इन गाँवों में 20 से ज्यादा हैंडपंप, लेकिन पानी को तरस रहे ग्रामीण…. जानिए क्या है मामला

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There are more than 20 hand pumps in these villages, but the villagers are craving for water... Know what is the matter

गरियाबंद ज़िले में ग्राम पंचा

आपने समुंदर के पास जाकर प्यासे वापस आ जाना वाली कहावत तो सुनी ही होगी
कुछ ऐसे ही मिलती जुलती खबर आज हम आपको बताने जा रहे हैं।
खबर गरियाबंद जिले की है जहाँ के ग्राम पंचायत आमामोरा और ओड में 20 से ज्यादा हैंडपंप मौजूद तो हैं लेकिन वहाँ के ग्रामीण पानी को तरस रहे हैं। ऐसा इसलिए की इन गाँवों में जितने भी हैंडपंप लगाया गया है उनसे पानी तो आता है लेकिन वो पीने लायक नहीं है। सभी में लाल पानी यानी आयरन युक्त पानी निकलता है. इसलिए इन स्रोतों के पानी का उपयोग कभी पीने के लिए नहीं किया जाता. जिले में पहाड़ों के उपर जो जनजाति निवास करती है वो आज भी पीने के पानी के लिए झिरिया पर आश्रित है।

ग्रामीणों का कहना है कि वर्तमान में जल जीवन मिशन के तहत प्रत्येक घरों में नल का कनेक्शन लगाया गया है, पानी टंकी और पाइप लाइन का काम जारी है. इस योजना के तहत पुराने आयरन युक्त पानी स्रोत को कनेक्ट कर घर-घर पानी देने की तैयारी की जा रही है, लेकिन इस पानी को कोई नहीं पी सकेगा साथ ही यह भी बताये की पहाड़ों में बसे ग्राम के सभी जल स्रोत में आयरन होने की जानकारी प्रशासन को है, बार बार रिमूवल प्लांट लगाने की तक मांग की जा चुकी है लेकिन इस ओर कभी ध्यान नहीं दिया गया है।


ग्रामीणों का कहना है कि स्टील के बर्तन में लंबे समय तक पानी रखा गया तो बर्तन लाल हो जाता है. आयरन से कई पंप के पाइप सड़ चुके हैं। प्लास्टिक काली टंकी में तक आयरन अपनी छाप छोड़ जाता है. नहाने पर साबुन नहीं घुलता, सर धोने से बाल चिपचिपा जाता है. यहां का पानी किसी काम का नहीं है. यही हाल आमामोरा का भी बताया गया. जहां साल में झिरिया खनन और मरम्मत में ग्राम पंचायत विकास मद का दो तिहाई खर्च किया जाता है.

यह प्राकृतिक स्रोत वरदान से कम नहीं हैं प्राकृतिक स्रोत सूखने पर शार्प से कम नहीं.

ग्राम पंचायत आमामोरा और ओड़ दोनों जगह बालक आश्रम संचालित है और वहाँ सोलर सिस्टम भी लगाया गया है पर हॉस्टल का सोलर सिस्टम 6 माह से फेल है. उच्च अधिकारियों को इसकी सूचना दे दी गई है. पावर सप्लाई नहीं होने के कारण वाटर फिल्टर का इस्तेमाल भी नहीं हो रहा है