कभी मैं, कभी वक्त मुझसे जीत गया… इसी कश्मकश में एक बरस और बीत गया…

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वरिष्ठ पत्रकार शंकर पांडेय की कलम से

कोरोना महामारी, बेरोजगारी, महंगाई की मार से बीता वर्ष किसी तरह बीत ही गया… और नये साल में वेक्सीन की आस से कुछ अच्छा होने की उम्मीद है पर आर्थिक हालात देश, प्रदेशों और आम आदमी का जल्दी सुधरेगा ऐसा लगता नहीं है।
पहले भी सरकार ने 1962, 1965 तथा 1971 की भीषण लड़ाई भी लड़ी… पोलियो, प्लेग, हैजा तथा टीबी जैसी महामारी से भी मुकाबला किया, मुफ्त में लोगों का इलाज ही नहीं हुआ मुफ्त टीकाकरण भी हुआ… मोदी सरकार के मुताबिक पिछली सरकारों में खरबों का घोटाला हुआ, कालाधन विदेशों में भेजा गया, भ्रष्टाचार का बोलबाला रहा… पर फिर भी बहुत सारी सरकारी कंपनियां स्थापित हुई, सरकारी अस्पताल, सरकारी कालेज, सरकारी स्कूल बने, बांध बने, सरकारी नौकरियों की भी कमी नहीं रही…. विपरीत स्थितियों में भी लोगों को न तो नौकरी से निकाला गया और न ही वेतन में कटौती की गई, बढ़ता महंगाई भत्ता दिया जाता रहा, छठवां वेतनमान लागू किया गया, सरकारी कर्मचारियों को सेवानिवृत्ति के पश्चात पेंशन दिया जाता था, देश की जीडीपी 10 प्रतिशत से अधिक थी पर कुछ वर्षों से हालात बदल रहे हैं। पहले की सरकार ऐसा कैसे कर लेती थी पर अब तो केवल जुमला सरकार ही चर्चा में है क्या विदेशों से कालाधन वापस आ गया…. नोटबंदी से देश के कालाधन की वापसी हो गई… क्या वादेनुसार आम आदमी के खाते में 15 लाख जमा हो गया… रसोई गैस सिलेण्डर, पेट्रोल डीजल, खाद्य वस्तुओं के महंगे होने पर हंगामा करने वाले सत्ता में आते ही उस पर बात करना भी पसंद नहीं करते हैं। सरकारी नौकरियां बंद सी है तो वेतन-भत्ते बढ़ाने की बात तो दूर सेवानिवृत्त सरकारी कर्मचारियों/अधिकारियों की पेंशन योजना समाप्त कर दी गई है। एनजीओ से पैसा प्रधानमंत्री रिलीफ फंड में जमा कराया गया, कोई युद्ध नहीं हुआ…। डीजल-पेट्रोल पर सब्सिडी की जगह सरकार टेक्स बढ़ाकर 40 रुपये और कमा रही है…। बीमा और म्यूच्युल फंड पर भी सरकार 18 प्रतिशत टेक्स लेकर कमा रही है, देश के आपातकालीन फंड से 175 अरब रुपये निकालकर खर्च कर दिये हैं, सरकारी संपत्तियां बेची जा रही है, किसानों को जबरिया ‘लाभ’ देने का ढिंढोरा पीटा जा रहा है जबकि किसान ‘लाभ’ लेने तैयार नहीं है और सरकार की नियत पर ही सवाल उठाकर आंदोलनरत हैं. … शिक्षा, स्वास्थ्य, सार्वजनिक परिवहन बैंक आदि की हालात तो दयनीय है कुछ मीडिया के लोगों को कंट्रोल करके देश के आम मुद्दों से अलग करके सर्जिकल स्ट्राईक, कश्मीर में धारा 370, अब लव जेहाद, राम मंदिर के निर्माण के लिए भूमिपूजन, नये संसद भवन के निर्माण के लिए पूजन आदि से जोड़कर वाहवाही लूटी जाती है, महंगाई, बेरोजगारी, किसान, मजदूर, युवा सभी पता नहीं किस जगह जाम कर दिये गये हैं…। बिहार में विधानसभा चुनाव हो गये, म.प्र. में विधानसभा के उपचुनाव हो गये, हैदराबाद में बड़ी-बड़ी रैलियां हुई, पश्चिम बंगाल में भी रोड शो होता रहता है तब बड़े भाजपा नेताओं को ‘कोरोना संक्रमण’ की चिंता नहीं रहती पर लोकसभा/ राज्यसभा का सत्र कोरोना के नाम पर आयोजित नहीं किया जा रहा है आखिर चल क्या रहा है…?

