस से अपने सियासी सफर की शुरुआत की थी। वह गुना लोकसभा सीट से कांग्रेस के टिकट पर सांसद चुनी गई थी। 10 साल तक राजमाता सिंधिया कांग्रेस में रही लेकिन साल 1967 में उन्होंने जनसंघ का दामन थाम लिया था।

दोनों बुआएं भारतीय जनता पार्टी के साथ जुड़ीं

सिंधिया परिवार की दो बेटियां सियासत में बड़ा नाम है, वसुंधरा राजे सिंधिया राजस्थान की मुख्यमंत्री रह चुकी है और भाजपा की कद्दावर नेता हैं, तो वहीं यशोधरा राजे सिंधिया ने भारतीय जनता पार्टी (जनसंघ) के साथ अपने राजनीतिक पारी शुरू की और अब तक भाजपा के साथ बनी हुई हैं और 5 बार विधायक रह चुकी हैं।

माधवराव सिंधिया

26 साल की उम्र में संसद में कदम रखने वाले माधवराव सिंधिया ने जल्द ही जनसंघ को अलविदा कह दिया था, 1977 में आपातकाल के बाद उन्होंने कांग्रेस का हाथ पकड़ा, साल 1980 में वो कांग्रेस के टिकट पर चुनकर संसद पहुंचे और केंद्रीय मंत्री बने। बीच में नरसिंहराव के समय उन्होंने कांग्रेस छोड़ दी थी, लेकिन कुछ साल बाद फिर से कांग्रेस ज्वाइन कर ली, सिंधिया को गांधी परिवार का बेहद करीबी माना जाता था। साल 2001 में एक विमान दुर्घटना में उनकी मौत हो गई थी।

ज्योतिरादित्य सिंधिया

पिता माधवराव सिंधिया के निधन के बाद ज्योतिरादित्य सिंधिया ने सियासी दुनिया में कदम रखा, गुना सीट पर हुए उपचुनाव में ज्योतिरादित्य सिंधिया सांसद चुने गए। 2002 में जीत का जो सिलसिला शुरू हुआ वो लगातार 2019 तक चलता रहा। लेकिन 2019 गुना से मात मिली।

एमपी में कमल का नाथ बनना मुश्किल

ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कांग्रेस का हाथ छोड़ दिया है। लेकिन अब जब ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कांग्रेस का हाथ छोड़ दिया है और उनके पास 20 से लेकर 24 विधायकों का समर्थन बताया जा रहा है ऐसे में कांग्रेस बहुमत से दूर दिख रही है, जिसके हिसाब से एमपी में कमल का नाथ बनना मुश्किल दिख रहा है।

यह है एमपी का गणित

दरअसल इस वक्त एमपी में 230 विधानसभा सीटें हैं लेकिन दो विधायकों के निधन हो जाने के चलते विधानसभा की मौजूदा सीट 228 हो गई है, किसी भी पार्टी को सरकार बनाने के लिए मैजिक नंबर 115 चाहिए होता है और जो तस्वीर इस वक्त विधानसभा में है उसके मुताबिक कांग्रेस के पास 114 विधायक हैं, जिसमें से 4 निर्दलीय, 2 बहुजन समाज पार्टी और एक समाजवादी पार्टी विधायक का समर्थन उसको मिला हुआ है, यानी मौजूदा स्थिति में कांग्रेस के पास कुल 121 विधायकों का समर्थन है जबकि बीजेपी के पास 107 विधायक हैं।

कांग्रेस के पास महज 101 विधायकों का समर्थन!

ज्योतिरादित्य सिंधिया और 21 विधायकों के जाने के बाद कांग्रेस के पास महज 100 विधायकों का समर्थन रह जाएगा, जबकि सरकार चलाने के लिए जादुई आंकड़ा 104 हो जाएगा, ऐसे में बीजेपी 107 विधायकों के साथ आसानी से सरकार बना लेगी,यहां खास बात आपको यह बता दें कि सपा, बसपा और निर्दलीय पर दल बदल लागू कानून लागू नहीं होगा। कहा जा रहा है कांग्रेस के बागी विधायकों ने इस वक्त बेंगलुरु में डेरा जमाया हुआ है ।