वही चिराग हकीकत में एक चिराग था जो… हवा की जद पर नहीं जिद पर जगमगाता रहा…

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वरिष्ठ पत्रकार शंकर पांडेय

छत्तीसगढ़ में संसदीय सचिवों, प्राधिकरणों, निगम, मंडलों में नियुक्ति के बीच ही अविभाजित म.प्र. के मुख्यमंत्री तथा कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह की अचानक यात्रा मुख्यमंत्री भूपेश बघेल, विधानसभा अध्यक्ष डॉ. चरणदास महंत, छग सरकार के वरिष्ठ मंत्री टी.एस. सिंहदेव (बाबा) से अलग अलग मुलाकात, पूर्व मुख्यमंत्री पं. श्यामाचरण शुक्ल के पुत्र अमितेष शुक्ला के साथ स्व. अजीत जोगी की पत्नी विधायक डॉ. रेणु जोगी और अमित से मुलाकात म.प्र. में भाजपा की सरकार बनने तथा राजस्थान में अशोक गहलोत सरकार तथा सचिन पायलेट के बीच चल रही रस्साकशी से बने हालात की छग के राजनीतिक हल्को में भी जमकर चर्चा है। सूत्र कहते हैं कि दिग्गी राजा ने मतभेद दूर करके निगम-मंडल की सूची जारी करवाने में महत्वपूर्ण भूमिका भी निभाई है? वैसे हाल फिलहाल में भूपेश सरकार द्वारा की गई राजनीतिक नियुक्ति पर विपक्षी दल भाजपा का आरोप है कि छग सरकार में सब कुछ ठीक-ठाक नहीं चल रहा है?
बहरहाल छत्तीसगढ़ में भी म.प्र. तथा राजसथान के राजनीतिक घटनाक्रम की पुनरावृत्ति हो सकती है ऐसा आरोप पहले भाजपा नेत्री सरोज पांडे, फिर प्रेम प्रकाश पांडे के बाद हाल ही में भाजपा के वरिष्ठ नेता बृजमोहन अग्रवाल ने लगाया है। वैसे जिस तरह छत्तीसगढ़ में कांग्रेस ने कुल 69 विधायकों में 45 को पद देकर उपकृत किया है उसकी भी चर्चा तेज है। कांग्रेस ने अपने विजयी विधायकों में 65 प्रतिशत को पद देकर नवाजा है। मुख्यमंत्री सहित 12 तो मंत्रिमंडल में शामिल है, विधानसभा अध्यक्ष डॉ. चरणदास महंत एवं उपाध्यक्ष मनोज मंडावी भी कांग्रेस से ही हैं। 15 विधायकों को संसदीय सचिव बनाया है। 6 विधायकों को प्राधिकरणों में अध्यक्ष, उपाध्यक्ष बनाया है तो 4 विधायकों को निगम-मंडल में समायोजित किया है। इसके पहले 6 विधायकों को बस्तर तथा सरगुजा विकास प्राधिकरण में शामिल किया है। इस तरह 69 में 45 विधायकों पदों पर है, संसदीय सचिवों को छोड़कर बाकी विधायकों को कबीना- राज्यमंत्री का दर्जा भी हासिल है। वहीं निगम-मंडल की एक और सूची भी प्रस्तावित है उसमें भी कुछ विधायकों को समायोजित करने की चर्चा है।

अब छत्तीसगढ़ में मात्र 14 विधायको को लेकर भाजपा नेता न जाने किस आधार पर म.प्र. तथा राजस्थान की तर्ज पर छत्तीसगढ़ में भी कुछ होने की उम्मीद पालें बैठे हैं। वर्तमान में कांग्रेस के पास 69 विधायक हैं, 14 भाजपा तथा 6 जोगी-बसपा के विधायक हैं, मरवाही विधानसभा अजीत जोगी के निधन के बाद रिक्त है। एक काल्पनिक ख्याल आ सकता है कि यदि कांग्रेस के पद पाये 45 विधायकों को छोड़ दिया जाए तो बचते हैं 24 विधायक…। यदि जोगी कांग्रेस-बसपा भी भाजपा को समर्थन कर दे तो भी भाजपा के पास कुल संख्या होगी 44 जो पर्याप्त नहीं है। वैसे भाजपा को उम्मीद है कि कांग्रेस नेताओं के असंतोष का लाभ लेकर फायदा उठाया जाए पर फिलहाल तो ऐसी गुंजाइश दिखाई नहीं दे रही है पर भाजपा नेताओं के लगातार भूपेश सरकार के स्थायित्व पर लेकर बयानबाजी को हल्के में तो नहीं लिया जा सकता है क्योंकि जब आग जलती है तभी धुंआ दिखता है…। वैसे मंत्री नहीं बनाए जाने से पूर्व मंत्री सत्यनारायण शर्मा, धनेन्द्र साहू, अमितेष शुक्ल, रामपुकार सिंह खुश तो नहीं है, यह ठीक है कि सत्यनारायण तथा अमितेष निगम मंडल के अध्यक्ष बनने से इंकार कर चुके है पर धनेन्द्र साहू तथा रामपुकार सिंह को निगम-मंडल की पहली सूची में जगह नहीं मिलना भी चर्चा में है।

