बस्तर से लेकर सरगुजा तक के वनवासियों के चेहरे पर लौटी मुस्कान…

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वन अधिकार मान्यता पत्र देने में देश का अग्रणी राज्य बना छत्तीसगढ़

वर्ष 2006 में तत्कालीन केंद्र सरकार द्वारा वन अधिकार कानून लाया गया था। छत्तीसगढ़ में इस कानून का क्रियान्वयन तो हुआ लेकिन प्रक्रियाओं की जटिलता की वजह से हजारों वनवासी परिवार पात्र होकर भी अपात्र हो गए थे। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने निरस्त वन अधिकार दावे का पुनः परीक्षण कराया और प्रक्रियाओं की जटिलता को दूर करने के निर्देश दिए थे। सरकार की इस पहल से वन क्षेत्र में निवास करने वाले पात्र हितग्राहियों को वन अधिकार पट्टा मिल गया। कोरबा जिले के पोड़ी उपरोड़ा ब्लॉक के ग्राम गिद्धमुड़ी के किसान शीतल कुमार ने भी विगत कई वर्षों से खेती व निवास कर रहे भूमि पर अपना दावा किया था, लेकिन कुछ त्रुटियों की वजह से उसका आवेदन निरस्त हो गया था।

अपना आवेदन निरस्त होने के बाद परिवार के लोग भी संशय में थे कि वर्षों से वे जिस भूमिपर काबिज हैं, जिस माटी को सींचते आए हैं, फसल उगाते आए हैं, कहीं अब उन्हें बेदखल तो नहीं कर दिया जाएगा। आखिरकार जब निरस्त दावों की समीक्षा हुई तो उसे लगभग 4 एकड़ का मालिकाना हक मिल गया।

पट्टा के लिए आवेदन देने के बाद निरस्त हो जाने से उसकी चिंता और बढ़ गई थी। जब राजूराम के दावे की समीक्षा हुई तो वह वन अधिकार के लिए पात्र हो गया। उसे 0.008 हेक्टेयर का वन अधिकार पत्र मिल गया है। गरियाबंद जिले के ग्राम केशोडोर के वनवासी कुमार साय कमार वर्षों से जंगल में निवास करता आ रहा है। जब वन अधिकार पत्र नहीं मिला था तब उसकी दिनचर्या जंगल जाना, कंदमूल लाना, शिकार करना और बांस से बनी वस्तुओं का निर्माण करना तक सीमित थी।

इसी तरह सरगुजा जिले के ग्राम बढ़नीझरिया निवासी 60 साल के रामचंद्र पण्डो को 5 एकड़ का वन अधिकार मान्यता पत्र मिला है। खेत में बोर हो जाने से साल में दो बार फसल लेने लगे हैं और सब्जी भी उगाते हैं। इसी गांव के पण्डो जनजाति परिवार के 46 परिवारों को भी वन अधिकार मिला है। किसान क्रेडिट कार्ड बन जाने से सहकारी समिति से खाद-बीज भी आसानी से मिल जाता है।

समय पर फसल लेने से समर्थन मूल्य में धान को आसानी से बेच पाते हैं। इससे सभी की आर्थिक स्थिति सुधर रही है। राजनांदगांव जिले के देवपुरा ग्राम पंचायत के ढोलपिट्टा गांव के 30 बैगा परिवार हैं और हर किसी को लगभग 5 एकड़ जमीन वन अधिकार अधिनियम से मिली है। इससे इनके जीवन में बदलाव का एक नया अध्याय जुड़ गया है। वे खेतों में परिश्रम कर फसल भी ले रहे हैं।

जगदलपुर देश का पहला नगर निगम जहां शहरी लोगों को मिला वन अधिकार पत्र

मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने विश्व आदिवासी दिवस के मौके पर राज्य में वनवासियों की खुशहाली और वनांचल के गांवों को स्वावलंबी बनाने के उद्ेदश्य से इंदिरा वन मितान योजना शुरू किए जाने की भी घोषणा की है। इस योजना के तहत राज्य के आदिवासी अंचल के दस हजार गांव में युवाओं के समूह गठित कर उनके माध्यम से वन आधारित समस्त आर्थिक गतिविधियों का संचालन किया जाएगा।

इसी तरह छत्तीसगढ़ का जगदलपुर देश का पहला नगर निगम बन गया है जहां शहरी लोगों को वन भूमि का अधिकार पत्र प्रदान किया गया है। मुख्यमंत्री ने विश्व आदिवासी दिवस के अवसर पर 4 लोगों को वन अधिकार पत्र देकर इस अभियान की शुरुआत की। यहा 1777 लोगों ने आवेदन किया है। जिस पर कार्यवाही चल रही है। इस तरह देखा जाए तो छत्तीसगढ़ के सरगुजा से लेकर बस्तर तक लगभग सभी जिलों में वन अधिकार मान्यता पत्र मिलने की खुशी वनवासी व परम्परागत निवासियों में है।

वनभूमि अधिकार पत्र के साथ योजनाओं का लाभ

राज्य शासन द्वारा कई पीढ़ी या वर्षों से काबिज भूमि पर वन अधिकार मान्यता पत्र दिए जाने के साथ ही लाभान्वित हितग्राहियों को शासन की अनेक योजनाओं का लाभ देकर आत्मनिर्भर बनने का अवसर भी दिया जाता है।

वितरित भूमि में भूमि समतलीकरण, मेड़ बंधान, खाद-बीज, कृषि उपकरण, सिंचाई सुविधा का लाभ तथा प्रधानमंत्री आवास योजना से भी लाभान्वित किया जाता है। प्रदेश में भूमि समतलीकरण एवं मेड़ बंधान से 1 लाख 49 हजार 762, खाद-बीज से 1 लाख 84 हजार 311, कृषि उपकरण से 11 हजार 40 तथा सिंचाई सुविधा नलकूप, कुआं, स्टापडैम से 41 हजार 237 हितग्राही लाभान्वित किए गए हैं।

लेखः- कमल ज्योति/विष्णु वर्मा