दीपावली कैसे मनाना है यह आपके आस्था पर निर्भर करता है परन्तु क्या नहीं करना है यह मानवता के लिए आवश्यक है: एचपी जोशी

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23 अक्टूबर 2019 रायपुर। हमें हमारा भारतीय संविधान अपने अंतरात्मा के अनुसार धर्म, आस्था, विश्वास करने का अधिकार देता है, स्वतंत्रता, समानता, अभिव्यक्ति और जीवन का अधिकार देता है। इसके साथ ही यह भी आवश्यक है कि इससे दूसरे व्यक्ति अथवा समूह के धर्म, आस्था, विश्वास को ठेस न पहुंचे, दूसरे के स्वतंत्रता, समानता, अभिव्यक्ति और जीवन के अधिकार का हनन न हो।

आसन्न दिनों में दीपावली है, दीपावली में कितना अच्छा और क्या खाना खिलाना है, किस ईश्वर, देवी देवता का पूजा करना है किस पद्धति से पूजा करना है इसपर किसी भी अन्य व्यक्ति से सीखने की जरूरत नहीं, अपने आस्था और विश्वास के अनुसार ही हमें करना चाहिए। आप मुहूर्त देखना चाहते हैं तो जरूर देखिए जो मुहूर्त पर विश्वास नहीं करता उनके लिए उनके सिद्धि के लिए मुहूर्त का कोई औचित्य ही नहीं है। उन्हें अर्थात जो अपने आस्था के अनुसार चाहे वह परम्परागत न भी हो दीपावली मनाने पर उतना ही फल मिलेगा, उतना ही सकून, उतना ही शांति और उतना ही सुख मिलेगा जितना परंपरा के अनुसार करने पर किसी को मिलता है। आपको अपने आर्थिक स्थिति और आस्था के अनुसार दीपावली मनाना चाहिए क्योंकि दीपावली 100001, 10001, 1001, 101, 51, 21 या 01 दिया जलने की बाध्यता नहीं है क्योंकि राजा राम आपके दिए जलाने का मोहताज नहीं हैं यह उनके प्रति प्रेम है। ये वही राम हैं जिन्होंने माता सबरी के प्रेम, आस्था और विश्वास के कारण उनके जूठे बेर खाए थे, मतलब आपको समझने की जरूरत है आपकी आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है तो कोई बात नहीं नए कपड़े पहनने या खरीदने की कोई जरूरत नहीं आप साफ सुथरे कपड़े पहनें।

लेखक का मानना है कि जब हम अधिक पटाखे जलाएंगे तो पर्यावरण प्रदूषित होगा, इसका तात्पर्य हम उत्सव नहीं मना रहे बल्कि अपने और अपने लोगों के लिए पर्यावरण में जहर घोल रहे हैं जिसे आगे हमें ही ग्रहण भी करना है। आज दिल्ली की स्थिति से आप भलीभांति परिचित ही होंगे, इसलिए अपने और अपनों की भविष्य के लिए पटाखे जलाने से परहेज़ करें, मुझे पता है मेरे इस लेख से कुछ लोगों को आपत्ति भी होगी और कुछ लोग Facebook, WhatsApp में अभद्र टिप्पणी भी करेंगे। मगर एक बार जरूर विचार करें कि क्या हमारा धर्म हमें पर्यावरण प्रदूषित करने अथवा दूसरों की जान जोखिम में डालने की अनुमति देती है, क्या हम इतने स्वार्थी हैं??

  • यदि आपके आसपास अथवा परिवार में बुजुर्ग, हृदय रोगी अथवा नवजात शिशु हों तो बिल्कुल ही पटाखे न जलाएं क्योंकि अधिक आवाज से उनकी जान, कान या आंख जा सकती है।
  • यदि आप राकेट किस्म के पटाखे जलाने के सौकिन है तब आपको इस बात का ख्याल रखना चाहिए कि आपके राकेट का दिशा आसमान की ओर है तिरछा नहीं, अन्यथा किसी की जान जा सकती है। ऐसा कई बार हुआ भी है।
  • अस्पताल (विशेषकर बच्चों और हृदय रोगी के) आसपास तेज आवाज वाले पटाखे न जलाएं।
  • अपने नवजात शिशु को पटाखे से दूर रखें, बेहतर होगा घर से बाहर न निकालें अन्यथा उनकी जान, कान और आंख को खतरा हो सकता है।
  • इस दीपावली के दिए में घी अथवा तेल में कपूर डालकर दीपक जलाए, अथवा धूप और गुड़ का हवन करें, ताकि आसपास के वातावरण में मौजूद रोगाणु समाप्त हो जाए और निरोगी वातावरण मिले।
  • आइए, अपने देश भारत, प्रदेश छत्तीसगढ़ को प्रदूषण युक्त और केंसर युक्त बनने से बचाएं, जहरीले पटाखे जलाने से परहेज करें।
  • श्रीरामचंद्र जी जब आयोध्या वापस आए उन दिनों पटाखे नहीं होते थे, इसलिए पटाखे जलाने की जरुरत ही नहीं है।
  • हम धर्म के नाम पर अपने और अपने आने वाली पीढ़ी को बर्बाद नहीं होने देंगे, पटाखे बिल्कुल नहीं जलाएंगे।
  • पटाखे जलाने के बजाय श्रीराम के नाम पर एक फलदार पेड़ या 24*7 आक्सीजन देने वाले कोई पेड़ जैसे पीपल जरूर लगाएं, और अपने भावी पीढ़ी को स्वच्छ पर्यावरण का उपहार दें।