संसदीय सचिव और अधिकार…

छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री सहित कुल 12 मंत्री हैं और हाल ही में 15 संसदीय सचिव बना दिये गये हैं। कभी रमनसिंह सरकार के समय संसदीय सचिवों की नियुक्ति को लेकर सर्वोच्च न्यायालय तक जाने वाली कांग्रेस ने संसदीय सचिव बना दिये यह बात और है कि इन्हें राज्यमंत्री का दर्जा नहीं रहेगा संसदीय सचिव न तो मंत्रालय में बैठेंगे, ना ही किसी सरकारी फाइल में ही हस्ताक्षर करेंगे न ही कोई निर्णय कर सकेंगे उन्हें अपने विभागीय मंत्री परही निर्भर रहना होगा। एक बात और है कि कुछ निगम-मंडल के अध्यक्ष-उपाध्यक्ष को जरूर मंत्री का दर्जा हासिल होगा पर संसदीय सचिव चूंकि विधायक होते हैं इसलिए प्रोटोकाल में उनका दर्जा उपर होगा बस जो विधायक किसी मंडल- निगम के अध्यक्ष बने हैं उन्हें प्रोटोकाल के हिसाब से संसदीय सचिव से उपर का दर्जा हासिल होगा।

दरअसल संसदीय सचिवों की बड़ी सुदीर्घ परंपरा ब्रिटिश हाऊस ऑफ कामन्स से चली आ रही है। आजादी के बाद कुछ प्रदेशों की मंत्रिमंडल में कबीना मंत्री, राज्यमंत्री, उपमंत्री तथा संसदीय सचिव इस तरह 4 स्तरीय परंपरा होती थी पहले मंत्रिमंडल में मंत्रियों की संख्या निर्धारित नहीं होती थी पर संविधान के संशोधन 91 में बने अधिनियम 2003 में यह प्रावधान किया गया कि अनुच्छेद 75 की धारा (1) में कुछ धाराएं जोड़ी गई जिसमें 1 ए के अनुसार मंत्रिपरिषद में प्रधानमंत्री-मुख्यमंत्री सहित मंत्रियों की कुल संख्या 15 प्रतिशत से अधिक नहीं होनी चाहिए। यह संशोधन गृह विभाग की स्थायी समिति की सिफारिश के आधार पर किया गया। इसमें 12 मंत्रियों की संख्या सिर्फ मिजोरम, सिक्किम और गोवा के लिए था क्योंकि इन विधानसभाओं की सदस्य संख्या ही 40 है। दरअसल भारी मंत्रिमंडल राजकोष पर अनावश्यक भार के कारण जनता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता था इसलिए सभी राजनीतिक दल संविधान संशोधन से सहमत दिखे और यह पारित भी हो गया। बहरहाल छग में 68 विधायक जीतने (उपचुनाव में एक बढऩे के बाद 69) के बाद हालांकि मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने प्रधानमंत्री से मंत्रिमंडल की तय सीमा 15 से 20 प्रतिशत करने का अनुरोध भी किया था पर जाहिर है कि ऐसा संभव नहीं था। इसीलिए विधायकों को संसदीय सचिव बनाकर किसी तरह समायोजित किया गया है। यह बात और है कि केवल सरकारी बंगला, गाड़ी तथा सुरक्षा कर्मी के दायरे में अधिकारविहीन संसदीय सचिव बनने भी विधायक तैयार हो गये।

पूर्व प्रधानमंत्री शास्त्री, राजेन्द्र शुक्ल, ननकीराम रह चुके हैं संसदीय सचिव..

