हसरतों का हो गया है इस कदर दिल में हुजूम… सांस रास्ता ढूंढती है आने-जाने के लिए…

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विशेष लेख : वरिष्ठ पत्रकार शंकर पांडे

छत्तीसगढ़ में अप्रवासीय मजदूरों के आने के पहले कोरोना पर लगभग विजय मिल चुकी थी पर हाल के कुछ समय से कोरोना संक्रामक बेकाबू होता जा रहा है। अभी की स्थिति में 19781 संक्रमित कोरोना मरीज हैं तो 19608 स्वस्थ हो चुके हैं तो 334 लोगों की मौत हो चुकी है इसमें भी अधिकांश की मौत अन्य बिमारियों के चलते हुई है। छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में कोरोना संक्रामकों की संख्या में तेजी से इजाफा हो रहा है। औसत 500 से 800 मरीज प्रतिदिन मिल रहे हैं। यह चिंता का विषय बना हुआ है। राजधानी रायपुर में एम्स, मेकाहारा, माना, आयुर्वेदिक कालेज, जुनेजा स्टेडियम सहित अन्य निजी अस्पतालों में मरीज शैया भर चुकी है। लोग भटक रहे हैं। इसीलिए मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने अतिरिक्त 2000 बैड और भी बढ़ाने का निर्देश दिया है। वैसे स्वास्थ्य मंत्री टी.एस. सिंहदेव का मानना है कि सितंबर माह अंत से कोरोना संक्रमण की रफ्तार उतार पर होगी यदि ऐसा हुआ तो काफी अच्छा होगा।

छत्तीसगढ़ में तो मुख्यमंत्री सचिवालय, निवास, राजभवन, विधानसभा सचिवालय, विधानसभा अध्यक्ष निवास, नया रायपुर स्थित इंद्रावती भवन तक कोरोना संक्रमण पहुंच चुका है। तो छग सरकार के कुछ मंत्री, कुछ विधायक सचिवालय के कुछ अफसर, कर्मचारी कुछ कलेक्टर, कुछ एसपी तथा अन्य पुलिस के अफसर भी कोरोना संक्रमित हो चुके हैं। कुछ थानों, पुलिस अधीक्षक कार्यालयों को भी कोरोना संक्रमित मिलने के कारण बंद भी किया जा चुका है।

दरअसल कोरोना की वैक्सिन तैयार नहीं हुई है इसलिए मुंह में मास्क लगाने, भीड़-भाड़ में जाने से बचने, हाथ बार बार धोने, बिना कारण घर से बाहर नहीं निकलने की हिदायत दी जाती है पर आम-खास लोग इसकी लगातार उपेक्षा कर रहे हैं जिससे संक्रमण बढ़ता ही जा रहा है। पहले बुखार, सांस लेने में तकलीफ, सर्दी, खांसी होने पर कोरोना की संभावना के लक्षण बताये गये थे पर अब तो इन लक्षणों के बिना भी कोरोना प्रभावित लोग हो रहे हैं।

हैपी हाईपोक्सिया….

एम्स रायपुर में एसोसिएट प्रोफेसर और शिशु रोग विभाग के डॉ. अतुल जिंदल के अनुसार हैपी हाईपोक्सिया वाले मरीजों को कोरोना के लक्षण कम महसूस होते हैं। गले में आक्सीजन की मात्रा को पहचानने वाले अंग को नुकसान पहुंचाने की वजह से मरीज को पता ही नहीं चलता और हृदय सहित शरीर के अन्य अंगों में दिक्कत आने से मौत हो जाती है। उन्होंने नई शोध का जिक्र करते हुए बताया कि कोरोना संक्रमण नाक, मुंह तथा आंख से शरीर में प्रवेश करने के बाद सीधे फेफड़े में पहुंच जाते हैं। संक्रमण फेफड़े में आक्सीजन और कार्बन डाईआक्साईड उत्सर्जन क्रिया करने वाली जगह के आस-पास खून के थक्के जम जाते हैं। आसपास पानी भर जाता है इसकी वजह से निमोनिया हो जाता है जिससे शरीर की प्रतिरोधक क्षमता कम होती जाती है और फेफड़ों के बाद हृदय, गुर्दे, किडनी, दिमाग सहित शरीर के अन्य क्रियाशील अंगों को निष्क्रिय कर देता है, मरीज गंभीर अवस्था में पहुंच जाता है। वैसे उन्होंने यह भी स्पष्ट किया है कि अभी तक कोरोना से मृत लोगों में अधिकांश टीवी, कैंसर, उच्च रक्तचाप, मधुमेह समेत कई अन्य बीमारियां भी जिम्मेदार रही है। वैसे अभी तक 2 से 5 प्रतिशत मौत ही हैपी हाईपोक्सिया की वजह से हुई है। खैर सुरक्षा, सावधानी अभी बेहतर इलाज है। अपने और परिवार की सुरक्षा के लिए सावधानी से रहें भीड़भाड़ में न जाएं जरूरी न होने पर घर पर रहें, मास्क का उपयोग करें, अन्य बीमारियों की दवाइयों का नियमित उपयोग करें, खान-पान पर परहेज करें…।

