क्या आपको पता है.. दक्षिण चीन सागर में 1955 की विमान दुर्घटना में बचे थे तीन लोग, क्या है उनका छत्तीसगढ़ से नाता वरिष्ठ पत्रकार शंकर पांडे बता रहे हैं…

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उड़ जाएंगे एक दिन तस्वीर से रंगों की तरह…
हम वक्त की टहनी पर बैठे हैं परिदों की तरह…

वरिष्ठ पत्रकार शंकर पांडे की कलम से..

द कश्मीर प्रिंसेस, एयर इंडिया के स्वामित्व वाला चार्टड लाकडीह एल-749 ए विमान 11 अप्रैल 1955 को एक बम विस्फोट से दक्षिण चीन सागर में क्षतिग्रस्त हो गया, इसमें 16 लोग मारे गये थे, दरअसल निशाना तत्कालीन चीनी प्रधानमंत्री चाऊ एन लाई थे पर एक मेडिकल इमरजेंसी के कारण वे उड़ान से चूक गये थे या जानबूझकर विमान में सवार नहीं हुए थे। इस विमान दुर्घटना में 3 लोग बच गये थे, उनमें एक थे, एम.सी. दीक्षित वे पहले नागरिक थे जिन्हें बाद में उनकी वीरता के लिए अशोक चक्र से सम्मानित किया गया था। अभी भी वे 102 वर्ष की उम्र में दिल्ली के मयूर विहार में रह रहे हैं, उनका छत्तीसगढ़ से पुराना नाता है। बहरहाल, यह विमान सांताक्रूज एयरपोर्ट बाम्बे (तब मुंबई नहीं) से उड़ान भरा था इसे काईटेक एयरपोर्ट (हांककांग) होकर केमायोरन एयरपोर्ट जकार्ता, इंडोनेशिया जाना था, जकार्ता में एशिया -एफो वाडुंग सम्मेलन के लिए चीनी और यूरोपीय प्रतिनिधियों, मुख्यरूप से पत्रकारों को लेकर यह विमान हांगकांग के लिए प्रस्थान किया था। विमान विस्फोट का कारण विमान में रखा एक टाईम बम विस्फोट माना जाता है। विस्फोट के पीछे चीनी प्रधानमंत्री चाऊ एन लाई की हत्या ही थी। खैर 1967 में सीआईए के एक भूतपूर्व एजेंट जान स्मिथ ने एक लेख में स्वीकार किया था कि एक चीनी, सीआईए के लिए काम करता था उसके जरिये कश्मीर प्रिंसेस विमान में टाईम बम रखवाया गया था। वैसे अमरीका लगातार इसका खंडन भी करता रहा है पर सूत्र कहते हैं कि अमरीका की गुप्तचर एजेंसी सीआईए एशियाई सम्मेलन में बाधा डालना चाहती थी पर चीनी प्रधानमंत्री इस षडयंत्र से बच ही गये।
इस विमान दुर्घटना में बचे सह पायलेट एम.सी. दीक्षित का छत्तीसगढ़ से नाता रहा है। पंडित रविशंकर शुक्ल की एक बहन कौशल्या थी उनके पुत्र रामेश्वर प्रसाद तिवारी का विवाह श्रीमती किशोर मालती से हुआ था उन्हीं के 3 भाई जगदीश चंद्र दीक्षित (पूर्व आईजी तथा कुलपति रविशंकर विश्वविद्यालय) एम.सी. दीक्षित (अशोक चक्र से सम्मानित पहले नागरिक)तथा वाई सी दीक्षित (पूर्व डीआईजी)थे। वैसे एमसी दीक्षित की पत्नी श्रीमती कौशल अविभाजित म.प्र. के विधान पुरूष के रूप में चर्चित मथुरा प्रसाद दुबे तथा पूर्व विधानसभा अध्यक्ष स्व. राजेन्द्र प्रसाद शुक्ल के निकट की रिश्तेदार थी।
करीब 5 साल पहले रायपुर के एक विवाह समारोह में स्वेतवर्ण, लंबी सफेद दाढ़ी वाले एम.सी. दीक्षित से मुलाकात हुई तब पता चला कि सहायक पायलेट के रूप में इन्होंने अदम्य साहस से मौत से जिंदगी छीन ली थी।
एयर इंडिया का वह विमान 11 अप्रैल 55 को दक्षिण चीन सागर के उपर बम विस्फोट के बाद सागर में गिर गया था। चीन की अधिकारिक न्यूज एजेंसी ‘शिन्हुआÓ के मुताबिक सन 2004 में चीन में कश्मीर प्रिंसेस से जुड़ी राजनीतिक फाईल से गोपनीयता का पर्दा उठाया गया जिससे पता चला कि चीन के तत्कालीन प्रधानमंत्री चाऊ एन लाई ही इस हमले में निशाना थे। पर उस विमान पर वे सवार ही नहीं हुए थे। दूसरा विश्व युद्ध शुरू होने वाला था वे उस समय दीक्षित वकील थे। बाद में मातृभूमि के लिए कुछ करने का जज्बा लेकर वायुसेना में बतौर ‘फाइटर पायलेट’ के रूप में काम सम्हाला 15 अगस्त 1947 में भारत को आजादी मिलने के बाद एक निजी एयर लाईंस में नौकरी कर ली जो बाद में एयर इंडिया के रूप में अस्तित्व में आई। बाडूंग की उड़ान बतौर सहायक पायलेट उनकी आखरी उड़ान थी। उन्हें इसके बाद कप्तान बनाया जाना तय था। करीब 5 साल पहले रायपुर में एक निजी प्रवास पर आये एम.