देश के प्रधानमंत्री रहे लाल बहादुर शास्त्री आजादी के बाद उत्तरप्रदेश में गोविंद वल्लभ पंत मंत्रिमंडल में संसदीय सचिव रह चुके हैं। वहीं अविभाजित म.प्र. तथा छग में स्व. राजेन्द्र प्रसाद शुक्ल (विधानसभा अध्यक्ष) भी 1967 के द्वारिका प्रसाद मिश्र मंत्रिमंडल में संसदीय सचिव (गृह) के रूप में कार्यभार सम्हाल चुके है। वहीं मुख्यमंत्री प्रकाशचंद सेठी (1972-75) में कमलादेवी संसदीय सचिव (स्थानीय शासन, समाज कल्याण) पं. श्यामाचरण शुक्ल मंत्रिमंडल (75 से 77) में किशनलाल कुर्रे (हरिजन कल्याण), भवानी लाल वर्मा (राजस्व बंदोबस्त) के संसदीय सचिव रह चुके है। म.प्र. में वीरेन्द्र कुमार सकलेचा मंत्रिमंडल (78-80) में ननकीराम कंवर (राजस्व) माधव सिंह ध्रुव (आदिम जाति कल्याण) तो सुंदरलाल पटवा मंत्रिमंडल (जनवरी-फरवरी 80) में वीरेन्द्र पांडे वन विभाग के संसदीय सचिव का कार्यभार सम्हाल चुके हैं।
म.प्र. में अर्जुन सिंह मंत्रिमंडल में 1981 के पुनगर्ठन में सुश्री गंगा पोटाई (ठाकुर) सहकारिता विभाग की संसदीय सचिव रही तो मोतीलाल वोरा मंत्रिमंडल (1989) में शिव नेताम, सहकारिता विभाग के संसदीय सचिव बनाये गये थे। सुंदरलाल पटवा मंत्रिमंडल (जून 1990 के विस्तार में ) गणेश राम भगत संसदीय सचिव आदिम जाति कल्याण बनाये गये थे। वहीं बाद के मंत्रिमंडलों में संसदीय सचिव बनाने की परंपरा ही समाप्त हो गई। छत्तीसगढ़ में डॉ. रमन सिंह ने फिर संसदीय सचिव बनाने की परंपरा शुरू की और अब भूपेश बघेल ने भी संभवत: उनका अनुसरण किया है। उस समय राज्यमंत्री तथा संसदीय सचिव को भी विधानसभा के भीतर प्रश्नों के जबाव देने का अधिकार होता था।

वैसे श्यामाचरण शुक्ल (89-90) के बाद मंत्रिमंडल में उपमंत्री बनाने की परंपरा समाप्त हो गई तो अविभाजित म.प्र. के समय दिग्विजय सिंह मंत्रिमंडल में आखरी बार राज्यमंत्री बनाये गये। छग राज्य बनने के बाद कबीना मंत्री बनाने की परंपरा ही शुरू हो गई। छत्तीसगढ़ राज्य बनने के पहले 1998 में दिग्विजय सिंह के मंत्रिमंडल विस्तार में भूपेश बघेल (परिवहन) शंकर सोढ़ी (वन) और धनेन्द्र साहू जल संसाधन, राज्यमंत्री के रूप में शामिल किये गये थे।

और अब बस…

  • 0 बिलासपुर में अमर अग्रवाल को पराजित करने वाले विधायक शैलेश पांडे को आखिर किसकी नजर लग गई…?
  • 0 राजधानी में नये एसएसपी अजय यादव के कार्य सम्हालने से कौन सा जनप्रतिनिधि कुछ असहज है?
  • 0 कई सालों से थाना निरीक्षक (टीआई) बनने वाले अफसरों को आखिर कब डीएसपी के रूप में पदोन्नत किया जाएगा?
  • 0 मरवाही विधानसभा से अमित जोगी के चुनाव लडऩे का रास्ता साफ हो गया है क्योंकि हाईकोर्ट ने नंदकुमार साय और संतकुमार नेताम की जोगी की जाति को लेकर लगई याचिका खारिज कर दी है।
  • 0 राजेन्द्र तिवारी को आखिर कम प्रभाव वाला निगम-मंडल क्यों सौंपा गया है? वहीं उनके साथी रह चुके सुभाष धुप्पड़ जरूर रायपुर विकास प्राधिकरण के अध्यक्ष बनकर पावरफुल हो गये हैं।