जीडीपी का माईनस होना…

राष्ट्रभक्ति के सामने बेरोजगारी, जीडीपी का माईनस होना, कोरोना की बढ़ती रफ्तार, मौत का डराता आंकड़ा, भुखमरी, गरीबी कोई महत्व नहीं रखता है, क्योंकि देश के कर्णहार सर्जिकल स्ट्राइक, राम मंदिर निर्माण, राफेल की खरीदी और चीन को सबक सिखाने को ही फिलहाल अपना कत्र्तव्य समझ रहे हैं। कोरोना से निपटने आर्थिक हालात सुधारने घोषित 20 लाख करोड़ का पैकेज कहां गया किसी को पता नहीं है। अब तो केंद्र की राज्यों को सलाह है कि यदि जीएसटी की उनके हक की राशि केंद्र से नहीं मिल रही है तो राज्य कर्ज लेकर काम चलाए। आखिर देश के नीति निर्धारकों की सोच पर अब तरस आने लगा है। भारत में जीडीपी का निगेटिव जाना चिंताजनक है। जीडीपी का अर्थ होता है सकल घरेलू उत्पाद मतलब यह कि देश में कुल मिलाकर जितना भी कुछ बन रहा है, बिक रहाहै, खरीदा जा रहा है या लिया दिया जा रहा है उसका जोड़ है जीडीपी। इसमें माईनस का मतलब साफ है कि देश में कुल मिलाकर तरक्की नहीं हो रही है। यदि बढ़त होती तो सरकार को अधिक टेक्स मिलता, ज्यादा कमाई होती और सरकार के पास तमाम कार्यों पर और उन लोगों पर खर्च करने के लिए अधिक रकम होगी जिन्हें मदद की जरूरत है।

नोटबंदी, नई जीएसटी प्रणाली के बाद कोरोना के कारण लाकडाऊन के चलते भारत सहित कई राज्यों की हालात चिंताजनक बन चुकी है। हालांकि केंद्र सरकार के अपने दावे अलग हैं पर जीडीपी में आई गिरावट से आम इंसान की जिंदगी पर बड़ा फर्क पडऩा तय है। भारत को फाइव ट्रिलियन डॉलर यानि 5 लाख करोड़ डॉलर की अर्थ व्यवस्था बनाने के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के सपने का क्या होगा? जीडीपी गिरने से आम आदमी सीधे प्रभावित होगा। अगर अर्थ व्यवस्था, मंदी में जा रही है तो बेरोजगारी का खतरा बढ़ जाता है, जैसे आम आदमी, कमाई कम होने की खबर पर अपने खर्चों पर नियंत्रण करने लगता है बिलकुल ऐसा ही व्यवहार कंपनियां करने लगती है और किसी हद तक सरकारें भी…। नई नौकरियां मिलने की बात तो दूर अब और भी छटनी तेज हो सकती है। सीएम आईई के मुताबिक जुलाई में 50 लाख नौकरी पेशा लोग बेरोजगार हो गये हैं। कुल मिलाकर भारत की हालात लगातार चिंताजनक होती जा रही है। नोटबंदी, जीएसटी की नई प्रणाली, लाकडाउन के बाद यदि विदेशी हमला होता है या हम करते हैं तो आर्थिक स्थिति का भगवान ही मालिक होगा…।

नगरनार स्टील प्लांट का डिमर्जर….