नगरनार और भूपेश सरकार

आदिवासी अंचल बस्तर में निर्माण कार्य लगभग पूरा होने जा रहे नगरनार स्टील प्लांट को केंद्र की मोदी सरकार के निजीकरण करने के फैसले के खिलाफ छत्तीसगढ़ की भूपेश बघेल सरकार द्वारा उसे खरीदने की पेशकश करने का एक ऐतिहासिक फैसला लिया है। वैसे नगरनार स्टील प्लांट की अनुमानित कीमत 23 हजार करोड़ के आसपास आंकी जा रही है और एनएमडीसी अभी तक इस प्लांट के निर्माण पर 17 हजार करोड़ करीब खर्च कर चुकी है, प्लांट शुरू होने के पहले ही केंद्र सरकार द्वारा उसके निजीकरण की घोषणा समझ के परे हैं। बस्तर में कोई बड़ा कारखाना नहीं है, रोजगार के अवसर सीमित है इसीलिए युवा नक्सवादियों की तरफ झुक जाते हैं, बस्तर को नक्सलवाद से बचाने ही पहले ‘टाटा’ ने प्लांट लगाने की घोषणा की, फिर प्लांट लगाने से मना कर दिया जब भूपेश सरकार बनी तो उसने अधिग्रहित की गई जमीन को उनके मूल मालिकों को लौटाने का ऐतिहासिक फैसला लिया तथा जमीन लौटाई भी।
भूपेश सरकार की मानें तो नगरनार स्टील प्लांट बस्तर के सम्मान, स्वाभिमान की बात अब है, कोई बाहरी उद्योगपति इसे खरीदेगा तो अपना लाभ ही सोचेगा, वह बस्तर के विकास या वहां के मूल निवासियों के विकास की चिंता क्यों करेगा…। इसीलिए छत्तीसगढ़ सरकार इस प्लांट का संचालन करने की मंशा रखती है। वैस छत्तीसगढ़ की औद्यौगिक राजधानी कोरबा में भी अटल बिहारी वाजपेयी की एनडीए सरकार के समय भारत के सबसे बड़े भारत एल्युमिनियम कंपनी (बालको) को निजी हांथों में सौंपा था तब छग के पहले मुख्यमंत्री अजीत जोगी ने उस प्लांट को खरीदने की पेशकश की थी यह बात और है कि एनडीए सरकार ने उस पेशकश को ठुकरा दिया था ज्ञात रहे कि जोगी मंत्रिमंडल में तब भूपेश बघेल भी शामिल थे। बहरहाल केंद्र सरकार के नगरनार स्टील प्लांट के निजीकरण के फैसले से बस्तर के लोग नाराज हैं वहां तो आंदोलन भी हो रहे हैं, बस्तर के लोगों की भावनाओं के साथ ही भूपेश सरकार भी नजर आ रही है। यहां यह बताना जरूरी है कि एनएमडीसी को आबंटित लौह अयस्क खदानों को अलग यूनिट बना दिया गया है जबकि छग सरकार ने इसी शर्त पर खनिज लीज दी थी कि इसका उपयोग नगरनार स्टील प्लांट में किया जाएगा।