सी. दीक्षित ने बताया था कि 11 अप्रैल 1955 को हांगकांग से 0425 टीएमटी पर उड़ान भरी हमें उड़ते हुए करीब 5 घंटे हुए थे तभी 0945 टीएमसी पर हमे विस्फोट की आवाज सुनाई दी। हम कुछ सम्हलते तब तक विमान के तीसरे इंजन में आग लग गई थीऔर आग का धुआं केबिन में फैलने लगा। हमने तीन आपातकालीन संदेश भी नूतन द्वीप के ऊपर होने का दिया और हमारा संदेश वाहक सिस्टम बंद पड़ गया। कुछ ही देर में हमने स्वयं को समुद्र में पाया किसी तरह हम समुद्र की सतह पर पहुंचे। हमें अपनी मौत निश्चित ही नजर आ रही थी। तभी हमे आसपास ग्राऊंड मैंटेनेंस इंजीनियर अनंत कारनिक और एक नैवीग्रेटर जगदीश पाठक को भी पाया तो कुछ हिम्मत बढ़ी करीब 12 घंटे तक किसी तरह हम समुद्र में एक दिशा की ओर तैरते रहे। पानी ठंडा नहीं था यह हमारे लिए सौभाग्य की बात थी। सुबह सुबह हमे सूरज की लालिमा के साथ कुछ दूरी पर जमीन दिखाई दी। इसी बीच कुछ इंडोनेशियाई मछुवारों की हम पर निगाह पड़ी, उन्होंने न केवल हमें बचाया, खाना खिलाया, पहनने को कपड़े भी दिये और संदेश भी भेजा बाद में हमें एक ब्रिटिश फ्रिगेट ने वहां से निकाला और हांगकांग ले जाकर सिंगापुर के अस्पताल में भर्ती कराया गया। भारत लौटने के बाद चूंकि उनकी कालरबोन टूट गई थी इसलिए विमान उड़ाने में अक्षम हो गये थे। बादमें सुरक्षित भारत लौटने पर तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने कोई मांग पूरी करने की इच्छा जाहिर की तो दीक्षित ने इंडोनेशियाई मछुवारों को भारतीय दूतावास के माध्यम से सम्मानित करने की इच्छा जाहिर की और नेहरूजी ने उनकी बात भी मानी बाद में अशोक चक्र से सम्मानित भी किया गया तब वे संभवत: पहले सिविलियन थे जिन्हें अशोकचक्र मिला था। बाद में तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने उन्हें जाम्बिया में सिविल एबिएशन में भारत का प्रतिनिधि बनाकर भेजा। बाद में जाम्बिया में एमसी दीक्षित ने ‘रामायण’ का गहन अध्ययन कर ‘रामायण पाठ’ की एक संस्था की आधारशिला रखी जो आज जाम्बिया में बड़ा रूप ले चुकी है।
एम.सी. दीक्षित के रिश्तेदार तथा यूनियन बैंक के पूर्व अधिकारी राजेन्द्र प्रसाद तिवारी के अनुसार अभी भी दीक्षित जी कश्मीर प्रिंसेस की घटना की जानकारी लोगों को देते हैं वहीं 102 की साल की उम्र में रामायण का गहन अध्ययन करते हैं।

और अब बस….

  • महेश प्रसाद वर्मा उर्फ महेश योगी ने छत्तीसगढ़ में राजिम के पास पांडुका में जन्म लिया था वे विश्व प्रसिद्ध संत के रूप में चर्चित हुए।
  • भारतीय इतिहास में वीर शिवाजी, महात्मा गांधी आदि का उल्लेख है कि उन्होंने अपनी मां की प्रेरणा और संस्कार से प्रभावित होकर सत्याग्रह की राह चुनी पर छत्तीसगढ़ में डॉ. खूबचंद बघेल के साथ उनकी मां केतकी बाई तथा पत्नी राजकुंवर ने स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय भागीदारी की जेल भी गये।
  • महाराजा चक्रधर सिंह का संगीत, ललित कलाएं और साहित्य के प्रति प्रेम के कारण ही भारत में कत्थक का रायगढ़ घराना चर्चित, स्थापित और स्वीकृत हुआ।