पार्षद चुनेंगे अध्यक्ष और महापौर, सरकार के पास रहेगी ताकत

0
101


13 अक्टूबर 2019, मनोज अग्रवाल, भिलाई।
छत्तीसगढ़ में नगरीय निकायों के अध्यक्ष एवं महापौर का चयन अब मतदाताओं के जरिए करने की बजाए पार्षदों के द्वारा किए जाने का कानून दो-चार दिन में बन जाने की उम्मीद की जा रही है 15 अक्टूबर तक राज्य सरकार ने जो कमेटी गठित की है उसके रिपोर्ट भी मिल जाएगी सरकार के इस फैसले के लागू हो जाने के बाद अध्यक्ष और महापौर की जवाबदारी सीधे-सीधे जनता के प्रति होने की बजाय वे अपने पार्षदों को ही खुश रखने में समय बिताएंगे।

पार्षद चुनेंगे अध्यक्ष और महापौर

बीते लंबे समय से नगरीय निकायों के चुनाव में अध्यक्ष और महापौर का चयन प्रत्यक्ष मतदान से संबंधित क्षेत्र के मतदाता करते आए हैं, अब इस व्यवस्था को छत्तीसगढ़ सरकार बदलने जा रही है। नई व्यवस्था के तहत अध्यक्ष और महापौर का चयन प्रत्यक्ष मतदान से चुने गए पार्षद करेंगे। अब तक अध्यक्ष और महापौर का चुनाव काफी खर्चीला होने के साथ-साथ राजनीतिक दलों के लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न रहता था। नई व्यवस्था लागू हो जाने के पश्चात अध्यक्ष या महापौर बनाने का केंद्र पार्षद हो जाएंगे जो सीमित होने के साथ-साथ अधिक जटिल नहीं रहेगा।

नई व्यवस्था से लाभ और हानि
पार्षदों के द्वारा अध्यक्ष और महापौर चुने जाने की प्रक्रिया और कानून बन जाने के पश्चात पार्षदों की कीमत बढ़ जाएगी। राज्य में सरकार होने का फायदा भी जबरदस्त तरीके से मिलेगा निर्दलीय पार्षदों की कीमत तय होने लग जाएगी मोलभाव, खरीद फरोख्त के आरोप और प्रत्यारोप लगने शुरू हो जाएंगे। पार्षदों की किडनैपिंग भी होने लगेगी।
प्रत्यक्ष मतदान से अध्यक्ष महापौर बेखौफ निश्चिंत होकर 5 साल का कार्यकाल पूरा कर लेते रहे हैं लेकिन अब ऐसा संभव नहीं होगा पार्षदों के दबाव में रहने के कारण अध्यक्ष और महापौर जनता की बजाए पार्षदों को ही खुश रखने में अपना समय व्यतीत करेंगे अध्यक्ष और महापौर अपनी जवाबदारी गंभीरता से नहीं निभाएंगे उन्हें हर पल पार्षदों की नाराजगी का भय बना रहेगा वे कभी भी बहुमत के आधार पर पद से हटाए जा सकते हैं जबकि प्रत्यक्ष मतदान से चुने जाने के बाद कम से कम पद से हटाए जाने का भय नहीं रहता रहा है।
आरक्षण की वजह से परेशानी
अध्यक्ष- महापौर के पदों का आरक्षण हो चुका है ऐसी स्थिति में यह भी संकट रहेगा कि संबंधित आरक्षित वर्ग का पार्षद जीत कर आए। भिलाई दुर्ग वर्तमान में अनारक्षित होने के कारण सामान्य वर्ग का व्यक्ति महापौर पद के लिए वैधानिक रूप से योग्य है पर पार्षदों के द्वारा चयन प्रक्रिया लागू हो जाने से किस वर्ग जाति से महापौर का चयन होता है यह स्पष्ट नहीं रहेगा क्योंकि अनारक्षित होने के कारण सामान्य वर्ग के व्यक्ति के साथ-साथ अन्य वर्ग के व्यक्ति भी इस पद के योग्य है। पर आरक्षित सीट के लिए उस वर्ग का होना अनिवार्य है यदि आरक्षित वर्ग का व्यक्ति नहीं मिलता है या उसकी संख्या कम होती है तो वह सरलता से अध्यक्ष या महापौर बन जाएगा। यदि सत्ता पक्ष से आरक्षित वर्ग का व्यक्ति नहीं मिलता है वह मजबूरी में विपक्ष से ही पार्षद तलाश करेगा।
सरकार का पूरा नियंत्रण होगा
अध्यक्ष एवं महापौर के चयन में राज्य सरकार की विशेष भूमिका रहेगी। कोई पार्षद सरकार के फैसले के खिलाफ जाने की हिमाकत नहीं करेगा। स्थानीय मंत्री एवं वरिष्ठ नेताओं की भी उपेक्षा नहीं कर पाएगा। यदि अब हम सरल भाषा में बात करें तो मुख्यमंत्री भूपेश बघेल अपनी इच्छा से अध्यक्ष और महापौर बनवाने में काफी हद तक कामयाब होंगे।