Sushma Swaraj Profile: कद्दावर नेता और राजनीति की माहिर खिलाड़ी थी सुषमा स्वराज, जानिए कैसा रहा उनका राजनीतिक सफर..

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नई दिल्ली। भारतीय जनता पार्टी की वरिष्ठ नेता और देश की पूर्व विदेश मंत्री सुषमा स्वराज का 67 साल की उम्र में निधन हो गया है, दिल का दौरा पड़ने के बाद उन्हें एम्स में भर्ती कराया गया था, जहां पांच डॉक्टरों की टीम उनके इलाज के लिए लगाई गई थी लेकिन डॉक्टरों की सारी कोशिशें नाकाम ही साबित हुईं, आज शाम लोकसभा में धारा 370 बिल पास होने के बाद उन्होंने पीएम मोदी और गृहमंत्री अमित शाह को ट्वीट कर बधाई दी थी। उन्होंने अपने आखिरी ट्वीट में लिखा, ‘प्रधानमंत्री जी- आपका हार्दिक अभिनन्दन। मैं अपने जीवन में इस दिन को देखने की प्रतीक्षा कर रही थी।’

सुषमा स्वराज के भाषण का विपक्ष भी था मुरीद

देश की राजनीति में महिला शक्ति का सबसे बड़े रूप में उभरी सुषमा स्वराज की छवि ईमानदार, मुखर, मोहक और मजबूत नेता की थी, उनके भाषण के तो केवल पक्ष ही नहीं विपक्ष भी मुरीद रहे हैं और इसी वजह से उन्होंने जब साल 2019 का लोकसभा चुनाव ना लड़ने का ऐलान किया तो केवल उनकी पार्टी के ही लोग नहीं बल्कि विरोधी दलों ने भी दुख जाहिर किया था। चाहे पाकिस्तान को लताड़ लगानी हो या फिर विरोधियों को जवाब देना हो, सुषमा स्वराज ने हमेशा बिना मर्यादा खोए लोगों को करारा जवाब दिया।

सुषमा स्वराज का जन्म 14 फरवरी 1952 को हरियाणा के अंबाला में हुआ

महिलाओं के लिए आदर्श बनी सुषमा स्वराज का जन्म 14 फरवरी 1952 को हरियाणा के अंबाला में हुआ था, उनके पिता का नाम हरदेव शर्मा और मां का नाम लक्ष्मी देवी था, उनके पिता राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख सदस्य रहे थे। स्वराज का परिवार मूल रूप से लाहौर के धरमपुरा क्षेत्र का निवासी था, उन्होंने अम्बाला के सनातन धर्म कॉलेज से संस्कृत और राजनीति विज्ञान में स्नातक किया था। साल 1970 में उन्हें अपने कालेज में सर्वश्रेष्ठ छात्रा के सम्मान से सम्मानित किया गया था, इसके बाद उन्होंने पंजाब विश्वविद्यालय, चण्डीगढ़ से विधि की शिक्षा प्राप्त की, 1973 में ही स्वराज भारतीय सर्वोच्च न्यायलय में अधिवक्ता के पद पर कार्य करने लगी, 13 जुलाई 1973 को उनका प्रेम विवाह स्वराज कौशल के साथ हुआ, जो सर्वोच्च न्यायलय में उनके सहकर्मी और साथी अधिवक्ता थे। स्वराज दम्पत्ति की एक पुत्री है, बांसुरी, जिन्होंने लंदन के इनर टेम्पल से वकालत किया है।

राजनीतिक करियर

सुषमा स्वराज का राजनीतिक करियर अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (ए.बी.वी.पी.) के साथ शुरू हुआ था, उन्होंने आपातकाल के विरोध में सक्रिय प्रचार किया था। जुलाई 1977 में उन्हें चौधरी देवीलाल की कैबिनेट में मंत्री बनाया गया था। भाजपा लोकदल की हरियाणा में इस गठबंधन सरकार में वे शिक्षा मंत्री थीं। 27 वर्ष की उम्र में वे 1979 में जनता पार्टी (हरियाणा) की अध्यक्ष बन गई थीं, वो अप्रैल 1990 में सांसद बनीं और 1990-96 के दौरान राज्यसभा में रहीं। 1996 में वे 11वीं लोकसभा के लिए चुनी गई और अटल बिहारी वाजपेयी की तेरह दिनी सरकार में सूचना प्रसारण मंत्री रहीं। 12वीं लोकसभा के लिए वे फिर दक्षिण दिल्ली से चुनी गईं और पुन: उन्हें सूचना प्रसारण मंत्रालय के अलावा दूरसंचार मंत्रालय का अतिरिक्त प्रभार भी दिया गया। अक्टूबर 1998 में उन्होंने केन्द्रीय मंत्रिमंडल से इस्तीफा दिया और दिल्ली की पहली महिला मुख्यमंत्री बनीं लेकिन बाद में जब विधानसभा चुनावों में पार्टी हार गई तो वे राष्ट्रीय राजनीति में लौट आईं।

सोनिया गांधी के खिलाफ बेल्लारी से लड़ा था चुनाव

वर्ष 1999 में उन्होंने आम चुनावों में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के खिलाफ बेल्लारी संसदीय क्षेत्र, कर्नाटक से चुनाव लड़ा, लेकिन वे हार गईं। 2000 में वे फिर से राज्यसभा में पहुंचीं थीं और उन्हें पुन: सूचना-प्रसारण मंत्री बना दिया गया, वे मई 2004 तक सरकार में रहीं। अप्रैल 2009 में वे मध्यप्रदेश से राज्यसभा के लिए चुनी गईं और वे राज्यसभा में प्रतिपक्ष की उपनेता रहीं। बाद में, विदिशा से लोकसभा के लिए चुनी गईं और उन्हें लालकृष्ण आडवाणी के स्‍थान पर नेता प्रतिपक्ष बनाया गया। साल 2014 का चुनाव उन्होंने एक बार फिर से विदिशा से लड़ा और भारी बहुमत से विजयी हुईं और वो मोदी सरकार में विदेश मंत्री बनीं।

ट्विटर पर सबसे लोकप्रिय हस्तियों में से एक थीं सुषमा स्वराज

ट्विटर पर सबसे लोकप्रिय हस्तियों में से एक सुषमा स्वराज बहुत सारी खूबियों का मालकिन थीं, सुषमा स्वराज भाजपा की प्रथम महिला नेता थी जो कि मुख्य मंत्री, केन्द्रीय मंत्री, महासचिव, प्रवक्ता, विपक्ष की नेता एवं विदेश मंत्री बनीं , वे भारतीय संसद अकेली महिला सांसद थीं जिन्हें असाधारण सांसद का पुरस्कार मिला था, वे भाजपा की एकमात्र नेता थीं, जिन्होंने उत्तर और दक्षिण भारत, दोनों से चुनाव लड़ा था, इनके अलावा ये हरियाणा में हिन्दी साहित्य सम्मेलन की चार वर्ष तक अध्यक्षा भी रहीं थीं, किताबों की शौकीन सुषमा स्वराज को अपनी संस्कृति और परंपरा पर खासा नाज था और इसी वजह से वो देश जाएं या परदेश, वो अपनी भारतीय पहचान से कोई भी समझौता नहीं करती थीं और इसी वजह से वो देश की ही नहीं बल्कि विदेश की लोकप्रिय राजनीतिक हस्तियों में शामिल थीं, उनका जाना सच में भाजपा के लिए एक अपूर्णनीय क्षति है, जिसकी भरपाई कोई नहीं कर सकता है।

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