अपना परिवार बचाने निकल पड़े हैं गांव… शहर से तो सर छिपाने भर का रिश्ता था…

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वरिष्ठ पत्रकार शंकर पांडेय की कलम से

मजदूरों की पीड़ा… दिल दहलाने वाले दृश्य ….. सड़कों पर कोई मजदूर अपनी पत्नी, मां, छोटे छोटे बच्चों के साथ तपती धूप में एक-दो गठरी लेकर भारी संख्या में सैकड़ों किलोमीटर का सफर…. पैदल, सायकल, हाथ ठेलों में करते दिखाई दे रहे हैं। लोगों का व्यवस्था तथा सियासत से भरोसा टूटता दिखाई दे रहा है। भूखे-प्यासे, सड़क दुर्घटना का शिकार होते लोगों को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के 20लाख करोड़ के पैकेज वाले सम्बोधन में आत्म गौरव… आत्म सम्मान, मानवीय संकट… शौचालय, सफाई अभियान कितना समझ में आया यह तो नहीं कहा जा सकता है पर वित्तमंत्री ने निश्चित ही पैकेज के माध्यम से लोगों का भरोसा तोड़ा है। भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कोरोना संकट से निपटने 20 लाख करोड़ का पैकेज देने की घोषणा की थी और उसके बाद वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने क्रमश: पैकेज की घोषणा की है पर सवाल यही उठ रहा है कि इस पैकेज से कोरोना प्रभावित जनता, किसान, मजदूर या आम आदमी को क्या लाभ होगा……।

जब मजदूर सड़कों पर है ऐन केन प्रकारेण अपने घरों की वापसी हेतु प्रयत्नरत है तब प्रधानमंत्री की लैण्ड, लिक्विडिटी, लेबर और लॉ की घोषणा का क्या मतलब निकाला जाए? उसके बाद वित्तमंत्री सीतारमण की ऐसे संकट के समय रोज क्रमश :पत्रकारवार्ता लेकर पैकेज का खुलासा करने की योजना भी तो समझ के परे हैं।

वित्तमंत्री ने पैकेज की घोषणा पर लोगों को उम्मीद थी कि पर पैकेज निकाला ढाक के तीन पात……

सरकार ने अभी तक सीधे तौर पर कितना रूपया इंडस्ट्रीज को दिया है जिससे वह अपने मजदूरों की तनख्वाह देने के बारे में सोचे, कच्चा माल खरीदकर उत्पादन शुरू करे… आत्मनिर्भर बने… जवाब…. एक रूपया भी नहींl एमएसएमई में 3 लाख करोड़ रुपये का ऋण मिलेगा वह भी 31 अक्टूबर से … तब तक मजदूर और उसके नियोक्ता क्या करेंगे?

आज सबसे अधिक जरूरत उस गरीब आदमी की सीधी मदद करने की है। आज सड़कों पर मजदूर है और जो गरीब लोग अपने घरों में है उनकी हालात चिंतनीय है। सेण्टर फॉर मानिटरिंग इंडियन इकोनामी (सीएमआईई) का सर्वे आया है वह बता रहा है कि लॉकडाउन और आगे बढ़ा तो भारतीय परिवारों से एक तिहाई से अधिक के पास जीवनयापन के लिए जरूरी संसाधन खत्म हो जाएगा । जहां तक शहरी इलाकों का सवाल है तो 65 फीसदी परिवारों के पास एक सप्ताह से अधिक जीने के संसाधन बचे हैं। जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में 54फीसदी लोगों के पास एक सप्ताह का जीने का संसाधन बचा है। एक चौकाने वाला तथ्य यह भी है कि देश की कामकाजी आबादी का 25 प्रतिशत हिस्सा बेरोजगार हो चुका है। ऐसे लोगों की मदद के लिए नगदी ट्रांसफर करने की जरूरत है।

व्यापारियों, किसानों को कर्ज देने की बात की जा रही है, टीडीएस में 25 फीसदी कटौती, यह कैसा पैकेज है। सवाल यह उठ रहा है कि क्या 20 लाख करोड़ के पैकेज के बाद मजदूर घर लौटना बंद कर चुके हैं…। क्या रोजगार छिन जाने की प्रतिकूल स्थिति का सामना कर रहे मजदूरों को क्या बड़ी राहत मिल गई? दोबारा रोजगार मिलने की गारंटी मिल गई? क्या उन्हें कुछ माह की सेलरी ही एडवांस में मिलने वाली है? क्या बेरोजगार हो चुके इन मजदूरों के लिए भूख से मरने की स्थिति टल जाएगी?