छग के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के कड़े विरोध के बावजूद भारत सरकार ने एनएमडीसी के नगरनार स्टील प्लाटं को डिमर्जर कर ही दिया। 20 हजार करोड़ लगाने के बाद भी अब इस प्लांट में एनएमडीसी का कोई स्वामित्व नहीं रहेगा। एनएमडीसी को 20 हजार करोड़ का नुकसान तो होगा साथ ही आदिवासी अंचल बस्तर के हाथ विकासका एक अवसर फिसल जाएगा। क्योंकि निजी कंपनियों को विकास की जगह अपने नफा-नुकसान से ही मलतब होता है। यानि निजी कंपनी नगरनार का संचालन करेगी तो वहां के आदिवासियों को कोई लाभ होगा ऐसा लगता नहीं है। ज्ञात रहे कि जगदलपुर से 16 किमी दूर नगरनार में 23 हजार करोड़ की लागत से वृहद स्टील प्लांट की स्थापना की जा रही थी, इसका 3 मिलियन टन प्रतिवर्ष स्टील उत्पादन की क्षमता का लक्ष्य था। इस संयंत्र में 90 प्रतिशत काम पूरा हो चुका है 900 से अधिक इंजीनियर, तकनीशियन, कर्मचारी 2 साल पहले ही भर्ती हो चुके हैं। बस प्लास्ट फर्नेश स्थापित कर उत्पादन प्रारंभ करना था। पर यह प्लांट निजी हाथों को बेचने की तैयारी है। इसके पहले भारत एल्यूमिनियम कंपनी का बाल्को भी निजी हाथों को बेच दिया गया था बस्तर के विकास, बेरोजगारी दूर करने का सपना दिखाने वाली केंद्र सरकार का बस्तर के नगरनार प्लांट को डिमर्जर करना एक घातक कदम ही माना जाएगा खासकर बस्तर के लिए?

बहु-बेटे की छग वापसी?

छत्तीसगढ़ी की एक बहु तथा बेटा भी अब म.प्र. कॉडर से छग की वापसी के लिए प्रयासरत हैं। दोनों आईपीएस अफसर हैं। दोनों का संबंध राजनांदगांव से है।
2006 बैच की आईपीएस हिमानी खन्ना म.प्र. से 3 वर्ष के लिए छत्तीसगढ़ प्रतिनियुक्ति पर आ रही है। उनके पति विनीत खन्ना म.प्र. काडर के आईपीएस अफसर हैं तथा वे भी 2006 बैच के प्रमोटी आईपीएस अफसर हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि हिमानी खन्ना (जैन) और विनीत खन्ना क्रमश: कटनी, राजगढ़ तथा मुरैना, छतरपुर (म.प्र.) में पुलिस अधीक्षक भी रह चुके हैं तो अविभाजित म.प्र. के समय रायपुर में सीएसपी, डीएसपी की भी जिम्मेदारी सम्हाल चुके हैं। यह 1997 के आसपास की बात है। बाद में म.प्र. से अलग होकर छत्तीसगढ़ बना तो दोनों को म.प्र. कॉडर मिल गया था। ज्ञात रहे कि विनीत खन्ना के पिता आर.एस. खन्ना शिक्षाविद होने के साथ ही राजनांदगांव के दिग्विजय कालेज मे कार्यरत भी रह चुके हैं। वहीं विनीत खन्ना पहले पुलिस उपनिरीक्षक बने थे फिर प्रशिक्षण के दौरान ही डीएसपी के लिए चयनित हो गये थे। खन्ना दम्पत्ति का एक बेटा भी रायपुर में व्यवसायरत हैं। वैसे हिमानी का तो आदेश हो चुका है और विनीत का भी आदेश होने को ही है। वैसे दोनों अफसर छत्तीसगढ़ को अच्छे से जानते पहचानते हैं। यहां यह बताना जरूरी है कि छग में 2005 बैच के लोग ही डीआईजी पदोन्नत हो गये हैं।

और अब बस…

0 छत्तीसगढ़ में अभी कोरोना का टेस्ट 10-12 हजार प्रतिदिन हो रहा है, हफ्ते भर के अंदर यह 20 हजार हो जाएगा स्वास्थ्य मंत्री टीएस. सिंहदेव ने यह जानकारी दी है।
0 बढ़ते कोरोना संक्रमण के चलते राजनांदगांव में एक सप्ताह का लाकडाऊन लागू कर दिया गया है।
0 महाराष्ट्र की तर्ज पर छत्तीसगढ़ में भी कोरोना संक्रमितों के लिए निजी अस्पतालों में इलाज की दर तय करना जरूरी है।