Special Article: 73 साल की उम्र में रुआंसे कमलनाथ का ये छोटा सा क्लोजअप शॉट देखिए.. “लोकतंत्र को धुंधला करती सियासत की स्याह तस्वीर”…

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मध्यप्रदेश के पत्रकार सुनील पटेल की कलम से…

कमलनाथ के इस्तीफा देते ही 15 महीने पुरानी कांग्रेस सरकार चली गई और अब बीजेपी प्रदेश पर फिर राज करेगी। कांग्रेस और बीजेपी समर्थकों में रोष और खुशी का माहौल है लेकिन मध्यप्रदेश के सियासी पटल पर उभरी ये तस्वीर महज इतनी सी नहीं है। अक्सर तस्वीर के पीछे का भाग काला होता है और एमपी का ये पॉलिटिकल ड्रामा उसी के पीछे की सच्चाई है। राजनीति में वैसे हर घटित चीजें सामने नहीं आती लेकिन मध्यप्रदेश में 15-20 दिन में जो भी कुछ हुआ वो ना तो यहां की सियासत में कभी हुआ और ना ही विकास की आस लिए बैठी जनता ने कभी ऐसा होने के बारे में सोचा होगा। 73 साल की उम्र में रुआंसे कमलनाथ का ये छोटा सा क्लॉज शॉट जिसमें उनकी आंखों में आसूं आ रहे हैं, ये बताता है कि 40 सालों की राजनीति में अलग अलग मुकाम हासिल करने के बाद जो एमपी के सीएम का ओहदा उन्हें मिला था वो कितना खास था। राज्य में सियासी समीकरण बिगड़ने के बाद कमलनाथ को भी पता चल चुका था कि तमाम कोशिशों के बावजूद सत्ता बचाना मुश्किल है, तभी तो हिंदुस्तान के सबसे अमीर मुख्यमंत्री के सामने जब कांग्रेस विधायक दल की बैठक में (संभावित) उनके पक्ष में हौसले बढ़ाने वाले नारे लगे तो उनकी आंखें डबडबा गई…:|

खैर, जाते हुए शख्स के लिए सभी की सहानुभूति होती है मगर यहां मैं ऐसा नहीं करूंगा क्योंकि सत्ता गंवाने के लिए कांग्रेस लाख बीजेपी पर आरोप लगाए लेकिन सबसे बड़ी वजह तो सरकार जाने के पीछे कांग्रेस की गुटबाजी, फुट, नेताओं की अति महत्वाकांक्षाएं ही जिम्मेदार है। साथ ही ज्योतिरादित्य सिंधिया को नजरंदाज करना भी उन्हें भारी पड़ा। हालांकि पानी पी पीकर बीजेपी और शिवराज सिंह को घेरने वाले सिंधिया राज्यसभा सदस्य बनने के लिए बीजेपी की गोद में बैठ जाएंगे ये भी किसी ने सोचा नहीं था। सबसे बड़ी गलती जो कांग्रेस ने की और कर रही है वो यही है कि युवा नेताओं के हाथों में कमान ना देना। सिंधिया पिछले करीब 1 साल से बार बार हिंट दे रहे थे मगर दिग्विजय, कमलनाथ तो क्या सोनिया, राहुल ने भी उनको सीरियसली नहीं लिया। ऊपर से एमपी में सरकार के वादों को पूरा नहीं होने पर जनता के लिए सड़क पर उतरने की सिंधिया की चिंगारी को कमलनाथ द्वारा स्वीकार कर हवा देना। मध्यप्रदेश में अलग अलग धड़ों में बंटी कांग्रेस के बिल्ली रूपी नेताओं का सत्ता रूपी मलाई के लिए लड़ने को बीजेपी बहुत करीब से देख रही थी और जैसे ही पहले सीएम फिर प्रदेश अध्यक्ष की दौड़ में पिछड़ने वाले सिंधिया और ‘ सुपर सीएम ‘ दिग्विजय के बीच राज्यसभा के लिए छीना झपटी हुई तो बीजेपी ने तुरंत मौका लपक लिया और सिंधिया को अपने पाले में ले आए। अब जल्दी जल्दी में महाराज रूपी सियासी हाथी तो बीजेपी ने बांध लिया है पर उसे खिलाएंगे क्या ? ये सबसे बड़ा सवाल है, क्योंकि सिंधिया को भले ही फिलहाल राज्यसभा के जरिए केंद्रीय मंत्री बना दे मगर एमपी की सियासत का सिरमौर बनने की चाहत रखने वाले सिंधिया सीएम पद के लिए आज नहीं तो कल ताल जरूर ठोकेंगे। अभी तो उन्होंने कड़वा घूंट पीकर अपने माधवराव सिंधिया को सीएम ना बनने देने वाले दिग्विजय और कमलनाथ से बदला ले लिया हो मगर पिताजी के सपने को साकार करने के लिए महाराज मध्यप्रदेश का ताज जरूर अपने सिर पर सजाना चाहेंगे। पर क्या ये दबी हुई आकांक्षाएं लिए बैठे बीजेपी के खाटी नेताओं शिवराज सिंह, नरेंद्र सिंह तोमर, नरोत्तम मिश्रा, कैलाश विजयवर्गीय, गोपाल भार्गव के होते हुए संभव है। मौजूद स्थिति में तो मुझे नहीं लगता कि किसी अप्रवासी को सत्ता के शिखर तक भेजने की हिम्मत कोई बीजेपी नेता करने देगा।

एक चीज तो साफ है कि अटल जी, कुशाभाऊ ठाकरे की विचारधारा और अनुशासन का दंभ भरने वाली बीजेपी भी अब सत्ता हासिल करने के लिए हर हथकंडे अपना रही है। गोवा, कर्नाटक, मध्यप्रदेश के अलावा उत्तराखंड, महाराष्ट्र में भी हम ये देख चुके हैं। विधायकों की खरीद फरोख्त, रिजॉर्ट पॉलिटिक्स और रातों रात विधायकों का पाला बदलकर दूसरी पार्टी के साथ खड़ा होना साथ ही राज्यपाल और विधानसभा अध्यक्ष का रुख बताता है कि भारत के लोकतंत्र में सियासत ने किस कदर सेंधमारी की है। गांठ बांध कर रख लीजिए ये जो भी सामने और परदे के पीछे घटा या घट रहा है वो जनता के लिए बहुत… बहुत नुकसानदायक है। आखिर में सवाल यही उठता है कि तुलसी सिलावट, मनोज चौधरी समेत 22 बागी पूर्व विधायकों को बीजेपी उपचुनाव में टिकट देगी और अगर देगी भी तो क्या स्थानीय बीजेपी नेता और जनता फिर इन्हें लोकतंत्र के मंदिर कहे जाने वाले सदन में बैठने का मौका देगी ?

निष्कर्ष यही है कि राजनीतिक विचारधाराओं के नाम पर आपस में लड़ने के बजाय नेताओं को परख कर वोट कीजिए और विकास के लिए लगातार उन पर दबाव बनाएं क्योंकि राजनेताओं का कोई ईमान, धरम नहीं होता!