पन्नों से परे भी है एक जिंदगी…. सब किरदार, किताबों में नहीं होते…

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वरिष्ठ पत्रकार शंकर पांडेय की कलम से

रायपुर 9 जुलाई 2021। छत्तीसगढ़ की राजनीति में रमेश बैस का रिकार्ड बन चुका है। पार्षद से अपनी राजनीति की शुरुवात करने वाले बैस विधायक, सांसद, केंद्रीय मंत्री, त्रिपुरा के बाद अब झारखंड के राज्यपाल बन गये हैं। हालांकि रमेश बैस के पहले मोतीलाल वोरा भी उ.प्र. के राज्यपाल बन चुके हैं। यदि खरसिया छग से विधानसभा उपचुनाव में जीतने वाले अर्जुन सिंह को भी जोड़ दे तो वे भी पंजाब के राज्यपाल रह चुके हैं।

भाजपा के बड़े नेताओं में रमेश बैस की गिनती होती है। ब्राम्हणपारा वार्ड से उन्होंने वार्ड मेँबर बतौर अपनी राजनीति शुरू की यह बात 1978 के आसपास की है। उसी के बाद 1980 में रमेश बैस को मंदिर हसौद विधानसभा से प्रत्याशी बनाया गया और उन्होंने अपनी जीत दर्ज कर म.प्र. विधानसभा में पहुंच गये थे। 1989 में रायपुर लोस के लिए चुने गये यह 9 वीं लोकसभा थी। उसके बाद 11 वीं, 12 वीं,13 वीं, 14 वीं, 15 वीं तथा 16 वीं विधानसभा में निर्वाचित होते रहे। हालांकि 91 के लोस चुनाव में बैस को विद्याचरण शुक्ल से मात्र 959 मतों से पराजय का सामना करना पड़ा पर 1998 के लोकसभा चुनाव में विद्याचरण शुक्ल को 83379 मतों से पराजित कर पिछली हार का बदला ले लिया वहीं 2014 के लोस चुनाव में पूर्व मुख्यमंत्री पंडित श्यामाचरण शुक्ल को 1 लाख 71 हजार 646 मतों से पराजित किया था। शुक्ल बंधुओं को पराजित करने का भी उनका रिकार्ड है वहीं छग के वर्तमान मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को भी लोस चुनाव में पराजित कर चुके हैँ । वैसे विद्याचरण शुक्ल रायपुर/महासमुंद से 8 बार सांसद बन चुके थे तो रमेश बैस 7 बार एक ही लोकसभा रायपुर से सांसद बन चुके हैं।एक ही लोकसभा से 7बार जीतने का रिकार्ड तो अटल बिहारी बाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी का भी नहीं है… अभी के पीएम नरेंद्र मोदी तो दूसरी बार, अमित शाह पहली बार लोस सदस्य बने है……2019 में रमेश बैस को लोकसभा प्रत्याशी नहीं बनाया गया यदि वे बनते और जीत जाते तो विद्याचरण शुक्ल की जीत के रिकार्ड की बराबरी कर लेते….खैर बैस, अटल बिहारी मंत्रिमंडल में इस्पात एवं खान, रसायन एवं उर्वरक राज्यमंत्री भी 1998 से 2003 तक बने थे। 29 जुलाई 2019 को रमेश बैस को त्रिपुरा का राज्यपाल बनाया गया था हाल ही में उन्हें झारखंड का राज्यपाल बनाया गया है। छग के मूलनिवासी का 2 राज्यों का राज्यपाल बनने का रिकार्ड बन चुका है। वैसे स्व. मोतीलाल वोरा ने भी 1955-60 से राजनांदगांव से राजनीति शुरू की थी बाद में दुर्ग आकर वार्ड पार्षद बने, मप्र में विधायक, राज्यमंत्री, मुख्यमंत्री से उत्तर प्रदेश के राज्यपाल फिर केंद्रीय मंत्री तक का सफर पूरा किया। वे भी राजनीति के अजातशत्रु माने जाते थे। यदि छग के खरसिया उपचुनाव में स्व. अर्जुन सिंह की जीत को भी आधार माना जाए तो विधायक, मंत्री अविभाजित म.प्र. के मुख्यमंत्री, केंद्रीय मंत्री, पंजाब के राज्यपाल का सफर अर्जुन सिंह ने तय किया था। छत्तीसगढ़ के प्रति उनका अपार स्नेह था। आज छग में जो सरकार चल रही है उसके कई मंत्री, विधायक निश्चित ही उनके राजनीतिक शिष्य रहे हैं।

