जो तौर है दुनिया का उसी तौर से बोलो.. बहरों का इलाका है जरा जोर से बोलो..

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वरिष्ठ पत्रकार शंकर पांडेय..

तेलंगाना की राजधानी हैदराबाद में एक महिला डाक्टर के साथ हुए बलात्कार और फिर हत्या के मामले में गिरफ्तार 4 युवकों को पुलिस एनकाउंटर में मारे जाने सहित सुदूर अंचल बस्तर के बीजापुर जिले के सरकेगुड़ा में 28 जून 2012 को 17 आम ग्रामीणों को नक्सली कहकर सुरक्षा बल द्वारा एनकाउंटर करने की बात न्यायिक आयोग की रिपोर्ट में आने के बाद के मामले की चर्चा पूरे देश में है। एनकाउंटर, फर्जी एनकाउंटर का मामला हमेशा विपक्ष तथा मानव अधिकार कार्यकर्ता उठाते रहते हैं। क्या है एनकाउंटर…।

भारतीय संविधान के अंतर्गत ‘एनकाउंटर’ शब्द का कहीं जिक्र नहीं है। पुलिसिया भाषा में इस शब्द का इस्तेमाल तब किया जाता है जब सुरक्षाबल/पुलिस और चरमपंथी/ नक्सली या अपराधियों बीच हुई भिडंत में पुलिस दूसरे पक्ष को मौत के घाट उतार देती है। भारतीय कानून में कहीं भी एनकाउंटर को वैध ठहराने का प्रावधान नहीं है। लेकिन कुछ ऐसे नियम-कानून जरूर है जो पुलिस/सुरक्षाबलों को यह ताकत देते हैं कि वो असमाजिक तत्वों पर हमला कर सकती है और इस दौरान मौत को सही ठहरा सकती है। आमतौर पर सभी तरह के एनकाउंटर में पुलिस आत्मरक्षा के दौरान हुई कार्यवाई का जिक्र ही करती है। भारतीय अपराध संहिता (सीआरपीसी) की धारा 46 कहती है कि अगर कोई अपराधी खुद को गिरफ्तार होने से बचाने की कोशिश करता है या पुलिस गिरफ्त से भागने की कोशिश करता है या पुलिस/सुरक्षाबल पर हमला करता है तो इन हालातों में उस पर जवाबी हमला पुलिस/सुरक्षाबल कर सकते हैं।

वैसे देश की सर्वोच्च न्यायालय और राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने ऐसे मामलों पर अपने नियम-कानून बनाए हुए हैं। एनकाउंटर के दौरान हुई हत्याओं को एक्सट्रा ज्यूडिशियल किलिंग भी कहा जाता है। सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट शब्दों में कहा है कि इसके लिए सुरक्षाबल/पुलिस तय किये गये नियमों का पालन करें।

23 सितंबर 2014 को भारत के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश आर.एम. लोढ़ा और जस्टिस आर.एफ. नरीमन की बैंच ने एक फैसले में एनकाउंटर के दौरान हुई मौत की निष्पक्ष-प्रभावी और स्वतंत्र जांच के लिए नियमों के पालन पर जोर दिया था। पुलिस-सुरक्षाबल को अपराधिक गतिविधियों की सूचना मिलती है और किसी की मृत्यु की सूचना मिलती है तो तुरंत प्रभाव से धारा 157 के तहत कोर्ट में एफआईआर दर्ज होनी चाहिए, उस घटनाक्रम की एक स्वतंत्रजांच सीआईडी या दूसरे पुलिस स्टेशन की टीम से एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी की निगरानी में करवानी चाहिये, यह वरिष्ठ पुलिस अधिकारी उस एनकाउंटर में शामिल सबसे उच्च अधिकारी से एक रैंक उपर होना चाहिए। धारा 176 के अंतर्गत पुलिस-सुरक्षाबल की फायरिंग में हुई हर एक मौत की मजिस्ट्रियल जांच होनी चाहिये इसकी रिपोर्ट न्यायिक मजिस्ट्रेट के पास भेजना जरूरी है। जब तक स्वतंत्र जांच में किसी तरह का शक पैदा नहीं किया जाता तब तक मानवाधिकार आयोग को जांच में शामिल करना जरूरी नहीं है हालांकि घटनाक्रम की पूरी जानकारी राष्ट्रीय तथा राज्य मानवाधिकार आयोग के पास भेजना आवश्यक है।

