हिंदी भाषा डॉट कॉम के कार्यक्रम में चौंकाने वाला खुलासा, सयुक्त राष्ट्र संघ की सर्वे के मुताबिक, 2040 में बचेंगी सिर्फ तीन भाषाएं.. लेकिन हिंदी भाषा..

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इन्दौर (मध्य प्रदेश)। भाषा को बचाए रखने के लिए हम सबको आगे आना होगा। आज तकनीक का समय है। तकनीक और भाषा मनुष्य की चेतना को बदलती है, यह मनुष्य की चेतना को संचालित करती है। संवेदना वाले साहित्य का सृजन कम हो चला है। लिखने के लिए पात्र,घटना और अक्षर नहीं मिलते हैं। अपनी भाषा से पोर्टल के माध्यम से जुड़ें। भाषा से ही संस्कृति बची रहती है। प्रत्येक अक्षर प्राचीन भारतीय संस्कृति का परिचायक है। यह बात प्रतिष्ठित पत्रिका ‘वीणा’ के सम्पादक राकेश शर्मा ने देवी अहिल्या विश्वविद्यालय के तक्षशिला परिसर स्थित मीडिया भवन में आयोजित कार्यक्रम में कही।

दरअसल मौका था हिंदी भाषा के लिए कार्यरत पोर्टल हिंदीभाषा डॉट कॉम के पहले स्थापना दिवस के मौके पर विजेता रचनाकारों को सम्मानित करने का। संपादक राकेश शर्मा का स्वागत शाल-श्रीफल से पोर्टल के संस्थापक-सम्पादक अजय जैन ‘विकल्प’ और संयोजक सम्पादक एवं देअविवि के पत्रकारिता विभाग की अध्यक्ष डॉ. सोनाली नरगुंदे ने किया। इसके बाद अतिथि परिचय संचालन कर रही प्रो. कामना लाड़ ने दिया। पोर्टल की प्रचार प्रमुख नमिता दुबे ने डॉ. नरगुंदे और अजय जैन का परिचय दिया।

2040 में सिर्फ तीन भाषाएं होगी, लेकिन हिन्दी नहीं

राकेश शर्मा ने इस मौके पर बड़ी बेबाकी से हिंदी की दशा पर अपनी बात रखते हुए कहा कि हिंदी का विकल्प हिंदी ही है।  आपने संयुक्त राष्ट्र संघ के एक सर्वे कि 2040 में भाषाएँ कैसी होंगी, में बताया कि सिर्फ तीन भाषाएं ही बचेंगी, जिसमें हिंदी नहीं है। उनका स्पष्ट कहना रहा कि हिंदी भाषा बचेगी तो हम बचेंगे। आपने पत्र लेखन के शब्द ‘कुशल’ का ‘कुश’  यानि घास से जुड़ा रोचक किस्सा सुनाया। 

इस मौके पर पोर्टल को आपने शुभकामनाएं देते हुए हिंदी के लिए किए जा रहे हैं कार्य को सराहा। मुख्य अतिथि राकेश शर्मा ने  दो स्पर्धाओं के विजेताओं विजय सिंह चौहान, डॉ. पूर्णिमा मंडलोई, डॉ. रीता जैन, देवेन्द्र सिंह सिसोदिया, कार्तिकेय त्रिपाठी ‘राम’ और मीना गोदरे ‘अवनि’ को पुरस्कृत किया। कार्यक्रम में रचनाकारों के साथ ही पत्रकारिता विभाग के विद्यार्थी भी उपस्थित रहे। आभार वरिष्ठ पत्रकार लक्ष्मीकांत पंडित ने माना।

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