खिड़कियों से हवा का बर्ताव तो ऐसा न था… आज यूं मुमकिन लगा, झोंके सयाने हो गये…

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वरिष्ठ पत्रकार शंकर पांडेय

छत्तीसगढ़ में ‘आयकर छापा’ का जिन्न अभी भी बोतल में बंद है। कभी भी वह दिल्ली में पत्रकार वार्ता के रूप में बोतल से निकलकर छत्तीसगढ़ में वायरल हो सकता है। अभी भी स्थिति में केबल तथा होटल व्यवसायी गुरुचरण सिंह होरा के पास से करीब एक करोड़ की नगदी का मामला ही गरमाया है। अभी पूर्व मुख्य सचिव तथा रेरा के अध्यक्ष विवेक ढांड, उद्योग मंत्रालय में बतौर संयुक्त सचिव पदस्थ आईएएस अनिल टुटेजा, मुख्यमंत्री कार्यालय में पदस्थ उपसचिव सौम्या चौरसिया के घर तथा संस्थानों में आयकर छापा का व्यक्तिगत खुलासा अभी होना है। शराब व्यवसायी पप्पू भाटिया, अमोलक सिंह भाटिया (बिलासपुर) आबकारी विभाग के ओएसडी ए.पी. त्रिपाठी के घर तथा संस्थानों में केंद्रीय आयकर की टीम सहित सीबीआई, ईडी आदि की जांच का अभी विवरण आना बाकी है। वैसे सौम्या चौरसिया को छोड़कर अन्य अधिकारियों, नेताओं तथा कारोबारियों के 25 ठिकानों पर 6 दिनी कार्यवाही में 150 करोड़ से अधिक के बेनामी टांजक्शन का खुलासा हो सका है। सूत्रों की मानें तो यह पैसा शराब, माइनिंग के अवैध तरीकों से बनाने तथा अधिकारियों को मिला हिस्सा भी हो सकता है।

उठ रहे हैं सवाल

केंद्रीय आयकर की टीम द्वारा छत्तीसगढ़ में वह भी मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के करीबी अफसरों के खासकर मुख्यमंत्री सचिवालय में पदस्थ सौम्या चौरसिया के घर में दबिश 2 दिनों तक उनका घर नहीं पहुंचना, भूपेश मंत्रिमंडल की टीम द्वारा राजभवन जाकर राज्यपाल से छापे की कार्यप्रणाली को लेकर शिकायत की भी जमकर चर्चा रही।

सवाल यह खड़े हो रहे हैं कि केंद्रीय आयकर विभाग की टीम ने केंद्रीय सुरक्षाबल (सीआरपीएफ) की छत्तीसगढ़ में नक्सली उन्मूलन के लिए तैनात टीम की सेवाएं ली थी, छग सरकार को इस छापों की जानकारी ही नहीं थी जाहिर है कि सीआरपीएफ की सेवाएं लेने केंद्रीय गृह मंत्रालय या दिल्ली स्तर पर आदेश आया होगा इससे राजनीतिक दबाव की बात से इंकार नहीं किया जा सकता है। वैसे इन छापों के बाद नक्सल प्रभावित छत्तीसगढ़ की इंटेलीजेन्स पर भी सवाल उठता है। माना एयरपोर्ट में 200 अफसर दिल्ली से आये थे, उनके लिए भिलाई पर्यटन के नाम पर 60 टैक्सियां भी विमानतल पर लगी थी, भिलाई कोई अंतर्राष्ट्रीय पर्यटन स्थल तो कम से कम नहीं है। इतना कुछ हो गया और गुप्तवार्ताके अफसरों को भनक भी नहीं लगी…। छापा मारने वाले अफसरों की टैक्सियों को रात में नो पार्किंग जोन में खड़ी होने उनकी जप्ती और जुर्माना पटाने पर छोडऩे की भी चर्चा रही तो बेरिकेट्स लगाकर मुख्यमंत्री के चरौदा स्थित निवास पर भारी संख्या में पुलिस बल की अतिरिक्ति तैनाती के भी क्या मायने थे यह भी पता नहीं चला है, इन सबके पीछे किस पुलिस अफसर का आदेश था यह भी पता लगाया जाना जरूरी है। आयकर छापा के बाद मंत्रिमंडल की निर्धारित बैठक स्थगित करने तथा राज्यपाल को ज्ञापन सौंपने के पीछे भी किस सलाहकार की भूमिका थी इसकी भी चर्चा तेज है। जानकारों की मानें तो एक दो मार्च को राष्ट्रपति का छग प्रवास कार्यक्रम था राज्यपाल की जगह उनसे मंत्रिमंडल की टीम मुलाकात करने अपना विरोध प्रकट कर सकती थी। बहरहाल केंद्रीय आयकर विभाग की टीम के छापे के बीच ‘राजनीतिक प्रभाव’ से भी इंकार नहीं किया जा सकता है साथ ही इस पूरे मामले में पुलिस की भूमिका पर भी सवाल तो उठ ही रहे हैं। जहां तक छग के ईओडब्लु और एबीसी को आयकर विभाग की टीम के विश्वास में नहीं लेने का सवाल है तो इसके मुखिया की नियुक्ति की मुख्यमंत्री के सचिवालय की सलाह पर ही की गई है यह चर्चा पुलिस मुख्यालय सहित मंत्रालय में जमकर है।