इधर मार्च 1997 में तत्कालीन राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष जस्टिस एम.एन. वैंकट चलैया ने सभी मुख्यमंत्रियों को एक पत्र लिखकर कहा था कि पुलिस के जरिये फर्जी एनकाउंटर लगातार बढ़ रहे हैं, पुलिस अभियुक्तों को तय नियमों के आधार पर दोषी साबित करने की जगह उन्हें मारने को तरजीह दे रही है। जस्टिस वेंकट  चलैया जब 93-94 में सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश थे तब लिखा था…. हमारे कानून के पुलिस को यह अधिकार नहीं है कि वह किसी व्यक्ति को मार दे और जब तक यह साबित नहीं होता कि उन्होंने कानून के अंतर्गत किसी को मारा है तब तक वह हत्या मानी जाएगी, सिर्फ दो ही हालत में इस तरह की मौतों को अपराध नहीं माना जा सकता है पहला अगर आत्मरक्षा की कोशिश में दूसरे व्यक्ति की मौत हो जाए, दूसरा सीआरपीसी की धारा 46 पुलिस/सुरक्षाबलों को अधिकार देती है वह इस दौरान किसी ऐसे अपराधी को गिरफ्तार करने की कोशिश, जिसमें वह अपराध किया हो जिसके लिए मौत की सजा या आजीवन कारावास की सजा मिल सकती है इस कोशिश में अपराधी की मौत हो जाए।

सरकेगुड़ा फर्जी एनकाउंटर…।

22 मई 2010 को तत्कालीन राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष जस्टिस जीपी माथुर ने कहा था कि पुलिस को किसी की जान लेने का अधिकार नहीं है। जब पुलिस पर किसी तरह के गैर-इरादतन हत्या के आरोप लगे तो उसके खिलाफ आईपीसी के तहत मामला दर्ज होना चाहिए।

आदिवासी अंचल बस्तर के घूर नक्सली प्रभावित जिले बीजापुर के सरकेगुड़ा में 28 जून 2012 की रात बासागुड़ा थाना क्षेत्र में कोसगिड़ा तथा राजपेटा के आदिवासियों को एनकाउंटर के नाम पर 17 (नाबालिकों सहित) की मौत के मामले में सेवानिवृत्त जस्टिस अग्रवाल के नेतृत्व में गठित न्यायिक आयोग की जांच रिपोर्ट में तथाकथित एनकाउंटर में सुरक्षाबलों के 190 जवानों को ‘फर्जी मुठभेड़’का दोषी पाया गया है अब बस्तर के आदिवासी भी फर्जी मुठभेड़ करने के मामले में दोषी राजनेता, बड़़े पुलिस अफसर तथा मुठभेड़ में शामिल 190 जवानों के खिलाफ बासागुड़ा थाने में एफआईआर करने लामबंद हो रहे हैं। इस संघर्ष का नेतृत्व सरकेगुड़ा की कमला काका कर रही है जिनके भतीजे राहुल की इस मुठभेड़ में मौत हो गई थी। वैसे सरकेगुड़ा में फर्जी मुठभेड़ की जांच रिपोर्ट राज्य सरकार के पास 17 अक्टूबर को पहुंच गई थी लेकिन इसे कुछ अखबारों में अंश प्रकाशित होने के बाद सरकार ने विधानसभा में प्रस्तुत किया? तब राज्य में भाजपा की सरकार थी और केंद्र में कांग्रेस की सरकार थी। तब विपक्ष में रहकर इस मामले में कांग्रेस ने जांच समिति गठित की थी और फर्जी एनकाउंटर साबित किया था तब के जांच दल के सदस्य विक्रम मंडावी अब बीजापुर के विधायक हैं। बहरहाल 17 ग्रामीणों की मौत के मामले में राजनीति शुरू हो गई है। हाल ही इस फर्जी एनकाउंटर को लेकर सत्ताधारी दल के विधायकों ने राज्यपाल सुश्री अनसुईया उइके से मुलाकात कर दोषियों पर कार्यवाही की मांग की। अब सवाल यह उठ रहा है कि कानून व्यवस्था राज्य सरकार के अधीन है, जब न्यायिक आयोग की स्पष्ट रिपोर्ट और अनुशंसा मिली है तो कांग्रेस के प्रतिनिधि मंडल को राज्यपाल की जगह मुख्यमंत्री भूपेश बघेल से मुलाकात कर दोषियों पर कार्यवाही की मांग करना था क्योंकि इस मामले में आगे की कार्यवाही केंद्र को नहीं राज्य सरकार को लेना है। वैसे एक आश्चर्य की बात यह भी है कि न्यायिक आयोग की सरकेगुड़ा मुठभेड़ मामले को फर्जी ठहराने की रिपोर्ट आने के बाद सत्ताधारी दल का नेता यहां के एकमात्र मंत्री भी वहां नहीं पहुंचे वैसे भाजपा के डॉ. रमन सिंह के कार्यकाल में यह फर्जी मुठभेड़ हुई थी जाहिर है कि भाजपा के नेता तो वहां जाने से रहे। वैसे राज्य सरकार को कानूनी राय लेकर जल्दी ही कोई बड़ी कार्यवाही करनी चाहिए क्योंकि 17 बेकसूर आदिवासियों की फर्जी मुठभेड़ के मामले में मारे जाने की घटना के बाद कड़़े कदम उठाने से भविष्य में फर्जी एनकाउंटर रोकने में कुछ मदद तो मिलेगी ही… वैसे बस्तर के आदिवासी लामबंद हो रहे हैं  इस पूरे मामले में लड़ाई लडऩे वाली कमला काका सलाम की हकदार तो है कि जिन्होंने अपने फर्जी मुठभेड़ के आरोप को अंतत: साबित ही करके दम लिया।