मोदी सरकार पैकेज पर….

8 करोड़ प्रवासी मजदूरों को अगले दो महीने मुफ्त राशन देने की घोषणा की गई है। सरकार 3500 करोड़ खर्च करेगी। यदि हिसाब लगाएं तो 8 करोड़ प्रवासी मजदूरों के लिए दो महीने में प्रति व्यक्ति खर्च 437.50रुपये आता है मतलब प्रति मजदूर परिवार को 218.25 प्रति माह मिलेगा। यदि एक परिवार में 4 सदस्यों का भीऔसत माने तो प्रति व्यक्ति 54 रुपये 68 पैसे का प्रति महीना पड़ता है क्या भूख मिटाने यह पर्याप्त है? वैसे प्रवासी मजदूरों को स्ट्रीट वेंडरों की तरह 10 हजार रुपये का स्पेशल क्रेडिट दिया जाता तो भी उनमें जान लौट सकती थी।

वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने कुटीर और लघु उद्योगों के लिए 3 लाख करोड़ रुपये के ऋण की घोषणा की है। इसमें 6 से साढ़े 6 लाख रुपये का कर्ज एक इकाई को औसतन मिल सकेगा। प्रश्न यह है कि यदि एमएसएमई पूंजी जरूरी है तो क्या श्रम जरूरी नहीं? भूखे पेट श्रमिक किस तरह काम करेगा। उद्योगों को खड़ा करने कर्ज दिया जा रहा है तो मजदूरों को जिंदा रखने के लिए कोई प्रावधान क्यों नहीं? किसानों को भी कर्ज लेने की बात पैकेज में कही गई है। एक साल बाद वसूली की बात है। क्या कर्ज से डूबे किसानों को ब्याज कम करने की घोषणा नहीं की जा सकती थी जबकि यह प्रयोग पहले म.प्र. तथा छत्तीसगढ़ की सरकार कर चुकी है।

डीएम से सीएम तक…

छत्तीसगढ़ के पहले मुख्यमंत्री, डीएम से सीएम बने अजीत जोगी आज अस्पताल में जीवन – मृत्यु से संघर्षरत है, इसके पहले भी वे मौत को चकमा दे चुके हैं… लोगों को अभी भी लगता है कि वे ठीक होकर फिर छत्तीसगढ़ की पूर्व की भांति सेवा करते रहेंगे।

1870 बैच के आईएएस अफसर ने अपने 16 साल अफसरी के कार्यकाल में 14 साल बतौर कलेक्टर अपनी सेवाएं देकर आजाद भारत में लंबे समय तक कलेक्टरी करने का रिकार्ड बनाया है। जब वे रायपुर में कलेक्टर थे तब इस क्षेत्र में विद्याचरण-श्यामाचरण शुक्ल का वर्चस्व था जब सीधी में कलेक्टर रहे तो वह अर्जुन सिंह का प्रभाव क्षेत्र था, जब इंदौर में कलेक्टर रहे तो वह क्षेत्र प्रकाशचंद्र सेठी और माधव राव सिंधिया का प्रभाव क्षेत्र था। अर्जुन सिंह की प्रेरणा और राजीव गांधी से चर्चा कर मात्र ढाई घंटे में इंदौर की कलेक्टरी छोड़कर सीधे राज्यसभा सदस्य बनने वाले वे ऐसे अफसर थे जिन्हें राज्यसभा का नामांकन दाखिल कराने इंदौर लेने दिग्विजय सिंह जैसे बड़े नेता पहुंचे थे। बहरहाल 2 बार राज्यसभा, 2 बार लोकसभा (रायगढ़-महासमुंद) सदस्य बनने के बाद शहडेल म.प्र. से लोकसभा चुनाव में पराजित होने वाले अजीत जोगी को छग का पहला मुख्यमंत्री बनना था। लगता है इसीलिए उनकी शहडोल में हार हुई थी…।