वादा निभाया दाऊजी ने

गढ़बो नवा छत्तीसगढ़ और नरूवा, गरुवा, घुरवा और बाड़ी को प्राथमिकता मानकर किसानों की सरकार का सपना पूरा करने के लिए दाऊजी भूपेश बघेल ने प्रयत्न शुरू कर दिया है, पहले किसानों का कर्ज माफ करने के बाद इस बार केंद्र सरकार की मदद के बिना ही भूपेश ने किसानों का धान 2500 रुपये खरीदने का वादा बजट के माध्यम से पूरा करके निभा भी दिया है। केंद्र सरकार के समर्थन मूल्य पर किसानों की धान खरीदी इस साल हुई थी और अंतर की राशि देने का भूपेश बघेल ने वादा किया था। किसानों को धान का बोनस देने (अंतर की राशि) का वादा पूरा करने मुख्यमंत्री तथा वित्तमंत्री बतौर छग के बजट में राजीव गांधी किसान न्याय की घोषणा की है। इसमें 5100 करोड़ का प्रावधान किया गया है। इसी तरह आदिवासी, ग्रामीणों की उन्नति, युवाओं के लिए उच्च शिक्षा, शिक्षाकर्मियों के संविलियन की भी घोषणा की। हर जिले में गढ़ कलेवा खोलने की योजना के तहत छत्तीसगढ़ी व्यंजन की उपयोगिता बढ़ाने, झीरमघाटी में शहीदों की याद में रायपुर में शहीद स्मारक बनाने, स्वामी विवेकानंद की स्मृति को सहेजने स्मारक बनाने का भी स्वागतेय कदम उठाया है। कोई भी नया कर नहीं लगाकर भूपेश बघेल ने आर्थिक मंदी के दौर में एक नया संदेश देने का भी प्रयास किया है।

अबूझमाड़ : एक गांव का ही सर्वे….।

देश-विदेश में चर्चित बस्तर का अबूझमाड़ अभी भी अबूझा ही है। कहा जाता है कि कभी सम्राट अकबर के समय इस क्षेत्र का सर्वे शुरू हुआ था। अविभाजित म.प्र. के समय बस्तर की उपेक्षा की बात तो समझ में आती थी पर अपने ही छग में भी बस्तर का अबूझमाड़ उपेक्षित है। बस्तर संभाग के नारायणपुर, दंतेवाड़ा और बीजापुर जिलों के बीच घने जंगलों तथा ऊंचे पहाड़ों से घिरे अबूझमाड़ का क्षेत्रफल 4400 वर्ग किलोमीटर है वहीं 237 गांव है। अभी भी यह क्षेत्र आदिम युग में जी रहा है। गांवों का सर्वे नहीं होने से यहां के निवासियों को सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं मिल पाता है। वैसे नक्सलवादियों का यह सबसे सुरक्षित ठिकाना माना जाता है। 1989 में आदिवासी संस्कृति घोंटूल की गलत तस्वीर एक समाचार ग्रुप द्वारा प्रस्तुत करने के कारण तत्कालीन म.प्र. सरकार ने बिना अनुमति यहां प्रवेश पर प्रतिबंध लगा दिया था पर 2009 में रमन सरकार ने यह प्रतिबंध हटा दिया था।

छत्तीसगढ़ विधानसभा में एक सवाल के जवाब में राजस्वमंत्री जयसिंह अग्रवाल ने बताया कि अबूझमाड़ में केवल एक गांव का सर्वे 13 सालों में हो सका है। अभी 236 गांवों का सर्वे होना बाकी है। ज्ञात रहे कि अबूझमाड़ का सेटेलाईट सर्वे हो चुका है पर भौतिक सर्वे के लिए राजस्व विभाग की टीम पहुंच ही नहीं पा रही है।

सिर्फ 19 बाघ बचे….

राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (एनटीसीए) की मानें तो छत्तीसगढ़ में 19 बाघ ही बचे हैं जिन पर वन विभाग के अफसरों को विश्वास नहीं है। वैसे यह भी आश्चर्यजनक है कि वन विभाग द्वारा प्रतिबाघ पर सालाना 50 लाख रुपये खर्च कर रहा है।

एनटीसीए की रिपोर्ट यह भी कहती है कि 2014 में छत्तीसगढ़ में 46 बाघ थे। तो क्या 27 बाघ मारे गये या कहीं लापता हो गये या यह भी कह सकते हैं कि ये बाघ आसपास के प्रदेशों के थे और इन्हें छग के मानकर गणना में शामिल कर लिया गया था पर भी पिछली भाजपा की सरकार में वन विभाग ने गलत गणना की थी। बहरहाल प्रदेश में अब बाघ संरक्षण पर ही सवाल उठ रहे हैं। बाघों के संरक्षण के लिए केंद्र सरकार ने 2019-20 में प्रदेश सरकार को 1193.29 करोड़ रुपये जारी किये थे। इसमें 954.62 लाख रुपये वन विभाग को मिल भी चुके हैं। इस हिसाब से प्रदेश में प्रति बाघ 50 लाख रुपये सालाना खर्च का औसत बैठ रहा है फिर भी न तो बाघों को ढूंढा जा सका है और न ही उन्हें बचाने कोई ठोस राणनीति ही बनाई गई है। प्रदेश के बड़े जंगल नक्सली प्रभाव में है इसलिए वहां जाकर बाघों की गणना या संरक्षण के विषय में भी सोचा भी नहीं जा सकता है। वैसे एनटीसीए ने छग सहित सभी राज्यों को 15 अक्टूबर से बाघों की गणना के चौथे चरण की शुरुवात करने के निर्देश दिये थे तथा 15 मई तक रिपोर्ट भी मांगी थी पर छग में गणना शुरू ही नहीं हुई। यहां यह भी बताना जरूरी है कि देश में 2018 में तीसरे चरण की बाघों की गणना में 30 प्रतिशत की वृद्धि थी तो छत्तीसगढ़ में 60 प्रतिशत की कमीं…. खैर वन विभाग के प्रशासनिक मुखिया प्रमुख सचिव मनोज पिंगुआ का कहना है कि 2014 और 2019 की गणना में जो बाघों की गणना के जो आं$कड़े आये हैं वे विश्वसनीय नहीं है।

और अब बस…

  • 0 विधानसभा अध्यक्ष डॉ. चरणदास महंत ने सदन के भीतर फिजूल का सवाल नहीं उठाने की नसीहत देते हुए बताया कि सदन के भीतर एक सवाल पर 10 लाख खर्च होता है।
  • 0 आबकारी मंत्री कवासी लखमा के अनुसार गत वर्ष 4491 करोड़ की और इस वर्ष 4089 करोड़ की आय शराब से हुई है। इसका कारण….. पीने वाले कम हुए हैं या बाहरी प्रदेश की शराब खपत बढ़ गई है।
  • 0 पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह के इस बयान पर कि छत्तीसगढ़ की अर्थव्यवस्था वेंटिलेटर में हैं। स्वास्थ्यमंत्री टीएस सिंहदेव ने पलटवार किया है कि एक लाख करोड़ बजट वाला छग बेंटिलेटर पर नहीं है डॉ. रमनसिंह की डायग्नोसिस ठीक नहीं है।
  • 0 विधानसभा सत्र के बाद मंत्रालय तथा पुलिस मुख्यालय में कुछ बड़े बदलाव की चर्चा तेज है।