नक्सली नेता रमन्ना की मौत…

55 वर्षीय नक्सली नेता, 1989-2015 तक करीब 150 सुरक्षाबलों के लोगों की हत्या, लूट तथा 32 गंभीर अपराधिक प्रकरणों का आरोप तथा 4 नक्सल प्रभावित राज्यों में 1.4 करोड़ का वांछित अपराधी रमन्ना उर्फ राउलू श्रीनिवास उर्फ श्रीनू उर्फ नरेन्द्र उर्फ संतोष उर्फ राऊला उर्फ श्रीनिवास उर्फ कुंटा की हाल ही में हृदयघात से मौत हो गई है। 18 वर्ष की उम्र में सीपीआई (माओवादी) काडर का एक सक्रिय सदस्य था और वह कुछ वर्षों से बस्तर में ही सक्रिय था। 6 मई 2010 को सुकमा जिले के तालमेटला पहाड़ी जंगल में 76 सीआरपीएफ के जवानों के नरसंहार और इसी जिले के रेगडगट्टा में जुलाई 2007 में 23 जवानों की शहादत के मामले रमन्ना की सक्रिय भूमिका रही थी।

मौत के समय रमन्ना पर नक्सल प्रभावित 4 राज्यों द्वारा करीब 1 करोड़ 4 लाख का ईनाम घोषित था। छत्तीसगढ़ सरकार ने उस पर 40 लाख, महाराष्ट्र सरकार ने 60 लाख, तेलंगाना सरकार ने 25 लाख तथा झारखंड सरकार ने रमन्ना पर 12 लाख का ईनाम घोषित किया था। बताया जाता है कि रमन्ना ने अपनी पहली पत्नी की मौत के बाद कोण्टा (बस्तर) की आदिवासी महिला सावित्री से दूसरा विवाह किया था। तेलंगाना के वेकल गांव, तहसील भांडुर जिला वारंगल का रहने वाला रमन्ना केवल 7 वीं तक पढ़ा था। अब सावित्री – रमन्ना का बेटा रंजीत भी माता-पिता की राह में नक्सलवाद की तरफ चल पड़ा है हालांकि अभी उसका कोई अपराधिक रिकार्ड नहीं बन सका है।

और अब बस…

0 आईपीएस आलोक टंडन ने दंतेवाड़ा एसपी रहते हुए आत्महत्या कर ली थी हालांकि इतने सालों बाद उनकी आत्महत्या का कारण अस्पष्ट है।

0 बिलासपुर में पुलिस अधीक्षक रहे राहुल शर्मा की भी संदिग्ध हालात में मृत्यु हो गई थी वैसे पुलिस रिकार्ड में आत्महत्या दर्ज है पर कारणों का खुलासा अभी तक नहीं हो सका है।

0 रायपुर के सदर बाजार में भी मुन्ना तिवारी की पुलिस मुठभेड़ में मौत हो गई थी उस समय रूस्तमसिंह, सीपीजी उन्नी जैसे दबंग अफसर शहर, जिले में तैनात थे।