भूपेश सरकार ने सभी कलेक्टरों से मांगा DMF फंड का हिसाब.. मनमाने खर्च का हिसाब देने कलेक्टरों की उड़ी नींद..

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रायपुर 18 जून, 2019। छत्तीसगढ़ में भूपेश सरकार ने सभी कलेक्टरों की नींद उड़ा दी है। राज्य सरकार ने कलेक्टरों से डीएमएफ के तहत खर्च की गई राशि का हिसाब मांगा है। दरअसल कलेक्टर्स कांफ्रेंस में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने सभी कलेक्टरों को हिसाब देने का फरमान जारी किया था। सीएम के निर्देश के बाद उन जिलों के कलेक्टरों की नींद उड़ गई है, जहां डीएमएफ में मनमाना खर्च किया गया है।

मंत्रालय के अधिकारियों की माने तो कोरबा, दंतेवाड़ा जैसे जिलों में कलेक्टरों में मनमाने तौर पर खर्च किया हैं। वहीं, कुछ जिलों में कलेक्टरों ने बेहतर काम भी किया है, लेकिन डीएमएफ की उपयोगिता से अलग काम करने के कारण वे भी हिसाब देने में परेशान हो रहे हैं।

  • कुछ कलेक्टरों ने स्थानीय जरूरतों को देखते हुए फंड को खर्च किया है। ऐसे में बेहतर इस्तेमाल करने वाले कलेक्टर भी खर्च की जानकारी देने के दायरे में आ गये हैं।
  • बताया जा रहा है कि बीजापुर में डीएमएफ से स्पोर्टस अकादमी और सरकारी अस्पताल में सुविधाओं का विस्तार किया गया है। प्रदेश में कांग्रेस सरकार आने के बाद डीएमएफ पर सबसे ज्यादा फोकस है।
  • भाजपा सरकार में डीएमएफ की कमेटी से जनप्रतिनिधियों को बाहर कर दिया था और कलेक्टर को सभी अधिकार दे दिये गये थे।
  • भूपेश सरकार ने इसे बदलते हुए जनप्रतिनिधियों की स्वीकृति को अनिवार्य किया है।
  • प्रदेश में लोकसभा चुनाव निपटने के बाद डीएमएफ पर रिकार्ड तलब करके सरकार ने यह संकेत देने की कोशिश की है कि वो किसी प्रकार की गड़बड़ी को बर्दाश्त नहीं करेगी।

60 फीसदी भौतिक संरचना के काम को मिली थी मंजूरी

भाजपा सरकार में डीएमएफ मद से सरकारी भवन गार्डन, अफसरों के लिए लिफ्ट लगाने जैसे कई काम किए जा रहे थे। इन सारे कार्यों को भौतिक संरचना वाले काम की श्रेणी में रखा जाता है। इस तरह के काम डीएमएफ से करवाने के पीछे वजह ये थी कि खुद सरकार ने तय किया था कि भौतिक संरचना के काम 60 फीसदी तथा अभौतिक संरचना के सभी कार्य स्वीकृत होंगे। अब कांग्रेस सरकार ने साफ किया है कि डीएमएफ से केवल वही काम किए जाएंगे, जिनका लाभ सीधे खनन प्रभावित लोगों को मिले।

गैस सिलेंडर से लेकर कर्ज की ईएमआइ चुका रहे थे अफसर

अब तक डीएमएफ से खदान प्रभावित ग्रामों में महिलाओं को उज्जवल योजना के तहत शत प्रतिशत रसोई गैस, चूल्हा तथा पहला सिलेंडर देने की योजना पर खर्च हो रहा था। कई परियोजनाओं के लिए वित्तीय राशि के लिए बैंकों तथा वित्तीय संस्थाओं से लोन लेकर विकास कार्य करवाए जाने के लिए ईएमआई का भुगतान न्यास निधि से करने के लिए नियमों में प्रावधान प्रस्तावित किया था।

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