बागियों की स्थिति पार्टी से बाहर कुछ भी नहीं, पढ़िए पूरा एनालिसिस

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सीजी मेट्रो डॉट कॉम/भिलाई/मनोज अग्रवाल

भिलाई। टिकट बंटवारे के साथ ही भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस में लगभग हर विधानसभा सीट से दोनों दलों से बागी होने की खबर आ रही है। साथ ही  बागियों द्वारा चुनाव लड़ने की जानकारी मिल रही है। ऐसे में यह स्पष्ट हो जाता है कि यदि किसी व्यक्ति को टिकट नहीं मिलती है तो वह बागी होने के लिए तैयार बैठ जाता है। वह स्वयं नहीं सोचता की एक विधानसभा सीट से कितने लोगों को टिकट दी जा सकती है। दूसरी तरफ पार्टी से बाहर रहने की स्थिति में ऐसे बागियों की स्थिति एक निर्दलीय की हो जाती है और मतदाता ऐसे निर्दलीय को वोट नहीं देना चाहती बल्कि मतदाताओं का vote राजनीतिक दलों के पक्ष में ही जाता है।

बहुसंख्यक समाज का दबाव

भाजपा हो या कांग्रेस टिकट देते समय जातीय समीकरण पर विचार करती है। बहुत कम परिस्थितियां ऐसी है जहां पर जाति समीकरण का महत्व नहीं होता। दूसरी तरफ बहुसंख्यक समाज राजनीतिक दलों पर यह दबाव बनाते हैं कि उनके समाज के अधिक से अधिक लोगों को टिकट दिया जाए, चाहे वह कांग्रेस में हो या भारतीय जनता पार्टी में। बहुसंख्यक समाज अपनी संख्या का दावा करते हुए भी निर्दलीय चुनाव नहीं लड़ना चाहता बल्कि उसे किसी बड़े राजनीतिक दल से टिकट की चाह रहती है। यही कारण है कि भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस दोनों को बहुसंख्यक समाज के दबाव में मजबूरी में आना पड़ता है जो यह साबित करता है कि राजनीतिक दल से लड़ने में ही भलाई है। यदि बहुसंख्यक समाज में इतनी शक्ति होती तो वह निर्दलीय चुनाव लड़कर अपने समाज के सभी सदस्यों को  जीत दिला देता।

सरोज पांडे के भाई-भाभी की बगावत

राजसभा सदस्य सरोज पांडे के भाई राकेश पांडे और उनकी पत्नी चारुलता पांडे को लेकर पिछले दो-तीन दिनों में एक ऐसा माहौल बनाने की कोशिश हो रही है मानो इनको टिकट नहीं देकर भारतीय जनता पार्टी ने गंभीर अपराध कर दिया है और यह अब बगावत के मूड में आ गए हैं। चारु लता पांडे ने तो भिलाईनगर  और वैशालीनगर विधानसभा क्षेत्र से निर्दलीय चुनाव लड़ने के लिए नामांकन पत्र भी खरीद लिया है। राकेश पांडे ने तो डॉक्टर रमन सिंह पर गंभीर आरोप भी लगाने शुरू कर दिए हैं और यह दुहाई दे रहे हैं कि 30 साल की सक्रिय राजनीति करने का उन्हें क्या मिला बल्कि उनकी टिकट यह क्या कहकर काट दी गई कि इससे परिवारवाद को बढ़ावा मिलेगा जबकि ऐसा नहीं है। वे इसके हकदार थे और हैं।

पार्टी छोड़कर जाने वाले की हैसियत

राकेश पांडे ने जिला भारतीय जनता पार्टी के पदाधिकारियों का कथित इस्तीफा दिलवाकर अपनी ताकत सिद्ध करने की कोशिश की है, उन्होंने यहां तक कहा कि जिला भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष सावलाराम डहरे ने भी पद से इस्तीफा दे दिया है लेकिन बाद में सावलाराम डहरे ने इस बात का खंडन कर दिया लेकिन इसकी पुष्टि भी की कि उनको छोड़कर संगठन के बाकी लोगों ने अपने-अपने पदों से राकेश पांडे के समर्थन में इस्तीफा दे दिया है। इनके पार्टी से बगावत करने एवं इस्तीफा देने की तुलना राष्ट्रीय स्तर के नेताओं से हो रही है.। कहा जा रहा है कि भारतीय जनता पार्टी के बाहर जाकर इनकी क्या हैसियत होगी ? भाजपा के कार्यकर्ता राष्ट्रीय स्तर पर लालकृष्ण आडवाणी, यशवंत सिन्हा, शत्रुघन सिंहा, मुरली मनोहर जोशी, जसवंत सिंह आदि का उदाहरण देकर बता रहे हैं कि पार्टी से अलग होने के बाद या पार्टी से बगावत करने की धमकी देने से उनकी हैसियत क्या रह जाती है, यदि यशवंत सिंहा, लालकृष्ण आडवाणी, शत्रुघ्न सिन्हा में इतनी ताकत होती तो वे पार्टी को कब का छोड़ देते लेकिन उनकी हैसियत पार्टी से बाहर कुछ नहीं है, यदि पार्टी छोड़ते भी हैं तो किसी न किसी राजनीतिक दल का हिस्सा जरूर बनेंगे लेकिन उनकी इज्जत बिल्कुल नहीं होगी।

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