समय ने जब भी अंधेरों से दोस्ती की है.. जला के हमने अपना घर रोशनी की है..सबूत है मेरे घर में धुएं के धब्बे.. अभी यहां उजालों ने खुदकुशी की है..

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वरिष्ठ पत्रकार शंकर पांडेय..

छत्तीसगढ़ का आदिवासी अंचल बस्तर अनमना सा है। कभी वहां की वादियों में स्वतंत्र विचरण करने वाले स्त्री-पुरुष, जीव-जंतु सहमे-सहमे से हैं, बारूद की उठती आवाजें, बारूदी सुरंग, सुगंध से बेचैनी सी है, बस्तर की घोटूल प्रथा, पारंपरागत नृत्य, संगीत, त्यौहारों पर नक्सलवाद सहित सुरक्षाबलों का साया है। हाल ही में सरकेगुड़ा का जून 2012 में कथित मुठभेड़ के नाम पर 17 आदिवासियों की मौत का मामला चर्चा में है। न्यायिक आयोग ने स्पष्ट कहा है कि सीआरपीएफ और सुरक्षाबलों की एक संयुक्त टीम (करीब 190 लोग) ने बीजापुर के सरकेगुड़ा और सुकमा जिले के कोट्टागुड़ा और राजपेटा गांव के 17 ग्रामीणों (7 नाबालिग) को मुठभेड़ के नाम पर मौत के घाट उतार दिया गया, सभी ग्रामीण ‘बीजपंडूम’ त्यौहार मनाने के लिए बैठक में उपस्थित हुए थे। सभी ग्रामीण थे, उनमें नक्सली कोई नहीं था, ग्रामीणों की तरफ से कोई फायरिंग भी नहीं की गई थी फिर मुठभेड़ कैसी…। सरकेगुड़ा की तथाकथित मुठभेड़ के मामले की न्यायिक जांच करने वाले जस्टिस बी.के. अग्रवाल की रिपोर्ट के अनुसार पहले ग्रामीणों को प्रताडि़त कर मारपीट की गई फिर पास से गोली मारी गई, आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक मृतकों और घायलों के शरीर में चोट के निशान भी पाये गये थे जिसके पीछे निश्चित ही सुरक्षाबलों का हाथ है। 78 पन्नों की आयोग की रिपोर्ट में कहा गया है कि पुलिस रिपोर्ट से प्रमाणित नहीं हुआ कि मारे गये लोग या घायल ग्रामीण माओवादी थे। बहरहाल अब ग्रामीण, मानव अधिकार की पैरवी करने वाले लोग फर्जी मुठभेड़ में 17 ग्रामीणों की हत्या के मामले में तत्कालीन राज्य सरकार के मुखिया डॉ. रमन सिंह, खुफिया प्रमुख मुकेश गुप्ता, आईजी टी.जे. लागकुमेर एस.पी. प्रशांत अग्रवाल सहित उक्त टीमके 190 लोगों के खिलाफ एफआईआर कराने की मांग को लेकर लामबंद हो चुके हैं। उस समय विपक्ष में रहने वाले कवासी लखमा (अब प्रदेश सरकार में मंत्री) सरकेगुड़ा प्रकरण में जांच करने पहुंचकर फर्जी मुठभेड़ ठहराया था उनका कहना है कि भाजपा की सरकार बस्तर में गोली मारती थी, घर जलाती थी, चाहे सरकेगुड़ा हो या एरसमेटा हो, उन्होंने स्पष्ट किया है कि मैं पहले आदिवासी हूं बाद में मंत्री या नेता। निर्दोष आदिवासियों की हत्या को लेकर तत्कालीन मुख्यमंत्री, गृहमंत्री सहित अधिकारियों पर कार्यवाही होनी चाहिए। बहरहाल राज्य सरकार को इस मामले में कानूनसंगत कार्यवाही करना चाहिए भी..।

पहले पार्षद फिर मुख्यमंत्री, केन्द्रीय मंत्री, राज्यपाल भी…।

छत्तीसगढ़ में स्थानीय निकायों, पंचायत, नगर पालिका, नगर निगम की चुनाव प्रक्रिया शुरू हो चुकी है। सत्ताधारीदल कांग्रेस-भाजपा, जोगी कांग्रेस के कार्यकर्ताओं में उत्साह है हो भी क्यों न..। छत्तीसगढ़ के 2 पूर्व मुख्यमंत्री, राज्यपाल, केन्द्रीयमंत्री ने इन्हीं चुनाव से अपनी राजनीति शुरू की थी इस बार पार्षदों के बीच से ही महापौर, पालिका, पंचायत अध्यक्ष बनाने के नियम के बाद तो कुछ दिग्गज नेता भी पार्षद चुनावलडऩे मजबूर है वैसे कुछ राज्य स्तरीय नेता समझने वालों को वार्ड की जनता ही धरातल दिखा देगी ऐसा लगता है।