सेल की पहली महिला चेयरमैन…

भारतीय इस्पात प्राधिकरण (सेल) (जिसके अंतर्गत भिलाई स्टील प्लांटभी आता है) के इतिहास में पहली बार चेयरमैन के पद पर महिला सोमा मंडल की ताजपोशी हो गई है। छग के बगल में स्थित ओडि़सा की मूल निवासी सोमा मंडल 2017 में सेल से जुड़ी थी, सेल के निदेशक (वाणिज्य) का कार्यभार उन्होंने सम्हाला था, अब तक की पहली महिला कार्यकारी निदेशक का भी तमगा उनके नाम है, सेल में आने के पहले सोमा, नालको भुवनेश्वर में निदेशक (वाणिज्य) रह चुकी है। राष्ट्रीय प्रौद्यौगिकी संस्थान राऊरकेला में 1984 में इलेक्ट्रीकल इंजीनियरिंग की स्नातक की पढ़ाई की थी। बहरहाल महिला चेयरमैन के सामने सेल को लेकर बड़ी चुनौती सामने है। 2007-2010 के बीच लिया गया कर्ज 72 हजार करोड़ चुकाना है तो भिलाई इस्पात संयंत्र सहित सेल की अन्य इकाइयों का आधुनिकीकरण विस्तारीकरण करना भी बड़ी चुनौती है। उन्हें छत्तीसगढ़, झारखंड, पश्चिम बंगाल, ओडिशा, कर्नाटक, तमिलनाडु तथा महाराष्ट्र स्थित सेल की इकाइयों का प्रदर्शन भी सुधारना होगा।

सौदान की विदाई…।

18 साल तक छत्तीसगढ़ के प्रभारी रहे तथा डॉ. रमन सिंह सरकार के निर्णयों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले, विधानसभा चुनावों की रणनीतिकार रहे भाजपा के राष्ट्रीय सह संगठन मंत्री सौदान सिंह की आखिर छग के प्रभारी के पद से विदाई हो गई उनके स्थान पर शिवप्रसाद सिंह को प्रभारी बनाया गया है। सौदान सिंह उस समय छग आये थे जब छत्तीसगढ़ में अजीत जोगी की सरकार थी और भाजपा के पास नेतृत्व करने बड़े नेताओं का अभाव था। रमेश बैस जैसे बड़े नेता प्रदेश की जिम्मेदारी लेने तैयार नहीं थे तब उन्होंने डॉ. रमन सिंह को तैयार ही नहीं किया बल्कि 3 बार लगातार छग में भाजपा की सरकार बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की बल्कि उनके चलते ही डॉ. रमन सिंह के सामने नेतृत्व की चुनौती तो आई पर वे लगातार 3 कार्यकाल में मुख्यमंत्री बनकर भाजपा के सबसे लंबे कार्यकाल वाले मुख्यमंत्री का खिताब हासिल कर गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी (अब प्रधानमंत्री) का भी रिकार्ड तोड़ दिया वैसे पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा 15 (अब 14) सीटों में सिमट गई तथा कांग्रेस ने भूपेश बघेल के नेतृत्व में 68 (अब 70) विधानसभा में अपनी जीत दर्ज की थी उसी के बाद ही छग भाजपा में परिवर्तन की बात की जा रही थी, पुरेंदरी देवी को संगठन प्रभारी बनाया गया और अब सौदान सिंह को हटा दिया गया। वैसे डॉ. रमन सिंह के प्रदेश भाजपा अध्यक्ष मुख्यमंत्री से लेकर राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनने में सौदान सिंह की भूमिका से इंकार नहीं किया जा सकता है। प्रदेश अध्यक्ष पद पर विष्णुदेव साय तथा नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक की नियुक्ति में भी रमन- सौदान सिंह की ही चली पर अब सौदान सिंह के प्रभार मुक्त होने पर डॉ. रमन सिंह कुछ कमजोर हो सकते हैं?

और अब बस….

  • 0 महासमुंद के कलेक्टर पद पर डोमन सिंह ( अभी तक कलेक्टर पैण्ड्रारोड) तथा परिवहन उप आयुक्त पद पर दीपांशु काबरा (अभी तक आई जी बिलासपुर) की नियुक्ति कहीं मरवाही उपचुनाव में कांग्रेस की जीत का पुरस्कार तो नहीं है।
  • 0 पुलिस अधीक्षक बिलासपुर, कोरबा, जांजगीर, दंतेवाड़ा, जशपुर, बालोद, मुंगेली आदि के तबादले की जमकर चर्चा है। ज्ञात रहे कि जशपुर और बालोद के एसपी की पदोन्नति डीआईजी के पद पर होने वाली है।
  • 0 डीएसपी तथा एडीशनल एसपी की तबादला सूची भी कभी भी जारी हो सकती है।