सोशल मीडिया पर एक तबका विश्वास करता है कि भारत के कहने पर रूस चीन को ‘धमका’ सकता है और उसे नियंत्रित कर सकता है।
पर एक्सपर्ट्स इस बात से इत्तेफ़ाक नहीं रखते। उनके अनुसार, ‘रूस एक कमज़ोर शक्ति है, जिसे खड़े होने के लिए चीन की सहायता की बड़ी सख़्त ज़रूरत है। रूस की आर्थिक हालत ख़राब है जिसमें चीन से उसे मदद चाहिए। ऐसे में भारत को खुली आँखों से ये देखना चाहिए कि रूस के लिए भारत भले ही एक महत्वपूर्ण साथी हो, पर वो भारत का एकतरफा समर्थन करने की स्थिति में नहीं है।’
वे कहते हैं कि “रूस भी अन्य देशों की तरह कूटनीतिक भाषा का ही प्रयोग करेगा।”
एक्सपर्ट्स ये भी कहते हैं कि ‘भारत और चीन के बीच अगर तनाव बढ़ा या छोटी-मोटी लड़ाई हुई, तो रूस की उपयोगिता बहुत ज़्यादा होगी क्योंकि भारत के पास भारी संख्या में रूसी हथियार और मशीनें हैं जिनकी सर्विसिंग और रिपेयर में रूस की बहुत ज़रूरत होगी, इसलिए भारत के पास रूस को नाराज़ करने का विकल्प नहीं है।’
भारतीय मीडिया में रक्षा मंत्री के इस दौरे को भारत की सैन्य क्षमता बढ़ाने की एक कोशिश के रूप में देखा जा रहा है। कई अख़बारों ने लिखा है कि ‘लद्दाख एलएसी पर चीन के साथ जारी कशीदगी के दरमियान भारत के रक्षा मंत्री अपने हथियारों को पूरी तरह से कारगर बनाने और मारक क्षमता को बढ़ाने के लिए रूस गए हैं ताकि चीन को हड़काया जा सके।’
मगर विश्लेषकों का मानना है कि ‘भारत सरकार देर से जागी है, और कोविड-19 महामारी की वजह से अब रूस से भारत को मिलने वाले हथियारों और डिफ़ेंस सिस्टम की डिलीवरी में अतिरिक्त समय लगेगा। पर जल्द से जल्द इनकी डिलीवरी के लिए रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह रूस से तक़ादा ज़रूर करेंगे।’