छत्तीसगढ़ के वयोवृद्ध राजनेता मोतीलाल वोरा अभी भी राजनीति में अजातशत्रु बने हुए हैं। अविभाजित म.प्र. के मुख्यमंत्री, केन्द्रीयमंत्री उत्तर प्रदेश के राज्यपाल बनने वाले मोतीलाल वोरा दुर्ग नगर निगम के पार्षद भी रहे। 1928 में जन्में वोरा का राजनीतिक जीवन 1955-60 के बीच राजनांदगांव में शुरू माना जा सकता है। उन्होने रायपुर की एक निजी बस कंपनी की तरफ से राजनांदगांव में पदस्थापना के दौरान बस यात्रियों से प्रति टिकट 10 पैसे लेकर सार्वजनिक चंदा कर महात्मा गांधी की मूर्ति स्थापित की थी बाद वे दुर्ग स्थानांतरित हो गये और वहां बतौर पार्षद सक्रिय राजनीति में उतरे थे। उन्होंने बाद में विधायक, सांसद, राज्यसभा सदस्य बनकर राजनीति के कई सोपान तय किये। अभी भी उनकी गिनती कांग्रेस के गांधी परिवार के करीबी लोगों में होती है।

भाजपा के बड़े नेता, देश के वरिष्ठ सांसदों में जिनकी गिनती होती रही, वर्तमान में त्रिपुरा के राज्यपाल रमेश बैस ने भी अपनी राजनीति की शुरूवात नगर निगम के पार्षद से की थी। वे पार्षद, विधायक, सांसद, केंद्रीय मंत्री से लेकर राज्यपाल तक का सफर पूरा कर रहे हैं। देश के बड़े कांग्रेसी पूर्व मुख्यमंत्री पं.श्यामाचरण शुक्ल, विद्याचरण शुक्ल सहित छग के वर्तमान मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को लोकसभा चुनाव में पराजित करने वाले रमेश बैस, अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में केंद्रीय मंत्रिमंडल में भी शामिल रहे। लगातार एक ही लोकसभा से सांसद बनने का उनका अपना रिकार्ड है। पिछले लोकसभा चुनाव में उन्हें प्रत्याशी नहीं बनाया गया और बाद में उन्हें त्रिपुरा का राज्यपाल बनाया गया है। 1978 में रमेश बैस ब्राम्हणपारा वार्ड से नगर निगम रायपुर के पार्षद चुने गये थे। उसी के बाद 80 में ही मंदिर हसौद विधानसभा से विधायक बने और 1989 में लोकसभा सदस्य चुने गये।

छत्तीसगढ़ में 15 साल तक लगातार मुख्यमंत्री बनने का रिकार्ड बनाने वाले डॉ. रमन सिंह ने भी अपनी राजनीतिक पारी की शुरुवात बतौर पार्षद की थी। वे कवर्धा नगरपालिका के पार्षद बने थे। उसके बाद विधायक, सांसद, केंद्रीय मंत्री होकर छत्तीसगढ़ के 15 साल मुख्यमंत्री भी रहे। अविभाजित म.प्र. के मुख्यमंत्री रहे मोतीलाल वोरा को राजनांदगांव लोकसभा में पराजित करने के कारण अटल बिहारी वाजपेयी ने उन्हें अपने मंत्रिमंडल में शामिल किया था। केंद्रीय मंत्रिमंडल से इस्तीफा देकर उन्होंने छग नये राज्य में संगठन को मजबूत करने की जिम्मेदारी ली और 15 साल लगातार मुख्यमंत्री रहकर रिकार्ड भी बनाया यह बात और है कि पिछला विस चुनाव उनके नेतृत्व में हुआ और भाजपा 15 सीटों में ही सिमट गई।

छात्र राजनीति से राजनीति में उतरी सुश्री सरोज पांडे का भी अपना रिकार्ड है। सन 2000 में दुर्ग नगर निगम से बतौर भाजपा महापौर प्रत्याशी उन्होंने दुर्ग जैसे कांग्रेसी क्षेत्र में अपनी जीत दर्ज की। 2 बार महापौर बनने वाली सरोज पांडे दुर्ग में वैशालीनगर से इसी दौरान विधायक भी चुनी गई और उसी के बाद दुर्ग लोकसभा से वहां के दिग्गज नेता ताराचंद साहू को भी पराजित कर दिया। इस तरह एक ही समय में दुर्ग महापौर, वैशालीनगर विधायक तथा दुर्ग की सांसद बनने का उनका रिकार्ड है हालांकि बाद वे लोस चुनाव हार गई अभी राज्यसभा की सदस्य होने के साथ भाजपा की बड़ी महिला नेत्री है।