छत्तीसगढ़ के साथ फिर अन्याय…

देश के मोदी मंत्रिमंडल में विस्तार हुआ…12 मंत्रियों (रविशंकर प्रसाद, डॉ. हर्षवर्धन, प्रकाश जावड़ेकर आदि) को अच्छा रिस्पांस नहीं देने के कारण हटा दिया गया वहीं 36 नये मंत्री भी बनाये गये पर 36 लोगों में छत्तीसगढ़ के किसी भी सांसद को मंत्रिमंडल में स्थान नहीं मिला……हालांकि रेणुका सिंह राज्यमंत्री के रूप में मंत्रिमंडल का हिस्सा पहले से हैं… पर उनका होना/नहीं होना कम से कम छत्तीसगढ़ के लोगों को तो महसूस नहीं होता है। अटल बिहारी वाजपेयी ने छत्तीसगढ़ राज्य तो बना ही साथ ही अपने मंत्रिमंडल में 3 राज्यमंत्री रमेश बैस, डॉ. रमन सिंह, स्व. दिलीप सिंह जूदेव को शामिल किया था उसके बाद केंद्र में चाहे डॉ. मनमोहन सिंह की सरकार रही हो या नरेन्द्र मोदी की सरकार हो नवोदित छग राज्य (21 साल का) के साथ उपेक्षा का दौर जारी है। राज्य बनने के बाद डॉ. मनमोहन सिंह सरकार में काफी कम समय के लिए छग के डॉ. चरणदास महंत कृषि राज्य मंत्री के रूप में शामिल किया तो मोदी के पहले कार्यकाल में विष्णुदेव साय तथा दूसरे कार्यकाल में रेणुका सिंह को केवल “छग का नेतृत्व है” यही बताने शामिल किया गया है जबकि छग में 11 लोस/ रास सदस्य भाजपा के हैँ कुछ अनुभवी सांसद भी हैं। छग बनने के पहले विद्याचरण शुक्ल लगभग सभी प्रधानमंत्रियों के साथ प्रभावी भूमिका में बतौर कबीना मंत्री कार्यरत रहे हैं तो 73 से 77 तथा 93 से 96 तक आदिवासी नेता अरविंद नेताम भी राज्यमंत्री बतौर रहे हैं। मोतीलाल वोरा भी केंद्रीय मंत्रिमंडल के सदस्य रह चुके हैं। जनता पार्टी शासनकाल में भी कबीना मंत्री के रूप में बृजलाल वर्मा 77 से 79,पुरुषोत्तम लाल कौशिक 77 से 80 तो राज्यमंत्री के रूप में नरहरि साय 77 से 79, लरंगसाय 77 से 79 तक रहे हैं। सवाल यह भी तो उठता है कि मोदी के पहले कार्यकाल में राज्यमंत्री रहे विष्णुदेव साय को बाद के लोस चुनाव में टिकट से ही वंचित रखा गया वहीं वरिष्ठ सांसद रमेश बैस को नरेन्द्र मोदी ने मंत्रिमंडल में शामिल करने की जरूरत नहीं समझी थी…..?

दिलीप कुमार और जबलपुर….

