निर्भया केस में बड़ा फैसला : सुप्रीम कोर्ट ने दोषी अक्षय की पुनर्विचार याचिका ख़ारिज कर दिया, फांसी की सजा बरकरार ..

0
97

18 दिसंबर 2019 नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने निर्भया गैंगरेप और हत्या के दोषी अक्षय की फांसी की सजा को बरकरार रखा है। तीन सदस्यीय बेंच ने बुधवार को उसकी पुनर्विचार याचिका सुनवाई के बाद खारिज कर दी। अक्षय के वकील एपी सिंह ने सुनवाई के दौरान केस की जांच और पीड़ित के बयानों पर सवाल उठाए। करीब 30 मिनट की दलीलों में सिंह ने कहा कि पीड़ित ने आखिरी बयान में अक्षय या किसी दोषी का नाम नहीं लिया। पीड़ित की मौत ड्रग ओवरडोज से हुई थी।

मीडिया और राजनीतिक दबाव में अक्षय को सजा सुनाई गई। वह निर्दोष और गरीब है। भारत अहिंसा का देश है और फांसी मानवाधिकार का उल्लंघन है। इस पर कोर्ट ने कहा कि आप ठोस व कानूनी तथ्य रखें, बताएं कि हमारे फैसले में क्या कमी थी और क्यों पुनर्विचार करना चाहिए।

अक्षय के वकील एपी सिंह की दलील और कोर्ट की टिप्पणी…

निर्भया के दोस्त की गवाही और जांच पर: पीड़ित का दोस्त मीडिया से पैसे लेकर इंटरव्यू दे रहा था। इससे केस प्रभावित हुआ। वह विश्वसनीय गवाह नहीं था। इस पर जस्टिस भूषण ने कहा कि इसका इस मामले से क्या संबंध है। वकील ने कहा- वह लड़का मामले में इकलौता चश्मदीद गवाह है। उसकी गवाही मायने रखती है। वकील ने रेयान इंटरनेशनल स्कूल के छात्र की हत्या का उदाहरण दिया। उन्होंने कहा- इस मामले मैं बेकसूर को फंसा दिया था। अगर सीबीआई जांच नहीं होती तो सच सामने नहीं आता। इसलिए हमने इस केस मे भी सीबीआई जांच की मांग की थी।

दोषी रामसिंह के जेल में फांसी लगाने पर: वकील ने तिहाड़ के पूर्व जेल अधिकारी सुनील गुप्ता की किताब का जिक्र किया। जिसमें इस बात का संदेह जताया गया था कि राम सिंह की जेल में हत्या की गई थी। ये नए तथ्य हैं, जिन पर कोर्ट को फिर से विचार करना चाहिए। इस पर बेंच ने कहा कि हम लेखक की बातों पर नहीं जाना चाहते। ये एक खतरनाक ट्रेंड होगा, अगर लोगों ने ट्रायल के बाद किताबें लिखना शुरू कर दिया तो ये सही नहीं होगा।

फांसी की सजा पर दिल्ली के प्रदूषण का जिक्र: वकील ने कहा- फांसी सजा का प्रचीन तरीका है। कलयुग में लोग केवल 60 साल तक जीते है जबकि दूसरे युग में और ज़्यादा जीते थे। हम दिल्ली में रहते हैं जो प्रदूषण की वजह से वैसे ही गैस चैम्बर बन चुकी है। जिससे लोग मर रहे हैं तो मौत की सजा क्यों? महात्मा गांधी ने भी कहा था कि मौत की सजा उचित समाधान नहीं है। अपराधियों को पुनर्वास का मौका मिलना चाहिए। गरीब अपने लिए कानूनी उपाय सही से नहीं कर पाते, इसलिए उन्हें मौत की सजा दी जाती है। भारत अहिंसा का देश है, फांसी मानवाधिकारों का उल्लंघन है। भारत विरोधी संस्कृति का लक्षण है। इसलिए इसे खत्म कर देना चाहिए।

मौत से पहले निर्भया के बयानों पर: पीड़ित का आखिरी बयान संदेहास्पद था। उसे इसके लिए सिखाया और पढ़ाया गया था। लड़की ने अक्षय का नाम नहीं लिया और न ही वह वारदात में शामिल था। उसे फंसाया गया है। पीड़ित की मौत सेप्टीसीमिया और ड्रग ओवरडोज से हुई थी। दवा के रूप में मॉर्फिन दिए जाने से वह नशे में थी, तो आखिरी बयान कैसे संभव हुआ। मौत से पहले उसके 3 बयान लिए गए, जिनमें विरोधाभास है।
राक्षसों को पैदा कर ईश्वर शर्मसार होता होगा: मेहता

सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने पुनर्विचार याचिका का विरोध किया। मेहता ने कहा- ट्रायल कोर्ट ने सभी दलीलों और सबूतों को परखने के बाद फांसी सुनाई थी, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने भी सही माना है। यह अपराध ऐसा गंभीर है जिसे भगवान भी माफ नहीं कर सकता, जिसमें सिर्फ फांसी की सजा ही हो सकती है। ऐसे राक्षसों को पैदा कर ईश्वर भी शर्मसार होता होगा। इनसे कोई रहम नहीं होनी चाहिए।

निर्भया के पिता ने सुनवाई से पहले कहा- उम्मीद है कि दोषी अभय की याचिका खारिज होगी। देश चाहता है कि दोषियों को फांसी देने की तारीख तय हो। अक्षय ने याचिका में दिल्ली के प्रदूषण का हवाला देते हुए मौत की सजा पर सवाल उठाए। उसने कहा था कि जब प्रदूषण की वजह से वैसे ही दिल्ली में लोगों की उम्र घट रही है तो ऐसे में मौत की सजा क्यों दी जाए?

सीजेआई बोबडे ने खुद को सुनवाई से अलग किया

इससे पहले मंगलवार को चीफ जस्टिस एसए बोबडे ने याचिका की सुनवाई से खुद को अलग कर लिया। सीजेआई ने कहा था कि उनके एक रिश्तेदार ने निर्भया की मां की तरफ से केस की पैरवी की थी। नई बेंच में सीजेआई की जगह जस्टिस एसए बोपन्ना और जस्टिस आर भानुमति और जस्टिस अशोक भूषण शामिल हैं। निर्भया में तीन दोषियों की पुनर्विचार याचिकाएं पहले ही खारिज हो चुकी हैं।

अक्षय ने फांसी से बचने के लिए अजीब दलीलें दी थीं
अक्षय ने मौत की सजा से बचने के लिए अजीब दलीलें दीं थीं। उसने याचिका में दिल्ली के गैस चैंबर होने, सतयुग-कलियुग, महात्मा गांधी, अहिंसा के सिद्धांत और दुनियाभर के शोधों का जिक्र किया था। अक्षय ने कहा था कि जब दिल्ली में प्रदूषण की वजह से वैसे ही लोगों की उम्र घट रही है, तब हमें फांसी क्यों दी जा रही है?

विनय ने दया याचिका वापस लेने की मांग की
16 दिसंबर 2012 में हुए निर्भया दुष्कर्म और हत्या मामले में 2013 में निचली अदालत ने अक्षय, मुकेश, पवन और विनय को मौत की सजा सुनाई थी। एक अन्य दोषी राम सिंह ने कथित तौर पर तिहाड़ जेल में खुदकुशी कर ली थी। एक दोषी नाबालिग का केस जुवेनाइल कोर्ट में चल रहा है। 2017 में मुकेश, पवन और विनय ने फैसले पर पुनर्विचार याचिका लगाई थी, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल खारिज कर दिया था। दोषी विनय ने राष्ट्रपति के पास भेजी दया याचिका वापस लेने की मांग की है। उसने कहा था कि दया याचिका पर मेरे हस्ताक्षर नहीं हैं।

तिहाड़ ने शॉर्ट नोटिस पर जल्लाद मुहैया कराने को कहा
दिल्ली की तिहाड़ जेल ने उत्तर प्रदेश से दो जल्लाद मुहैया करवाने के लिए कहा है। उत्तर प्रदेश के एडीजी (जेल) आनंद कुमार ने इसकी पुष्टि करते हुए बताया है कि हमें 9 दिसंबर (सोमवार) को फैक्स के माध्यम से तिहाड़ जेल से एक पत्र मिला है, जिसमें यूपी के दो जल्लादों की सेवाएं मांगी गई हैं, क्योंकि उनके( तिहाड़ जेल) पास जल्लाद नहीं हैं। पत्र में दोषियों को फांसी दिए जाने का कोई जिक्र नहीं किया गया है, लेकिन कहा गया है कि इसकी जरूरत पड़ सकती है।