खत्म हुआ 492 साल का इंतजार, जानिए कब और कैसे शुरू हुआ राममंदिर का दौर

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रायपुर | आज हिंन्दुस्तान की राजनीति में एक और दौर का आगाज होने जा रहा है। जो राममंदिर सियासी दल में राजनीति का हिस्सा होता था आज उसे फिर से आस्था में ही बदल दिया है। सरकार ने यह साबित कर दिया की प्रभु राम आस्था और विश्वास का केंद्र हैं न की राजनीति के मुद्दों का। आज 492 साल का इन्तजार खत्म होने वाला है। अयोध्या में राममंदिर का भूमिपूजन आज पीएम मोदी के हाथों किया जाना है। इसकी शुरुआत राम मंदिर निर्माण के लिए चांदी की ईंट रखकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी करने जा रहे हैं। इसी के साथ मंदिर निर्माण का काम भी आधिकारिक रूप से शुरू हो जाएगा। साथ ही हिंदू धर्म में आस्था रखने वाले करोड़ों लोगों राम मंदिर निर्माण को लेकर सदियों पुरानी इच्छा भी पूरी हो जाएगी।

खास बात यह है कि बीजेपी की जिस वादे को आज पीएम नरेंद्र मोदी पूरा करने जा रहे हैं उसे गठबंधन राजनीति के एक दौर में अपने सहयोगियों को लुभाने के लिए भगवान राम के भव्य मंदिर के निर्माण के विवादास्पद मुद्दे को पीछे छोड़ना पड़ा था। लेकिन इतिहास खुद को दोहराता है। यह दोहराव राम मंदिर निर्माण की शुरुआत अपने विरोधियों पर बीजेपी की वैचारिक जीत के रूप में सामने आई है।

धारा-370 की समाप्ति की पहली वर्षगांठ भी है

अब तो कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी से लेकर कई विपक्षी नेता भी मंदिर निर्माण का स्वागत कर रहे हैं। इत्तेफाक से जिस दिन मंदिर निर्माण की प्रक्रिया को आगे बढ़ाने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हिन्दुत्व के आंदोलन की अगुवाई करने वाले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत की उपस्थिति में शिलान्यास करेंगे उसी दिन जम्मू एवं कश्मीर से धारा-370 ( Art-370 ) को निरस्त करने की पहली वर्षगांठ भी है।

एक साल पहले 5 अगस्त के दिन ही धारा-370 को समाप्त कर भाजपा ने विचारधारा से जुड़े अपने एक अन्य प्रमुख वादे को पूरा किया था। राजनीतिक जानकारों का कहना है कि बुधवार को होने वाले शिलान्यास में प्रमुख राजनीतिक उपस्थिति प्रधानमंत्री और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की रहने वाली है। दोनों ही इसके लिए उपयुक्त हैं क्योंकि दोनों हिन्दुत्व के प्रति अपनी अटल निष्ठा के लिए जाने जाते हैं।

राम रथ यात्रा में मोदी ने निभाई थी अहम भूमिका
भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय पदाधिकारी के नाते नरेंद्र मोदी ने वरिष्ठ नेता लाल कृष्ण आडवाणी की 1990 में हुई ‘राम रथ यात्रा’ में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। जबकि आदित्यनाथ के गुरू स्वर्गीय महंत अवैद्यनाथ ने 1984 में बने साधुओं और हिन्दू संगठनों के समूह की अगुवाई कर मंदिर आंदोलन में अहम योगदान दिया था।

साथ ही आज जहां भगवान राम का जन्म स्थान है वहां मंदिर निर्माण के पक्ष में साल 2019 में सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला देकर हिंदू और मुस्लिम समूहों के बीच ऐतिहासिक विवाद का कानूनी पटाक्षेप किया। वहीं मंदिर निर्माण की शुरुआत हिन्दुत्ववादी भावनाओं को आगे मजबूती देने का काम कर सकती है।

आस्था का मुद्दा

बीजेपी के एक नेताओं के मुताबिक अयोध्या में राम मंदिर निर्माण का मुद्दा बहुत पहले राजनीतिक मुद्दा हुआ करता था। लेकिन हमारे लिए यह हमेशा से आस्था का मुद्दा रहा है। सभी आम चुनावों में हमारे घोषणा पत्रों में राम मंदिर का निर्माण और धारा 370 को समाप्त करने का वादा हमारी प्रतिबद्धता को दर्शाता है। अब जबकि दोनों वादे पूरे हो गए है। जाहिर तौर पर हम इसकी बात भी करेंगे।

36 साल पहले हुई थी राम मंदिर आंदोलन की शुरुआत
बता दें कि राम मंदिर निर्माण के लिए राम जन्मभूमि आंदोलन की संकल्पना 1984 में दिवगंत अशोक सिंघल के नेतृत्व में विश्व हिंदू परिषद ने की थी। इसके लिए देश भर में साधुओं और हिंदू संगठनों को एकजुट करने की शुरुआत हुई थी। इस आंदोलन की शुरुआत बीजेपी के वरिष्ठ नेता आडवाणी के नेतृत्व में 1990 में शुरू हुई थी। जब राम रथ यात्रा के बाद से यह मुद्दा राजनीतिक हलकों में छाया रहा।

राममंदिर का पूर्ण समर्थन
इस यात्रा के बाद बीजेपी खुलकर राम मंदिर के समर्थन में आ गई। 1989 में पालमपुर में हुए बीजेपी के अधिवेशन में पहली बार राम मंदिर निर्माण का संकल्प लिया गया। आडवाणी ने अपनी प्रसिद्ध रथ यात्रा की शुरुआत गुजरात के सोमनाथ मंदिर से की थी। उनकी इस यात्रा को 1990 में प्रधानमंत्री वीपी सिंह के अन्य पिछड़ा वर्गो के आरक्षण के मकसद से शुरू की गई मंडल की राजनीति की काट के रूप में भी देखा जाता है।

बीजेपी को मान लिया था अछूत
लालकृष्ण आडवाणी की यह यात्रा देश के प्रमुख शहरों से होकर गुजरी जिसने लोगों का ध्यान आकृष्ट किया। उनकी इस यात्रा के चलते साम्प्रदायिक भावनाएं भी भड़की और दंगे भी हुए। इन सबके बीच राम मंदिर का आंदोलन जोर पकड़ता गया। विवादित स्थल पर बाबारी मस्जिद के ढांचे को छह दिसम्बर 1992 को गिराए जाने के बाद भाजपा कुछ समय के लिए भारतीय राजनीति में अन्य दलों के लिए अछूत हो गई लेकिन इसके बावजूद उसे सत्ता में आने से नहीं रोका जा सका।

राजनीतिक रूप से ‘अछूत’ होने के तमगे को हटाने के लिए भाजपा को पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और आडवाणी को धारा 370 और समान नागरिकता संहिता सहित राम मंदिर के मुद्दे को ठंडे बस्ते में डालना पड़ा। नये सहयोगियों को साधकर 1989 से 2014 के गठबंधन युग में सत्ता में आने के लिए भाजपा के लिए यह आवश्यक था।