मशहूर फिल्म अभिनेता, अभिनय की पाठशाला दिलीप कुमार (मो. युसूफ खान) का निधन 98 साल की उम्र में हो गया, ‘ट्रेजरी किंग’ के नाम से विख्यात, फ़िल्म इंडस्ट्रीज के पहले खान दिलीप कुमार अविभाजित भारत के पेशावर (अब पाकिस्तान) में 11 दिसंबर 1922 को जन्मे थे। 1944 अर्थात उम्र के 22 वें साल में ज्वारभाठा से उन्होंने फिल्म जगत में प्रवेश किया था। उनके खाते में कई बेहतरीन फिल्में तथा बेहतरीन गाने आज भी सदाबहार बने हुए हैं।….उड़े जब जब जुल्फें तेरी… (नया दौर)… सुहाना सफर और ये मौसम हंसीँ…(मधुमती)….यह देश है वीर जवानों का… (नया दौर)….इमली का बूटा… (सौदागर)…. दिल दिया है जां भी देंगे….(कर्मा)….ऐ मेरे दिल कहीं और चल…(दाग)…छोटी सी उम्र में लग गया रोग….(बैरागी) आदि आज भी लोकप्रिय हैं।
दिलीप कुमार के छग आने की पुष्टि तो नहीं हो सकी है पर छग के पूर्व कबीना मंत्री विद्याचरण शुक्ल तथा आदिवासी नेता अरविंद नेताम से उनके रिश्ते रहे हैं। विद्या भैय्या से तो उनके अच्छे रिश्ते थे जब भी वे दिल्ली आते थे तो उनसे जरूर मिलते थे…. वहीं अरविंद नेताम की मानें तो दिलीप साहब को बस्तर की भेड़ा भाजी (अमारी भाजी) का शरबत बहुत पसंद था, वे दिल्ली जब भी आते थे तो इस भाजी का पावडर नेताम से मांग कर जरूर ले जाते थे। बहरहाल छग से तो नहीं पर जबलपुर से जरूर उनका गहरा नाता था। फिल्म कलाकार प्रेमनाथ का घर जबलपुर में ही था, उनके पिता पुलिस अधिकारी थे…. (जबलपुर में एक टाकीज भी उनकी थी एम्पायर सिनेमा) जब प्रेम नाथ का विवाह जबलपुर से 1952 में हुआ था तब पृथ्वीराज कपूर, राजकपूर के साथ दिलीप कुमार भी बाराती बनकर आए थे। तब की एक पुरानी फोटो मिली है, मिले पुराने चित्र में प्रेमनाथ घोड़े पर सवार हैं और घोड़े की लगाम पकडक़र राजकपूर के साथ ही दिलीप कुमार भी परिलक्षित हो रहे हैं। ज्ञात रहे कि प्रेमनाथ का विवाह प्रसिद्ध फिल्म अभिनेत्री बीनाराय से हुआ था वहीं प्रेमनाथ की बहन कृष्णा का विवाह राजकपूर के साथ हुआ था।

पुलिस अधिकारी और राजद्रोह का मुकदमा…..

आय से अधिक संपत्ति के मामले में एंटी करप्सन ब्यूरो द्वारा एडीजी जीपी सिंह तथा उनसे संबंधित 15 ठिकानों पर मारे गये छापे में 10 करोड़ से अधिक की संपत्ति का खुलासा तो हुआ, उन्हें निलंबित भी किया गया पर छापा के दौरान कुछ चिट्ठियां, पेन ड्राइव तथा कुछ दस्तावेज भी मिले हैं जिसमें खुलासा हुआ है कि राज्य सरकार को अस्थिर करने की भी कोशिश जीपी सिंह कर रहे थे……?इन दस्तावेजों तथा सबूतों के आधार पर कोतवाली पुलिस रायपुर में 8 जुलाई को रात में भादसं 1860 के 124 (ए) 153 (ए) के तहत राजद्रोह का जुर्म कायम किया गया है। उनकी गिरफ्तारी भी कभी भी संभव है। हालांकि उनके बिलासपुर से पुलिस की नजर बचाकर हाईकोर्ट जाने की चर्चा है, उन्होंने अंतरिम राहत के साथ.. सीबीआई जाँच कराने का अनुरोध किया है ऐसा पता चला है…..?

और अब बस…..

0 छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल सरकार द्वारा एडीजी मुकेश गुप्ता के बाद एडीजी गुरजिंदर पाल सिंह को भी निलंबित करने का नया रिकार्ड बन गया है।
0 छत्तीसगढ़ के हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से पूछा है कि आय से अधिक सम्पत्ति अर्जित करने के आरोप में 90 अफसरों के खिलाफ एंडी करप्सन ब्यूरो ने जुर्म दर्ज किया है उनके खिलाफ कार्यवाही क्यों नहीं की गई है……?
0 रायपुर जिले का एक पुलिस का हवलदार इन दिनों पुलिस अफसरों के बीच चर्चा का केंद्र बना हुआ है…..।
0 हाल के मोदी मंत्रिमंडल में 9 पूर्व नौकरशाह मंत्री बने हैं। आरपी सिंह (इस्पात मंत्री) बिहार के मुख्यमंत्री नीतिश कुमार के पीएस और सेक्रेटरी रह चुके हैं।