रायपुर के लोकसभा सदस्य सुनील सोनी भी छात्र राजनीति से भाजपा की राजनीति में आये। फिर वे नगर निगम की राजनीति में उतरे, नगर पालिका रायपुर के सभापति फिर महापौर भी रहे, बाद में रायपुर विकास प्राधिकरण के अध्यक्ष भी रहे, और इन दिनों रायपुर से लोकसभा के सदस्य हैं। उन्होंने महापौर प्रमोद दुबे को बुरी तरह पराजित किया। उन्होंने 3 लाख 48 हजार 238 मतों से प्रमोद दुबे को लोकसभा चुनाव में पराजित किया। वैसे रायपुर की प्रथम महिला महापौर बनने का भी डॉ. किरणमयी नायक का रिकार्ड है। पेश से अधिवक्ता डॉ. किरणमयी नायक को म.प्र. के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह राजनीति में लाये थे। 2009 से 2014 तक डॉ. किरणमयी नायक रायपुर नगर निगम की पहली निर्वाचित महिला महापौर बनने का भी रिकार्ड बनाया, वैसे बतौर महापौर ही उन्होंने 2013 के विधानसभा में रायपुर दक्षिण से चुनाव भी लड़ा पर वे बृजमोहन अग्रवाल से पराजित हो गई। वैसे स्वरूपचंद जैन कभी पार्षद तो नहीं रहे पर 2 बार महापौर भी बने तथा पार्षद एस.आर. मूर्ति भी महापौर रहे। बलबीर जुनेजा भी रायपुर नगर निगम के महापौर रहे तो तरूण चटर्जी भी लंबे समय तक निगम की राजनीति से जुडे रहे।

तरूण, गौरीशंकर की हार..

विधायक तथा पूर्व मंत्री तरूण चटर्जी को नगर निगम की राजनीति में महत्वपूर्ण माना जाता था। तरूण चटर्जी रायपुर के महापौर के साथ ही 3 बार रायपुर ग्रामीण के विधायक रहे। 2003 में बतौर विधायक, महापौर रहे तरूण चटर्जी उर्फ तरूण दादा छग में जोगी सरकार में भी मंत्री रहे। 1977 में कांग्रेस नेताओं विशेष तौर पर विद्याचरण शुक्ल की नजरों में आये वे सिविल लाईन से पार्षद भी चुने गये 1980 में रायपुर ग्रामीण से अविभाजित म.प्र. के लिए विधायक चुने गये। बाद में 1989 में विद्याचरण शुक्ल के कांग्रेस से दलबदल पर जनता दल में गये और फिर जीते पर 1993 में भाजपा के सुंदरलाल पटवा का नेतृत्व स्वीकार कर भाजपा में चले गये 1998 में विधायक बने उन्हें भाजपा के बेनर तले महापौर का चुनाव भी लड़ा और करीब 50 हजार मतों से भी जीत गये। वैसे 1994 में नगर निगम का अप्रत्यक्ष चुनाव हुआ था। तब तरूण दादा रायपुर ग्रामीण से भाजपा के विधायक थे। लेकिन महापौर बनने की इच्छा के चलते तरूण चटर्जी ने पार्षद का चुनाव लड़ा पर उन्हें कांग्रेस के उम्मीदवार दीपक दुबे से पराजित होना पड़ा।

छत्तीसगढ़ की भाजपा की राजनीति में गौरीशंकर अग्रवाल की अलग धाक है। वे विधायक होकर छग विधानसभा के अध्यक्ष भी बन चुके हैं यह बात और है बतौर विधानसभा अध्यक्ष उन्हें पिछले विस चुनाव में पराजय का सामना करना पड़ा वैसे गौरीशंकर अग्रवाल ने भी अपनी राजनीति की शुरूवात नगर निगम रायपुर से की थी। 1994 में वरिष्ठ भाजपा नेता गौरीशंकर अग्रवाल ने पार्षद चुनाव लड़कर महापौर बनने किस्मत आजमाई थी यह बात और है कि उनके विरूद्ध अरविंद दीक्षित वार्ड से कांग्रेस के गजराज पगारिया चुनाव समर में उतरकर सफल रहे, गौरीशंकर को पराजय का सामना करना पड़ा।

और अब बस….

  • नगरीय निकाय के चुनाव में स्वयं को राज्यस्तरीय नेता समझने वाले कुछ लोगों को वार्ड की जनता हकीकत से परिचित करा देगी।
  • नगरीय निकाय के चुनाव में सफलता-असफलता से कुछ नेताओं की भावी राजनीति प्रभावित हो सकती है।
  • भाजपा की प्रदेश में सरकार थी तो 10 साल रायपुर निगम में कांग्रेस का महापौर था। अभ कांग्रेस की सरकार है तो…।