वैसे वे किस्मत के धनी तो रहे ही हैं। शहडोल में हारने के बाद उनकी राजनीति खत्म की बात करने वालों को तब आश्चर्य हुआ जब वे नये छत्तीसगढ़ के पहले मुख्यमंत्री बने जबकि उस समय श्यामाचरण, विद्याचरण, मोतीलाल वोरा जैसे दिग्गज सीएम बनने की कतार में थे। नये छत्तीसगढ़ में पहले विधानसभा चुनाव में भाजपा की सरकार बन रही थी तब विधायकों की जोड़-तोड़ के नाम पर अजीत जोगी को कांग्रेस से निलंबित किया गया तब लोगों को लगा कि राजनीति अब खत्म… पर विद्याचरण शुक्ल (तब भाजपा प्रत्याशी) के खिलाफ चुनाव लडऩे की चुनौती स्वीकार कर कांग्रेस से निलंबन समाप्त कराकर अपनी जीत दर्ज की और फिर मुख्यधारा में लौट गये। इसी चुनाव के दौरान ही गरियाबंद जिले में एक सड़क दुर्घटना में गंभीर घायल हो गये, व्हील चेयर्स उनका सहारा बन गई फिर भी उन्होंंने छग ही नहीं देश की राजनीति की। उनके बारे में कहा जाता है कि… वे परों से नहीं हौसले से उड़ान भरते हैँ… उन्होंने अपनी पत्नी डॉ. रेणु जोगी, पुत्र अमित जोगी को विधायक भी बनवा दिया। कांग्रेस से अलग होकर जोगी कांग्रेस की स्थापना की और बसपा से तालमेल कर 7 विधायक जितवाकर छग में क्षेत्रीय पार्टियों की संभावना का मार्ग भी खोला… वर्तमान में पति-पत्नी छग विधानसभा के सदस्य भी हैं। ज्ञात रहे कि छग में पूर्व केंद्रीय मंत्री विद्याचरण शुक्ल ने राकांपा के बेनर तले अपने प्रत्याशियों को विधानसभा चुनाव लड़ाया था और केवल एक विधायक ही चुना गया था यह बात और है कि उनके प्रत्याशियों को मिले मतों के चलते छग में भाजपा की सरकार बनने का मार्ग प्रशस्त हो गया था।

बहरहाल डीएम से सीएम बनने वाले अजीत जोगी संभवत: पहले अफसर हैं। एक घटना अजीत जोगी ने बताई थी। जब वे आईएएस प्रशिक्षण में थे तब अपने साथियों के साथ तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी से मिलने का मौका मिला था। किसी आईएएस प्रशिक्षु ने उनसे पूछा था कि मेडम, आप तो लौह महिला कहलाती हैं इसका राज क्या है? तब श्रीमती इंदिरा गांधी ने कहा था कि दृढ़ इच्छाशक्ति होना चाहिए lआप लोग भी भावी डीएम (कलेक्टर) हैँ. एक बात अभी से सुन लो… देश-प्रदेश को डीएम (कलेक्टर) सीएम (मुख्यमंत्री) तथा पीएम (प्रधानमंत्री) ही चलाता है। आप लोग भी भविष्य में देश चलाने के प्रमुख किरदार बनने वाले हैं।

और अब बस…

  • 0 मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का कहना है कि छग ने प्रवासी मजदूरों के लिए 10 रेल मांगने की रेल मंत्री का बयान गलत है। हमने 30 ट्रेन मांगी है, 9 तो आ भी चुकी है वही हमने एक करोड़ 17 लाख मजदूर स्पेशल ट्रेन के लिए रेलवे को भुगतान भी कर दिया है।
  • 0 महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे विधान परिषद के लिए निर्विरोध निर्वाचित हो गये हैं।
  • 0 छत्तीसगढ़ सरकार की तरफ से केंद्र सरकार को करीब 22 चिट्ठियां भेजी गई पर अधिकांश का तो जवाब ही नहीं आया।